छत पर धूप की तरफ अचार की बरनी रखकर अवन्तिका ने बड़ी और पापड़ बनाने की तैयारी शुरू कर दिया । तभी अनिता जी ने छत पर पहुँचकर देखते हुए कहा..ये क्या बहु ? इतने कम क्यों बना रही है , इतने में क्या होगा? दस दिन बाद होली है । इतने तो हमारे घर में ही खर्च हो जाएंगे । तुम्हें तो पता है न होली बाद तुम्हारी #ननद रुचि आ रही है । दामाद जी को भी कितना पसन्द है ये सब, तो मात्रा थोड़ा और बढ़ा दे न ।
अवन्तिका ने “जी मम्मी जी ! बोलते हुए काम आगे बढ़ाना शुरू किया । अनिता जी छत पर चहल कदमी करना शुरू कर दीं तभी उन्होंने नीचे झांका और देखा किसी की गाड़ी उनके गैरेज के पास लग रही है । ध्यान से दुबारा देखा तो समझ आया अरे ! ये तो रुचि की गाड़ी है, और कुंदन बाबू नहीं दिख रहे । लेकिन रुचि तो होली बाद आने वाली थी,
अचानक कैसे आ गई । अब सीढ़ियों से नीचे उतरते वक़्त अनिता जी के दिमाग में उहापोह चल रही थी कि तभी रुचि मम्मी के पैर छूकर गले से लग गयी । अनिता जी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उसे कमरे में बिठाते हुए कहा..”रुक ! तेरी भाभी अवन्तिका और कविता को बुलाती हूँ । पानी पीते हुए रुचि ने कहा…नहीं मम्मी ! उन्हें अपना काम करने दो, मैं खुद ही छत पर जाकर मिल लूँगी ।
पानी पीकर छत पर गयी रुचि तो छोटी भाभी कविता बड़ी भाभी अवन्तिका के धुले हुए कपड़े धूप में डाल रही थीं और अवन्तिका भाभी बड़ी और पापड़ बनाने में व्यस्त थीं । अच्छा लगा रुचि को भाभियों को एक साथ मिल – बांटकर काम करते हुए देखकर ।
अवन्तिका ने नीचे से ऊपर तक रुचि को देखा और पूछा..”कुंदन बाबू कहाँ हैं ? अकेली आई हो क्या ? कविता ने दूर से ही पूछा..कुंदन जी से कुछ कहा सुनी तो नहीं हुई रुचि ? अचानक चली आयी तो थोड़ी चिंता होती है न ! रुचि के आँखों में आँसू आ गए, फिर भी उसने छोटी भाभी से कहा…मायके में रहने नही आ सकती क्या भाभी ? कविता ने हँसते हुए उत्तर दिया…क्यों नहीं आ सकती , अपने पति, बेटी के साथ आओ तो हमेशा स्वागत है । रुचि तुरंत कविता के कहने का मतलब समझ गयी लेकिन जवाब नहीं देना चाहती थी ।
अब सब सीढ़ियों से ऊपर चढ़ कर घर के अंदर गए तो सोफे पर जाकर धम्म से बैठ गई रुचि । अनिता जी बगल में बैठकर रुचि से पूछना शुरू कर दीं..बता क्या हुआ रुचि तेरे साथ ? रुचि रोकर अपने बारे में बताने लगी..”मम्मी ! कुंदन मेरी बात नहीं मानते, हमारी शादी की सालगिरह में भी वो मुझे घुमाने नहीं ले गए, मेरी सहेलियाँ हर सालगिरह में कहीं न कहीं जाती हैं ।
मेरी बेटी सिया को मम्मी जी हमेशा गुस्सा करती हैं मुझे ये सब देखकर अच्छा नहीं लगता । बर्दाश्त करते करते जब नहीं हुआ तो मैंने कुंदन जी से बोला..”जा रही हूँ मैं, मुझे नहीं रहना तो तुरंत तैश में कुंदन जी ने कहा ..”चली जाओ , जहाँ जाना है , फिर आना मत दुबारा, और मैं उठी सामान पैक की और आपके पास आ गई ।
“हाँ बेटा ! समझ सकती हूँ, ये तो गलत बात है, ऐसा नहीं करना चाहिए । मैं कुंदन जी को फोन करके समझाऊंगी , तुम ठीक से खाना खाओ और आराम करो ,बात कर लूँगी सब ठीक हो जाएगा । इन्हीं बातों के दौरान रुचि की भतीजी छवि ने प्रकाश जी का चश्मा गिराकर तोड़ दिया । अनिता जी ने गुस्से से चांटा लगाया तो वह रोने लगी
