खुद को खुश रखना सबसे बड़ी जवाबदारी है।-सुधा जैन  

निरुपमा सुंदर, समझदार, पढ़ी लिखी प्यारी सी लड़की है। उसने इंटीरियर डिजाइनिंग में ग्रेजुएशन किया है।

लड़कियों के जीवन के बारे में सोचती थी कि अगर अच्छा परिवार पढ़े-लिखे लोग और आर्थिक रूप से सब कुछ ठीक हो तो अपने घर में ही रह कर घर को ही स्वर्ग बनाया जा सकता है। सबसे हिल मिलकर रहो ,घर को सजाओ  संवारो,सभी प्यार से रहो, आने जाने की परेशानी नहीं। ऐसा सोचती थी, जैसा हम चाहते हैं ,वैसा हो भी जाता है ।

निरुपमा के लिए एक प्यारा सा रिश्ता आया । आशुतोष डॉक्टर  हैं, लेकिन उन्हें सेम प्रोफेशन वाली लड़की नहीं चाहिए। पापा कॉलेज से मनोविज्ञान के प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए। मम्मी गृहिणी है। उन्होंने निरुपमा को पसंद  कर लिया।

विवाह हो गया और निरुपमा घर को स्वर्ग बनाने के लिए अपने ढेर सारे  सपने लिए ससुराल आ गई। शादी होकर जैसे आई, घर तो सर्व सुविधा संपन्न  था, पर घर में उसकी सासू जी का आतंक था। घर के नौकर  भी उनसे डरते थे। वह बहुत ही अनुशासन प्रिय, सफाई पसंद, और कंजूस थी। निरुपमा घर का इंटीरियर बदलना चाहती थी, पर सासूजी की सहमति नहीं थी। वह अपने हाथों से घर की सफाई भी करती लेकिन सासूजी कुछ न कुछ नुक्स निकालते।

घर पर मिठाई, ड्राई फ्रूट्स की कमी नहीं थी ,लेकिन अपने कंजूस स्वभाव के चलते वे सभी चीजों को छुपा कर रखती थी। कभी-कभी तो चीजें खराब हो जाती,चीटियां आ जाती । उनका स्वभाव ऐसा ही था।


निरुपमा ने प्यार से ,अपनेपन से उनके स्वभाव को बदलने की कोशिश की। लेकिन कुछ भी नतीजा नजर नहीं आ रहा था। वह महसूस करती थी कि उसके सासु जी को उसकी कोई भी बात अच्छी नहीं लगती ,उसके मन में यह प्रश्न भी आते की शादी के समय तो जो बहू चांद का मुखड़ा लगती है बाद में उसमें सिर्फ कमियां ही कमियां क्यों नजर आती है?

सासू मां केहृदय  में क्यों नहीं प्यार उमड़ता है ?क्यों नहीं वे उसे अपने बेटी समझती हैं ? जिस प्यार और सम्मान से किसी की बेटी को घर लाते हैं फिर उसको बाद में क्यों नहीं रख पाते?

इससे उसके चेहरे पर एक अजीब सी उदासी और सन्नाटा पसर रहा था ।वह दुबली भी हो रही थी। कभी-कभी सिर भी दुखने लगता था। लगता था क्या करूं? जो मेरी सासु मां खुश हो जाए। आशुतोष का स्वभाव तो बहुत अच्छा था वह अपनी पत्नी का साथ ही देते थे लेकिन अपनी मां से क्या कहे?दिनभर तो निरूपमा को अपनी सास के साथ ही रहना होता था।

शादी के कुछ माह बाद ही निरूपमा के ससुर जी अपनी बहू के चेहरे की उदासी देख कर बोले, “देखो निरुपमा !मैंने तो  तुम्हारी सास को निभाया, क्योंकि वह मेरी पत्नी थी, और मेरे पास इसका कोई हल नहीं था , लेकिन तुम्हारे पास अपना पूरा जीवन है,

और इसका स्वभाव बदलने वाला नहीं है ,तुम अपना जीवन सुखी होकर  बीतासकती हो, जरूरी नहीं है कि सब एक साथ रहकर ही खुश रहे। तुम्हें भी खुश रहने का अधिकार है,खिलखिलाने का अधिकार है ,अपने सपनों के अनुसार अपने घर को सजाने का अधिकार है , स्वयं को खुश रखना स्वयं की सबसे बड़ी जवाबदारी है। वह खुशी तुम यहां कभी महसूस नहीं कर पाओगी। कहानियों में अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है ,पर असली जिंदगी में सब कुछ एकदम ठीक नहीं होता ।


मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारे सास कभी भी बदलने वाली नहीं है, ना तो उनका कभी सफाई का फोबिया खत्म होगा, ना कंजूसी का ,ना स्वभाव का रूखापन कम हो पाएगा। अगर तुम यह सोचती हो कि हम अकेले रहने चले जाएंगे, तो लोग क्या कहेंगे ?तो यह चार लोग कौन हैं मुझे तो बिल्कुल समझ में नहीं आता ,और किसे किस की परवाह है। हम भी किसकी परवाह करते हैं?

हमें जो अच्छा लगे, हमें वही करना चाहिए।

मुझे पता है ,तुम बहुत ही समझदार और सुलझी हुई लड़की हो ,पर मुझे यहां तुम्हारा उदास चेहरा अच्छा नहीं लगता है।  मैं चाहता हूं ,इसी शहर में अपना दूसरा घर है, तो वहां जाकर रहो सभी को जीवन में अपना-अपना स्पेस चाहिए ।जहां वह खुल कर जी सकें, नहीं तो मनो ग्रंथियां हम पर हावी हो जाती है,

और वह अवसाद ,माइग्रेन इन रूपों में सामने आता है। मुझे पूरा विश्वास है ,तुम मेरी बातों को समझोगे। निरुपमा उनकी बातों को ध्यान से सुन रही थी, और उसमें उन्हें सत्यता भी नजर आ रही थी। शाम को ही निरुपमा के ससुर जी ने अपने दिल की बात अपने बेटे और पत्नी के सामने रखी और निरुपमा के सामने नया जीवन स्वागत के लिए तैयार खड़ा था।

सुधा जैन

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