“खुशी का मानक ” – उषा भारद्वाज

   उनके चेहरे पर बहुत तनाव था ।वो अस्पताल में लेबर रूम के सामने बार बार इधर उधर घूम रहीं थीं । कितनी बार सरिता ने कहा मम्मी बेड चाहिए लेकिन हर बार उनका एक ही उत्तर रहता कि” अभी नहीं, मुझे बेचैनी हो रही है ,जब तक कि सब ठीक-ठाक मुझे पता चल जाए, और निधि बाहर आ जाएगी । तब मैं ठीक से बैठूंगी।”

 उनके होंठ हिल रहे थे, लेकिन कोई आवाज नहीं आ रही थी ऐसा लग रहा था मन मे कोई प्रार्थना कर रही हैं। अंदर से बहुत दर्द से  चिल्लाने की तड़फने की आवाज आ रही थी। जितनी बार तेज आवाज आती, वह  रुक जातीं। 

      थोड़ी देर में वह आवाज शांत हो गई और एक बच्चे की रोने की आवाज गूंजने लगी । उनकी आंखों में खुशी के आंसू और होठों पर मुस्कान दौड़ गई । वह अपनी जगह पर खड़ी हो गई। उनके चेहरे पर खुशी चमक रही थी। तभी पास में खड़ी औरत ने पूछा-” क्या हुआ ? कोई आपका अंदर है क्या?

 उन्होने कहा-” हां मेरी बहू है।”

 उसने फिर पूछा-” क्या हुआ ? बेटा या बेटी ।”

वो खुशी से भरी आवाज में बोली-” यह तो पता नहीं। अभी कुछ बताया नहीं ।”

यह सुनकर उस औरत के होठों पर एक व्यंग भरी मुस्कान आ गई वह बोली-” यह पता नहीं है कि बेटा हुआ है या बेटी, फिर भी इतनी खुश।”

 उसकी बात सुनकर वो जैसे खुशी के सागर जिसमें डुबकी लगा रही थी मानो, उससे बाहर निकली और निश्चल मुस्कान के साथ बोली -“मेरी बहू ठीक हो, आने वाला बच्चा ठीक हो, फिर चाहे वह बेटा हो या बेटी । इससे क्या फर्क पड़ता है? और तुम्हारे लिए खुशी का मानक क्या है ? “

आखिरी बात बोलते बोलते उनके चेहरे की खुशी में कठोरता मिल गई थी जो सिर्फ उस औरत के लिए थी।

 उनकी बात सुनकर वह औरत शांत हो गई। शायद अंदर ही अंदर उसकी सोच में भी अपनी बहू के लिए परिवर्तन हो गया था जो लेबर रूम के अंदर थी।

 

उषा भारद्वाज

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