और अपनी मम्मी में चिपक गयी । फिर भी छवि के मम्मी पापा ने विरोध किया । उसके बाद छवि को गोद में बिठाया और उसे मनुहार करने लगी। रुचि ये सब देखकर स्तब्ध थी । चीकू और छवि दोनों दादी के साथ कमरे में सोते थे । रुचि को एक सप्ताह तो बहुत अच्छा लगा मायका सुख पाकर। पर उसके बाद वो ऊबने लगी, हर बात में उसे कुंदन की कमी खलने लगी । कभी – कभी कुंदन बेटी से बात कराने के लिए भी फोन करते तो रुचि फोन का जवाब नहीं देती ।
एक दिन अनिता जी के बड़े बेटे रौशन ने बोला…मम्मी ! रुचि यहीं रहेगी क्या ? उसके भेजने की तैयारी करो, कब तक ऐसे अकेली रहेगी ? कुंदन जी भी क्या सोच रहे होंगे ।रौशन ने गुस्से में कहा तो अनिता जी का जवाब आया..”क्या दिक्कत है मायके में रहने में ? तुमलोगों का नहीं खा रही जो इतनी फिक्र कर रहे हो । कुंदन जी लेने आएँगे तो रुचि चली जाएगी ।
कविता और अवन्तिका एक साथ बोल पड़ीं..”कुंदन जी लेने आएँगे तो जाएंगी न मम्मी ? यहाँ तो दोनों के आन की लड़ाई है।
अवन्तिका ने पापा जी से बोला..”देखिए पापा जी ! ऐसे तो नहीं चलने वाला । रुचि की गलती है तो वो माफी मांग नहीं रहीं, तो कुंदन जी से हम कैसे उम्मीद करें ?
प्रकाश जी ने कहा…”समझता हूँ बेटा ! (अनिता जी ने रुचि को बाहों में भर लिया । )”ऐसे ही तुमने मेरे साथ मनमरजी करके बेटी को बिगाड़ा और अब उसका ससुराल बर्बाद कर रही हो “।
प्रकाश जी ने खीझते हुए कहा तो अनिता जी दंभ रह गईं सुनकर ।
रुचि का हाथ छोड़ते हुए अनिता जी ने प्रकाश जी से कहा..”ऐसी बात आप क्यों करते हैं जी बार – बार । उसको सहारे की जरूरत है तो सहारा दे रही, बिगाड़ कहाँ रही हूँ ।
“बिल्कुल बिगाड़ रही हो तुम । गलत जगह सहारा दोगी तो बेटी कभी अपनी कमी नहीं देखेगी गलत करके भी बस सहारा ढूंढेगी । बस करो अब! प्रकाश जी की रोबीली आवाज़ सुन अनिता जी ने अपने मुँह पर चुप्पी साध लिया ।
थोड़ी देर बाद अनिता जी ने अवन्तिका के कमरे में जाकर कहा…अवन्तिका ! फोन लगाकर जरा बात कर कुंदन बाबू से कब लेने आ रहे हैं रुचि को ।
अवन्तिका ने फोन मिलाया..कुंदन जी की आवाज़ थी..”प्रणाम भाभी ! कहिए..कैसे याद किया । रुचि ने तो सारे दोष मेरे सुना दिए होंगे , अपना किस्सा तो बताया नहीं होगा । अगर आप ये बोलने के लिए फोन की हैं कि जो भी हुआ गलत हुआ, ऐसा नहीं होना था तो मैं आगे बात करूँगा, वरना विवादित बातों पर बात करके कोई फायदा नहीं है ।
चेहरे पर चिंताजनक भाव लाते हुए अवन्तिका ने कहा..”आप नाराज मत होइए कुंदन जी ! हम आपके साथ हैं, प्लीज बताइए क्या बात है । कुंदन ने कहा..”बच्चे एक दिन पापा के ऑफिस के कागजात पर पानी गिरा दिए, मम्मी ने गुस्से में कान खींच के एक चपत लगा दी तो रुचि मम्मी पापा के खिलाफ हो गयी और उनके मुंह पर भला बुरा कहने लगी ।
फिर पिछले सालगिरह मम्मी की तबियत खराब थी तो रुचि की जिद थी कि मुझे जाना है घूमने। रुचि यहाँ रहने आती और हम माँ की तबियत देखे बगैर घूम आते तो क्या अच्छा लगता ?
