खुद की पहचान – कामिनी मिश्रा कनक  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : अजी आज तो बड़े दिनों बाद घर से अच्छी सी खुशबू आ रही है…. रमा जी क्या पका रही हैं आप…लगता है आज तो कुछ अच्छा खाने को मिलेगा…

क्या बात है , रमा जी आज इतने सारे पकवान….. कोई खास मेहमान आ रहा है क्या घर में….. 

बस बस थोड़ा सब्र तो रखिए कुणाल के बापू एक ही सांस में आप तो बोलते ही जा रहे हैं । यह सब खाना मैं आपके लिए ही तो बना रही हूं । 

आज क्या खास बात है……..आज मेरा जन्म दिवस है क्या ….या हमारी शादी की सालगिरह है ……रमा जी ….जो इतनी सारी पकवान बना रही हैं आप…. आज आपकी तबीयत तो ठीक है ना. …. 

हां …हां …..कुणाल के बापू मेरी तबीयत भी ठीक है , ना ही आपका जन्म दिवस है और ना ही हमारी सालगिरह है।

बस आज मुझे अपने आप को निखारने का मौका मिला है ,  आज मैं बहुत खुश हूं , बहुत खुश……बहुत ज्यादा खुश हूँ …… बस उसी खुशी में यह सब पकवान बना रही हूँ। 

शांत शांत…. रमा जी …..पहले आप यह बताइए… कि आज आप इतना खुश क्यों है , 

ऐसा क्या खजाना मिल गया है आपको जो आज आप इतना खुश है । 

कुणाल के बापू आपको याद है पिछले महीने जब कुणाल और मेघा बहू आई थी , तो मैं उनके लिए पकवान बनाकर कर दी थी …. जिसे वह अपने साथ शहर ले गई । 

हां…हां …..रमा जी मुझे सब याद है इसमें आपको खुशी किस बात की है,  कि आपने पकवान बना कर दिया , या  वह पकवान शहर ले गए …..

आज किस खुशी में आप यह पकवान बना रही हैं ।

आपको याद है कुणाल के बापू जब मैं इस घर में ब्याह कर आई थी , तो मेरा एक सपना था कि मैं अपनी पहचान खुद से बनाऊं । वह सपना आज मेरी बहू मेघा की वजह से पूरी होती दिखाई दे रही है । इसलिए आज मैं बहुत खुश हूं कुणाल के बापू । 

पर रमा जी अब आप इन सब चक्कर में क्यों पड़ती हैं…. यह सपने वपने देखना कुछ समय ही अच्छे लगते हैं । घर गृहस्ती बाल – बच्चे होने के बाद यह सब चकनाचूर हो जाता है । 

कुणाल के बापू पिछले महीने जब मेघा बहू आई थी तब उसे स्टोर रूम में कुछ कागज मिले उसमें मेरी एक पुरानी तस्वीर मिली थी 

 रमा जी कौन सी तस्वीर

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कुणाल के बापू यह  वो तस्वीर है जब मैं कॉलेज में थी, और मैं स्टेट लेवल पर कुकिंग क्लास में फर्स्ट आई थी ……. और यह वो कागज है जब मुझे शहर के बड़े होटल में नौकरी मिली थी आपके और अम्मा जी के कहने पर मैं उस नौकरी को छोड़ दी थी उस वक्त मैं अपने सपनों को अपने ही हाथों कुरेत दी थी । 

रमा जी अब इन बातों को करके क्या फायदा, इतने सालों बाद अब आपको फिर से खाना पकाने का भूत सवार हुआ है क्या. ….. 

नहीं कुणाल के बापू मुझे अपनी पहचान बनाने का मौका मिला है जिसको इस बार में अपने हाथों से जाने नहीं दूंगी । 

कैसी पहचान  रमा जी अब आप क्या करेंगी … अब आप इस उम्र में खाना पकाओगे । 

मुझे कुछ नहीं करना है कुणाल के बापू जो करना था वह मेघा बहू कर चुकी है आपको पता है मेघा बहू जिस दफ्तर में काम करती है उनके बॉस का फाइव स्टार होटल है…. 

