Moral stories in hindi :“बधाई हो प्रिया इस गांव के अस्पताल में एक होनहार डॉक्टर और मेरी बहू बनकर मेरे घर आंगन की शोभा बढ़ाने और मौसी बनने के लिए ,,
ये कहते हुऐ रमा जी ने प्रिया के मुंह में मिठाई का एक टुकड़ा खिला दिया था।तो मुस्कराते हुऐ प्रिया रमा के पैरों में झुक गई ।प्रिया को मुस्कराता और अपनी मां रमा जी से घुलते मिलते देख पास ही खड़े निशांत की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिलाने लगे थे ।झिलमिलाते भी क्यों नहीं आखिर आज निशांत की प्रिया को अपनी पत्नी बनाने और इस गांव की अच्छी डॉक्टर मिलने की दोनों ख्वाहिशें जो पूरी होने जा रही थी।पर ये सब निशांत और इस गांव को इतनी आसानी से नहीं मिला था।बहुत उतार चढ़ाव से गुजरा था निशांत और प्रिया का ये रिश्ता…..
” डॉक्टर प्रिया कस्बे के अस्पताल में इस साल का पहला जलसा मैं तुम्हारे साथ मनाना चाहता हूं गांव वालों ने बड़े जोश से इसकी तैयारी की है। मैं ट्रेन के दो टिकिट भेज रहा हूं एक आने का और एक वापिस जाने का अगर तुम आई तो तुम्हारी दीदी और मेरे परिवार के साथ- साथ हमारे गांव वालों को भी बहुत खुशी होगी ।
तुम्हारे इंतजार में तुम्हारा निशांत,,
दोपहर को डाक से आये उस पीले सरकारी लिफाफे में रखे दो टिकटों और कागज के उस छोटे से टुकड़े को जिसमें शब्द तो कम लिखे थे पर एक एक शब्द की गहराई इतनी थी कि प्रिया उसमें न चाहते हुऐ भी जितनी बार पढ़ती उतना ही गहरी और गहरी डूबती ही जा रहा थी । परेशान होकर प्रिया ने उस लिफाफे में कागज का वो टुकड़ा और टिकिट रखकर रैक में रखी भारी-भरी मोटी- मोटी किताबों के नीचे दबा दिया ताकि वो उन किताबों के बोझ से इतना दब जाये कि उसका परिवार, उसका कस्बा और निशांत का ख्याल भी उसके मन को परेशान न कर पाये।
और जाकर अपने लिऐ एक कॉफी बना लाई जिससे वो कुछ रिलेक्स कर सके पर क्या कभी ऐसा होता है दिमाग जिसे भुलाना चाहे और दिल उसे याद न करें? दिल पर दिमाग की चली ही कब है जो आज चलती न चाहते हुऐ भी प्रिया कॉफी के उड़ते धुंए के साथ बचपन में कस्बे की धूल भरी गलियों में विचरने लगी उसे खुद इस बात का एहसास नहीं हुआ था…….
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निशांत अपने किसान मम्मी पापा का इकलौता बेटा और प्रिया दूसरे गांव से आ कर वहीं अपना घर बसाकर रह रहे कस्बे के स्कूल टीचर की छोटी बेटी ।कस्बे के और बच्चे जहां धूल भरी गलियों में सारा दिन खेलने की दम रखते स्कूल भी बड़ी मुश्किल से अपने मां बाप के जबरदस्ती भेजने पर ही जाते वहीं निशांत और प्रिया दोनों पढ़ने में नंबर वन इन्हे कहना ही नहीं पड़ता कि तुम पढ़ाई करो या अपना होमवर्क खत्म करो दोनों ही पढ़ लिखकर डॉक्टर बन अपने कस्बे के बीमार लोगों की सेवा करना चाहते थे ।क्योंकि उनके कस्बे में छोटा सा बाजार,कुछ सरकारी अर्द्धसरकारी स्कूल और कॉलेज सबकुछ था कमी थी तो एक अच्छे अस्पताल की।
ऐसा नहीं है कि वहां कोई अस्पताल नहीं था ।थे कुछ फैमली डॉक्टरों के छोटे मोटे क्लिनिक जो हर छोटी मोटी बिमारी का इलाज करने में एक्सपर्ट थे। पर जब भी कस्बे के किसी पुरुष या महिला को कोई गंभीर बीमारी हो जाती या कोई टेस्ट कराना होता तो उन्हे शहर जाना होता।कभी – कभी तो इन सबके अभाव में एक्सीडेंट या गंभीर चोट वाले और गर्भवती महिलाओं की जान भी चली जाती थी। एसे कई हादसे कई मौतें निशांत और प्रिया ने अपनी आंखों से देखी थी बस इसीलिये बचपन से ही दोनों डॉक्टर बनकर अपने कस्बे की इस समस्या को दूर करना चाहते थे इसलिये दोनों जी जान लगा पढ़ाई करते थे।
दोनों की दोस्ती की शुरुवात भी इसी पढ़ाई की वजह से हुई थी। कस्बे में प्रारंभिक पढ़ाई करके दोनों ने पास के शहर में फिर डॉक्टरी की पढ़ाई के लिऐ बड़े शहर में आ गये थे।साथ पढ़ते पढ़ते कब उन दोनों को दोस्ती प्यार में बदल गई उन्हे खुद पता नहीं चला था।
