कितना खूबसूरत है चारों तरफ रोशनी का नजारा ।कमला ने
शिवनाथ जी को शाल उढाते हुए कहा ,” अन्दर चलो , ठंड होने लगी है ।”
“थोडी देर बैठो यहीं , कितनी सुन्दर रोशनी करी है सब ने ।परसों दीवाली है , कल मै भी थोड़ी सी लाइट लगा लूँगा ।”
” मन नहीं करता मेरा , बच्चे नही आ रहे , कितना सन्नाटा लग रहा है , कुछ भी करने का मन नही कर रहा ।”
” क्यों, मै हूँ न तुम्हारे पास, मेरे लिये गुझिया बनाना , बेसन के लड्डू बनाना ।”
” नहीं मेरे बस का कहाँ है यह सब , बाजार से ले आना आप जो आपको खाना हो ।
कितनी रौनक होती थी न दीवाली पर , रमेश को कितना शौक था , रश्मि भी बहुत खुशी खुशी सारे पकवान बनाती थी ,
दोनों छोटे बच्चे कितनी आतिशबाजी छुड़ाते थे ।
उनको नही आना था तो हम चले जाते , आपने क्यो नही सोचा ?”
” मैने सोचा वो आयेंगे ।हो सकता है कोई काम होगा ।”
” हाँ यही होगा ।”
उदासी चारों तरफ महसूस हो रही थी।
दोनों अन्दर जाकर बैठ गये।
शिवनाथ जी ने टीवी चलाया , ‘ देखो कितनी अच्छी फिल्म आ रही है , हमारे समय की पुरानी ।’
कमला फीकी सी मुस्कान के साथ फिल्म देखने का नाटक करने लगी ।जानती थी शिव भी उसे बहलाने को टी वी खोलकर बैठे थे ।उनका मन भी कहाँ लग रहा था , यादें क्या आसानी से पीछा छोड़ती है ?
और वो भी पूरे जीवन की यादें,बच्चों की किलकारियों की
यादें , भरे पूरे आँगन में खुशियों भरे ठहाको की यादें,शादियों में शोर शराबे की यादें, यादे बस अब सिर्फ यादें ।
कितनी बडी कोठी, कितने
नौकर चाकर , कितने बड़े अधिकारी थे शिव , कितना रुतबा ।
पूरी कोठी मे अकेले दो लोग , सारे कमरे बंद कर दिये थे ।
कमला कहने लगी ,’आज तुमने सारे बन्द पडे कमरे खुलवा कर सफाई क्यों करवाई ?”
” बस यूँ ही ” , शिवनाथ के दिमाग में बेटे के शब्द गूँज रहे थे
जब उन्होंने कहा , “आया करो , इतनी बड़ी प्रॉपर्टी कैसे सँभालू? तो कहने लगा
,” पापा , हम दोनो ही इतने बिजी रहते है , बार बार नही आ सकते , हमे कुछ नही चाहिये , आप जो चाहे करो ।”
मन कैसा कैसा होने लगा था। कहने लगे ” कल मेरा पुराना मित्र आ रहा है , स्वागत करना है उसका ।तुम को एक सरप्राइस देना है ।”
” क्या बात है ? “
मुस्कुरा कर टाल दिया उन्होंने ।ठान लिया था उन्होंने कि कमला और अपने जीवन के अन्तिम दिनों को उदासी में नहीं डुबोना है ।
अगले दिन सुबह शिवनाथ जी बहुत सी मिठाई , आतिशबाजी,कपड़े, दीपक ,सजावट का सामान, लाइट्स ले आये ।
बहुत से सामान, खूब सारे बच्चों के साथ उनके मित्र ने घर मे प्रवेश किया ।वह एक एन जी ओ थे और अनाथ बच्चों के लिये संस्था चलाते थे ।अपने खाली पडे घर को शिव ने उन्हें दे दिया था संस्था चलाने के लिये ।
दीवाली के दिन उन सब बच्चों को सामान बाँटा ,कितने खुश हो रहे थे वे बच्चे , खुशियाँ बाँटकर शिवनाथ और कमला का मन भी कितनी खुशी महसूस कर रहा था ।
कमला भीगे मन से कहने लगी , ‘आज सच में आत्मिक संतुष्टि और आनंद दिया आप ने मुझे ।”
सच में आज दीवाली पर उनका घर भी जगमगा उठा था खुशियों के दियों से ।
सुधा शर्मा
मौलिक स्वरचित