ख़ुद से ही लें ख़ुद के लिए प्रेरणा —पूर्ति वैभव खरे

    ऐसा कौन सा व्यक्ति है ? ‘जो जीवन में निराशावादी होना चाहता है’ शायद कोई नहीं; निराशा, उदासी,मायूसी या हार किसी को रास नहीं आती,फिर भी ये जीवन में मिलती अवश्य है, इनके बिना जीवन कहाँ चलता है? ऐसा कोई न होगा जो कभी पराजय की गली से न गुजरा हो।

     जिस तरह जन्म-मरण अक्षरशः सत्य है उसी तरह हार-जीत भी। ये हर किसी के जीवन में घटित होने वाली घटनाएँ हैं।


 हाँ! ये अलग बात है कि इसे स्वीकारने और इसे धारण करनी की क्षमता, मनःस्थिति सबकी भिन्न है, कोई पराजय को नया अवसर समझता है तो कोई जीवन का अंत,कोई तुरंत इसे स्वीकार कर आगे बढ़ता है, तो कोई वहीं ठहर कर इसका शोक मानता रहता है।

       जब हम दुःख में होते हैं,उदास होते है तब हमें किसी के सहारे की आवश्यकता पड़ती है, पर ये सदैव संभव नहीं ,क्योंकि कभी तो कोई ऐसा मिल जाता है जो हमारी मनःस्थिति को समझ हमारी उदासी बाँट लेता है और कभी कोई नहीं भी मिलता, तब हम गीत,कविताओं का सहारा लेते हैं और अक्सर वो हमें संबल भी देते हैं। हम जब भी हताश होते तो वो खोजने लगते हैं,जो हमें परिस्थितियों से लड़ने की प्रेरणा दे।

       हम यहाँ-वहाँ से  प्रेरणाएँ लेते हैं, हम  अक्सर निकल पड़ते हैं ऐसे शख़्स की तालाश में जो हममें ऊर्जा का संचार कर दे, ऐसी स्थिति में  हमें जो मिलता है,जैसा मिलता है उसकी प्रेरणा को पकड़ हम चल देते हैं।

     ख़ैर, ऐसी परिस्थिति में  आप किसी से भी प्रेरित हो सकते हैं। ये आप पर निर्भर है पर आप खुद से ही प्रेरित हों ये केवल आप पर ही निर्भर है, प्रत्येक प्रेरणा आपके भीतर है आप उसे आवाज़  तो दें और उसकी आवाज़ को  सुने फिर देखें। संसार की सभी  प्रेरणाएँ आपको कम लगेंगी, स्वयं की प्रेरणा के समक्ष।

    ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति में  दो प्रकार के प्रेरक विद्यमान हैं | जन्मजात प्रेरक और अर्जित प्रेरक। भूख,प्यास,नींद, यौन-इच्छा, मल-मूत्र त्याग ये पाँच जन्मजात प्रेरक हैं , जो हर व्यक्ति में  जन्म से ही होते हैं। बाकी अन्य प्रेरकों को हमारे मनीषी-मनोवैज्ञनिकों ने अर्जित प्रेरकों की संज्ञा दी है, जैसे-उत्साह,भय, क्रोध आदि।

    उनका मनाना है कि ये प्रेरक सबमें नहीं होते बल्कि इन्हें व्यक्ति समाज से अर्जित करता है, हर व्यक्ति अपनी रुचि के अनुरूप इन्हें ग्रहण करता है।

    जो भी हो मेरा मानना है कि सारे प्रेरक व्यक्ति के भीतर ही हैं। परन्तु सुप्तावस्था में हैं ।क्योंकिं हम उन्हें जन्मजात प्रेरकों की भाँति जगाते ही नहीं, हम दूसरों से मोटिवेट होने के लिए इतने उतावले होते हैं, कि अपनी  स्वयं की प्रेरणा को नजरअंदाज करते रहते हैं।

    स्मरण रहे जितनी स्थायी और प्रबल आपकी स्वयं की प्रेरणा होगी उतनी ही अस्थायी और कमज़ोर बाह्य प्रेरणा होगी। आप सब से सलाह ले मशविरा लें और निःसंकोच दूसरे से प्रेरित भी हों, परन्तु अपनी स्वयं की प्रेरणा की उपेक्षा करके नहीं। आपको आपकी ख़ुद की प्रेरणा आपको तब तक प्रेरित करेगी जब तक आप अपना लक्ष्य नहीं पा लेते क्योंकिं वो सैदव आपके साथ रहेगी।  

     आप कितने भी भाषण सुन लें,प्रेरणादायक गीत,कविताएँ सुन ले,यूट्यूब या अन्य माध्यमों से वीडियो, फ़िल्म आदि देख लें ये सब-कुछ आपको कुछ समय तक तो याद रहेगा, परन्तु बहुत देर तक नहीं।

आपको स्वयं को प्रेरित करने के लिए ख़ुद की प्रेरणा से मिलना ही होगा।

     आपकी भीतर की प्रेरणा यदि जाग गई तो आपका भाग्य जगना भी तय है। तो अपने कानों पर हाथ रख,भीतर की आवाज़ सुनें और कहीं और प्रेरणा खोजने से बेहतर अपने अंतस की प्रेरणा को आत्मसात करें। 

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