अवन्तिका और कुंदन की बातें स्पीकर पर हो रही थीं । अनिता जी अब रुचि की गोल और बहाने वाली बातों को समझ चुकी थीं ।
कविता कमरे में आकर खाना पूछने लगी तो अनिता जी ने बिल्कुल उदास मन से मना कर दिया ।
रुचि की बातें अब धीरे धीरे साफ हो रही थीं अनिता जी के सामने । कविता ने अनिता जी के आँसू पोछते हुए कहा…”मम्मी ! रोकर कमजोर पड़ने का समय नहीं है , अब आगे सोचना है कि हम कैसे रुचि को भेजें । कितना पहले आपको अवन्तिका दीदी और मैंने समझाया कि रुचि की दुःख में दुखी होने की बजाय उसे समझाइए लेकिन आप हमेशा हमलोग को ही दोषी ठहराती थीं कि तुमलोग मेरी बेटी को सुखी नहीं देखना चाहते ।
“अगर रुचि सही है मम्मी तो फिर तो हमें भी आपकी एक फटकार पर मायके चले जाना चाहिए” । अवन्तिका ने अपनी बात कही ।
“हाँ मम्मी ! वैसे तो दिन भर मेरा बेटा चीकू चीजों को बिगाड़ता रहता है और आप उसे गुस्साती, मारती हैं तो मैं भी नाराज़ होकर चली जाऊं ? कविता ने भी अपनी बात रखी । अब अनिता जी की आंखों से पर्दा हट रहा था ।
“देखिए मम्मी ! कल एक काम करते हैं। कुंदन जी को फोन करके बुलाते हैं । कल रुचि का जन्मदिन भी तो है ,खास हो जाएगा और रुचि के लिए एक सरप्राइज भी होगा । अवन्तिका ने उत्साहित होकर कहा और कुंदन जी से कल की योजना पर बात पक्की कर लिया ।
अगली सुबह अवन्तिका और कविता जल्दी उठकर रसोई में रुचि का मनपसंद खाना और केक बना लीं । रुचि की आँखें खुली तो देखा दोनों भाभियाँ बात करते हुए अपने कामों में ब्यस्त हैं । उसे अपने ससुराल की याद आने लगी …”मन ही मन बुदबुदाई…मैं तो अपनी ननद तूलिका दीदीऔर रश्मि दीदी के आने से भी चिढ़ जाती हूँ खाना बनाना पड़ता है तो । मम्मी तो बिल्कुल भी हाथ नहीं हिलाती लेकिन भाभियाँ अपना मन दुःखी नहीं करती हैं।
सोचते – सोचते पुरानी बातें उसकी आँखें छलछला उठीं ।
घर के लोग सब नहा – धोकर तैयार थे केक और स्नैक्स के साथ । रुचि को मम्मी ने जो कपड़े दिए थे वो पहना और बड़ी भाभी ने टॉप्स और छोटी ने अँगूठी दिया । सब पहन कर खुश थी रुचि पर कुंदन के साथ मनाया जन्मदिन और उसकी बेटी के हाथों का बनाकर दिया हुआ कार्ड सोचकर उसके चेहरे पर थोड़ी शिकन आ गई की तभी दरवाजे की घण्टी बजी ।
प्रकाश जी ने दरवाजा खोला..”चीकू, छवि, “फूफाजी ” कहकर कुंदन को जकड़ लिए । कुंदन की आवाज़ सुनते ही रुचि के चेहरे की रंगत ही बदल गयी । बहुत असमंजस में थी वो क्या बोले न बोले ।
केक काटी रुचि और जैसे ही पापा को खिलाने लगी पापा ने कुंदन के मुँह की तरफ रुचि का हाथ बढ़ा दिया । कुंदन ने रुचि को केक खिलाकर उसकी पीठ थपथपाई और गुलाब, चॉकलेट उसे उपहारस्वरूप दिया । पुराने अंदाज़ में रुचि उछलकर उसका धन्यवाद की । कविता ने स्नैक्स परोसे और रुचि पर फब्तियाँ कसते हुए बोलने लगी…”अब जाने का समय आ गया है मैडम रुचि ! तैयारियाँ कर दी है आपकी ।आप अपने ससुराल में खुश रहो और हम अपने ससुराल में ।अवन्तिका को भी ज़ोरों की हँसी छूट गयी ।
अनिता जी ने कहा..”खाना सब मिलकर खत्म कर लो जल्दी बेटा । फिर रुचि को अपने घर जाना है । खाने के बाद कविता ने सबके लिए रसमलाई निकाला और बड़ी, पापड़, अचार सब पैक कर दिया ।रुचि के कंधे पर हाथ फेरते अनिता जी ने कहा”तुम्हारी दोनों भाभियों ने मिलकर कितनी खुशहाल गृहस्थी संभाली है तुम भी वहाँ जाकर सबको खुश रखना, छोटी – छोटी बातों पर रूठना नहीं ।
“हाँ माँ ! ध्यान रखूँगी । शादी के बाद इतने दिन रहकर करीब से भाभियों को देखा है, गृहस्थी संभालने के लिए हर हाल में खुश रहना पड़ता है ।
रुचि ने माँ – पापा भाई के पैर छुए , और दोनो भाभियों को गले लगकर जी भर रोई ।
कुंदन के साथ गाड़ी में बैठकर रुचि ने सबको नम आँखों से मुस्कुराते हुए अलविदा किया और ससुराल की तरफ एक नई जिम्मेदारी लिए रवाना हो गयी ।
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह
#ननद