अच्छा  तो फिर राम जी यह पकवान लेकर आप उस होटल मे जायेगी। 

नहीं कुणाल के बापू यह पकवान तो  पहले ही मेघा बहू अपने बॉस को खिला चुकी है , अब तो मुझे शहर जाकर उसके बॉस के फाइव स्टार होटल में नौकरी करना है । 

अब कहां रमा जी आप वहां जाकर खाना पकाओगे आप अपनी उम्र तो देखिए. . 

मैं खाना पकाने नहीं जा रही हूं कुणाल के बापू 

……मुझे तो  फूड टेस्टिंग की नौकरी मिली है । उससे भी ज्यादा खुशी की बात यह है की हम दोनों अपने बेटे और बहू के साथ रहेंगे ।

मेघा का फोन आया था वह आने ही वाली होगी यह पकवान मैं मेघा बहू के लिए ही बना रही थी । 

तभी गेट की घंटी बजती है…  टिंग टोंग. .. … टिंग टोंग… 

लगता है मेघा बहू आ गई , भगवान ऐसी बहू सबको दे। 

आओ बेटा आओ अभी मैं तुम्हारे बारे में ही कुणाल के बापू से बात कर रही थी… 

मम्मी प्रणाम …पापा प्रणाम

. आप दोनों कैसे हैं । मम्मी आप तैयार हैं, अपने मुकाम को हासिल करने के लिए अपने सपनों को पूरा करने के लिए…. अपनी एक नई पहचान बनाने के लिए । 

रमा जी- हां बेटा मैं तैयार हूं ….पर लोग क्या कहेंगे कि इस उम्र में नौकरी करने के लिए …मैं बाहर जा रही हूं ।

मेघा- माजी उम्र का क्या है उम्र तो बढ़ती ही रहती है,  पर पहचान बनाने के लिए उम्र नहीं देखी जाती है और आप लोगों का छोड़िए लोगों का तो काम ही है कहना कुछ ना कुछ तो कहते ही रहेंगे। 

कुणाल के बापू – मेघा बहू मुझे माफ कर दो , मैं कभी रमा को समझ ही नहीं पाया …. मैं रमा का सबसे बड़ा गुनहगार हूं अपने स्वार्थ के पीछे मैंने इसके पंखों को काट दिया था ….. इसे इस घर के पिंजरे में बंद करके रख दिया ….यही सोचकर कि लोग क्या कहेंगे रिश्तेदार क्या कहेंगे की बहू की कमाई खा रहा है । 

मेघा- पापा…देर आए दुरुस्त आए…

लेकिन पापा औरतों की भी ख्वाइशे  होती है , जिसे वह परिवार के खातिर कुरेत तो देती है … पर अपने मन से कभी नहीं निकाल पाती है । उस दिन जब मैं मां जी से बात की तब मुझे पता चला कि  इनके सपने बहुत बड़े थे ….जिसे यह पूरा नहीं कर पाई  लेकिन अब इन्हें वह मौका मिला है । यह अपने सपने भी पूरा करेंगी और अपनी खुद की पहचान भी बनाएंगी । 

आपको पता है पापा मां का बनाया हुआ डिश मेरे बाॅस और उनकी फैमिली को इतनी पसंद आई कि उन्होंने तो अपॉइंटमेंट लेटर भी साथ  के साथ ही दे दिया …. 

कुणाल के बापू – रमा चल शहर चलते हैं … मैं भी तेरे साथ चलूँगा  , जो तेरे लिए पहले मैं नहीं कर पाया , वह मेघा बहू ने कर दिया… धन्य है बेटा तू  । 

रमा जी की आंखों में आज वह चमक झलकने लगी जो शायद  कई सालों पहले कही खो गई थी …. 

कामिनी मिश्रा कनक 

फरीदाबाद

 

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