खुशियां पैसों की मोहताज़ नही- संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” मम्मी देखो ना सब लोग नए साल का जश्न मनाने को घूमने जा रहे हैं एक मेरी किस्मत ऐसी की इस चार दिवारी में बन्द हूं !” तान्या ने अपनी मम्मी वंदना जी को फोन लगा शिकायत की।

” पर बेटा पिछले साल तो तुम लोग घूमने गए थे इस बार नही भी जा रहे तो कोई बात नही बच्चे छोटे है उनके साथ परेशानी भी होगी !” वंदना जी ने समझाया।

” वो घूमना भी कोई घूमना था वैष्णो देवी गए थे वहीं से थोड़ा और घूम लिए बस ….और रही बच्चों की बात क्या और लोग बच्चों के साथ घूमने नहीं जा रहे फिर मुझे ही क्या परेशानी होगी ….पर आप नहीं समझोगी छोड़ो !” तान्या ने मुंह बना कर कहा और फोन काट दिया।

वंदना जी फोन को हाथ में लिए मुस्कुरा दी और खुद से ही बोली ..” दो बच्चों की मां बन गई है ये तान्या पर खुद का बचपना अभी गया नहीं जाने कब समझ आएगी इसे की दूसरों की थाली में घी देखती रहोगी तो कभी खुश नहीं रहोगी !” 

सच भी था ये तान्या को शुरू से जिंदगी से शिकायत रही है कि सामने वाले पर जो है वो मेरे पास क्यों नहीं। वंदना जी उसे हमेशा से समझाती आईं हैं पर उसका व्यवहार नहीं बदला। वंदना जी और अनुज जी के दो बिटिया है तान्या और तृप्ति तृप्ति की अभी दो साल पहले भी शादी हुई है और वो अपने पति के साथ बैंगलोर जाकर बस गई जबकि तान्या जिसकी शादी सात साल पहले अपने ही शहर दिल्ली में हुई थी। तान्या के पति के ऑफिस मे छटनी चल रही थी इसलिए वो अन्यथा खर्च से बचना चाह रहा था ये वंदना जी अच्छे से जानती थी।

” सुनो कल नए साल पर तान्या के घर चलते हैं उसे सरप्राइज देने !” रात को वंदना जी ने अनुज जी से कहा।

” ठीक है चलो तो कुछ सामान ले आते है बच्चों के लिए अब खाली हाथ तो जायेगे नहीं बेटी के घर।” अनुज जी बोले और दोनों बाज़ार चल दिए।

अगले दिन दोनों जैसे ही तान्या के घर के बाहर पहुंचे अंदर से तान्या के रोने चिल्लाने की आवाजें आ रही थी। वो दोनो दरवाजे पर ठिठक गए।

” तुम हमेशा ही ऐसा करते हो रोहन कभी मेरी खुशी का ख्याल नहीं तुम्हे …कितना मन था इस बार गोवा जाने का पर तुम ….!” इतना बोल तान्या रोने लगी।

” देखो तान्या मैं भी चाहता था हम घूमने चले पर मेरी बात को समझो अभी ऑफिस मे छटनी चल रही है भगवान ना करे मेरी नौकरी चली जाये इसलिए मैं पैसा बचा कर चल रहा हूँ क्या पता कब जरूरत पड़ जाये जिंदगी जीने के लिए !” रोहन तान्या को समझा रहा था।

” ऐसी भी क्या जिंदगी जिसमें खुद के मन की ना कर पाओ !” तान्या अभी भी सुबक रही थी ।

वंदना जी ने घंटी बजाई तो रोहन ने गेट खोला।

” अरे मम्मी पापा आप लोग अचानक से कैसे ?” रोहन अपनी झेंप मिटाता हुआ बोला।

साइड में सहमे से खड़े दोनों बच्चे ” नाना – नानी ” बोलते हुए वंदना जी और अनुज जी से लिपट गए।

” अरे मेरे बच्चो !” अनुज जी ने दोनों को गोद में भर लिया। तान्या भी आंसू पोंछ मां पापा के गले लग गई।

चाय नाश्ते के बाद रोहन और अनुज जी बच्चों को ले बाज़ार चले गए और वंदना जी तान्या से बात करने लगी।

” बेटा क्या है ये सब तुमने बच्चों को देखा कैसे सहमे हुए थे वो बच्चों के सामने कोई ऐसे रोना पीटना मचाता है क्या ?” वंदना जी बेटी से बोली।

” वो …मम्मी रोहन के सारे दोस्त गोवा जा रहे थे उन्होंने इससे भी बोला पर इसने साफ मना कर दिया कि हम इस बार नहीं जा रहे कहीं…बस इसी बात पर मुझे गुस्सा आ गया!” तान्या आंखे नीची कर बोली।

” घूमना फिरना सारी जिंदगी का है अभी तुम रोहन की मजबूरी समझो वो कहां मना करता अगर उसकी मजबूरी ना होती । उसे तुम नही समझोगी तो कौन समझेगा ….यूं सारी जिंदगी दूसरों कि थाली में झांकती रही तो अपनी जिंदगी का स्वाद कैसे ले पाओगी …प्यार करने वाला पति है प्यारे प्यारे बच्चे हैं जिन्हें अपनी बेवकूफी से खुद से दूर कर दोगी तुम!” वंदना जी गुस्से में बोली।

” पर मम्मी खुशियों पर मेरा भी तो हक है कोई जरूरी तो नही रोहन की जॉब भी जाये पर पहले से ये सोच मैं खुशियां भी ना मनाऊं !” तान्या बोली।

” किसने कहा खुशियां बस घूम फिर कर मिलती है अगर इंसान चाहे तो घर बैठे भी खुशी हासिल कर सकता है ….औरत को तो वैसे भी समझदारी से चलना चाहिए तभी वो अपने बच्चों को बेहतरीन परवरिश दे सकती है वरना तुम्हे यूं रोता लड़ता देख बच्चे कहां खुल कर जी पाएंगे … और रोहन वो तो घर मे अशांति देख घर आने से भी कतराने लगेगा !” वंदना जी ने थोड़ा प्यार से समझाया। माँ की बाते सुन तान्या बहुत देर तक सोचती रही। अब उसने सोचा तो उसे बच्चो के डरे चेहरे , रोहन की बेबसी नज़र आने लगी क्योकि अभी तक तो वो स्वार्थ के चश्मे से बस अपनी खुशी ही देख रही थी । 

” मुझे माफ़ के दो मम्मी अब ऐसा कभी नहीं होगा !” तान्या शर्मिंदा होते हुए बोली तो वन्दना जी ने उसे गले लगा लिया।

वंदना जी और तान्या दोनों ने मिलकर बच्चों और रोहन की पसंद का खाना बनाया और उनका इंतजार करने लगी। रोहन वापसी में तान्या के लिए फूल लाया और अनुज जी आइसक्रीम और मिठाई लेकर आए। 

सबने हंसी खुशी नया साल मनाया। इस नए साल तान्या ने नया संकल्प लिया कि वो कभी भी बेवजह दूसरों की खुशियां देख खुद के घर में अशांति नहीं फैलाएगी। बल्कि छोटी छोटी चीजों में खुशियां ढूंढने की कोशिश करेगी।

दोस्तों ये सच है पैसे घूमना फिरना ये सब जिंदगी के लिए जरूरी हैं पर उससे भी ज्यादा जरूरी है अपनों का साथ और खुशियां जो किसी पैसे की मोहताज नहीं होती। वरना रोने के तो बहाने अनेक मिल जाएंगे और घर मे अशांति फैला हम अपनों से दूर हो जाएंगे।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#अशांति

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