पर ये प्यार बहुत ज्यादा दिन तक उन्हे अपने रंग में नहीं रंग पाया था।डॉक्टर बनते ही दोनों की सोच अलग हो गई थी ।निशांत जहां गांव जाकर अपने लोगों की सेवा करना चाहता था वहीं प्रिया शहर में ही अपनी प्रेक्टिस शुरू करना चाहती थी।इन कुछ सालों में वो शहर के रंग में यूं रंगी की अब वो उस गांव की वो धूल मिट्टी वाली सड़कें और कम सुख सुविधा वाले छोटे से अस्पताल में जाना ही नहीं चाहती थी। वो निशांत से भी बहुत प्यार करती थी उसने निशांत को वहीं रोकने की बहुत कोशिश की पर वो नहीं रुका था ।उसको प्रिया के प्यार से ज्यादा अपने गांव वालों की चिंता थी ।
बस यहीं से दोनों की राहें अलग हो गईं थी।पर दोनों ही एक दूसरे को भुला नहीं पाए थे तभी तो इन सात सालों में घर वालों के लाख कहने पर भी दोनों ने किसी से शादी तो छोड़ो मिलना भी जरूरी नहीं समझा था।प्यार तो इन दोनों का कभी कम हुआ ही नहीं था बस वक्त और दूरियों की वजह से दोनो के रिश्ते में एक अबोला सा छा गया था पर आज निशांत के इस खत ने प्रिया को बरवस ही अपने गांव की तरफ खींच लिया था।और वो चली आई थी अपने बचपन की यादों को याद करने।
प्रिया के गांव पहुंचते ही सभी लोग उससे यूं मिले एसे स्वागत किया जैसे उनका वर्षो से बिछड़ा कोई घर का सदस्य घर लौट आया हो।प्रिया के अपने परिवार में अब कोई रहा ही नहीं था मां पापा तो स्वर्ग सिधार गए थे और बहन अपनी ससुराल में थी पर गांव के अस्पताल उदघाटन समारोह और प्रिया से मिलने की खुशी उन्हे इतनी ज्यादा थी कि प्रेगनेंट होने के वावजूद वो वहां आईं थीं । पर वहां आते ही उन्हे सातवें महीने में ही अचानक लेवर पेन शुरू हो गया।प्रिया तो बहुत घबरा गई थी पर निशांत ने सब कुछ संभालने की कोशिश कर रहा था क्योंकि वो एक सर्जन डॉक्टर था इसलिए बच्चे पैदा कराने की उसने कोई पढ़ाई तो नहीं की थी पर गांव के हालातों की वजह से उसने इसमें भी काफी एक्सपीरियंस हासिल कर लिया था।
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अपनी दीदी की हालत देखकर प्रिया का कलेजा मुंह को आ गया था ।एक अच्छी गाइनी डॉक्टर होते हुए भी वो हॉस्पिटल की ओटी के बाहर एक नॉर्मल परिचारिका की तरह हैरान परेशान होकर इधर से उधर घूम रही थी और वहां बैठी गांव की महिलाओं की अपनी गुप्त परेशानी एक पुरुष डॉक्टर को बताने की परेशानी और मजबूरी भी वो उनके चेहरे पर काफी सिद्धत से महसूस करते हुए वो कुछ फैसले भी ले रही थी।
तभी उसे निशांत ने ओटी से बाहर आकर खुशखबरी सुनाई ..”बधाई हो प्रिया तुम एक प्यारी सी परी की मौसी बन गई हो”
ये सुनते ही प्रिया ने निशांत को खुशी से झूमते हुऐ उसे वहीं गांव में रहकर अपनी आगे की प्रेक्टिस करने की बात भी बोल दी थी।निशांत को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था।उसके अविश्वास भरे चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में लेकर प्रिया ने उसके माथे पर अपना प्यार अंकित करते हुए फिर से बोला था…….
“निशांत शहर में जाकर मैं अपने बचपन के वादे और सपनों को जैसे भूल ही गई थी पर तुम्हे मैं कभी नहीं भूल पाई हमेशा कुछ अधूरा सा लगता रहता था पर यहां आकर महसूस हुआ कि तुम्हारे साथ के बिना और अपने गांव के लोगों के लिए कुछ किए बिना मेरा जीवन अधूरा है क्या तुम मुझे अपनी जिंदगी में सामिल कर मेरे इस अधूरेपन को दूर करोगे।,,
इतना सुनते ही निशांत ने “हां” करते हुए अपने आलिंगन में बांध लिया।
देखते ही देखते ये खबर पूरे गांव में आग की तरह फ़ैल गई थी कि “अब हमारे हॉस्पिटल में एक महिला डॉक्टर भी होगी” और साथ ही निशांत के परिवार को भी जब ये सब पता लगा तो तुरंत ही निशांत की मां ने प्रिया को अपने कंगन पहनाते हुऐ अपने घर की बहू स्वीकार लिया था।
आज निशांत उसके परिवार के साथ-साथ पूरे गांव की आंखों में खुशी के आंसू और प्रिया की आंखों में अपनी पूर्णता के मोती झिलमिला रहे थे।
दोस्तों कभी-कभी हम बचपन से जिस सपने को पूरा करना चाहते है उसे शहर की चका चोद में भूल ही जाते है।पर सच्ची खुशी हमें अपने सपने पूरे करके ही मिलती है जो ये समझ जाते है वही सही मायने में खुश होकर अपनी जिंदगी जी पाते है।
धन्यवाद ।
आपकी दोस्त – अनिता शर्मा (बुंदेलखंडी)