खुद के लिए भी सोचना ज़रूरी है … – रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : “यार तुम लोग चली जाओ मैं नहीं आ सकती तुम लोगों के साथ….तुम सही कह रही हो मैं कितनी खुश रहा करती थीं पर अब चिड़चिड़ी सी रहने लगी हूँ …मेरा मन नहीं करता अब कही भी आने जाने का उपर से पति , बच्चे और परिवार के बीच मैं खुद के लिए सोचना भूल गई हूँ… कभी बच्चों के एग्ज़ाम..तो कभी पति के ऑफिस टूर चले जाने पर सब कुछ अकेले ही सँभालना पड़ता है …. मैं नहीं आ सकती….

पति और बच्चों को छोड़कर जाना वैसे भी मुश्किल होगा..और सास ससुर तो कभी भी यहाँ आ जाते तो उनको अकेले छोड़ कर जाने का मतलब है … मैं परिवार पर ध्यान ही नहीं देती ….यार कभी कभी प्यार से भरा मन भी रिक्त होता है.. हमारे पास सुख सुविधा की हर चीज उपलब्ध होती हैं फिर भी हमारे मन का एक कोना जाने क्यों खाली खाली सा रह जाता।” अवनि अपनी दोस्त गरिमा से फोन पर कहे जा रही थी जो उसे पुराने दोस्तों के साथ गोवा चलने के लिए फोन की थी

‘‘ क्या यार तू भी ना जाने क्या देवदास टाइप बातें करनी लगी है…मैं कुछ नहीं सुनना चाहती हूँ हम चार दोस्त मिलकर गोवा जाने की प्लानिंग कर चुके हैं बस तू भी हमारे साथ चल रही….अब बच्चे बड़े हो गए हैं वो सब मैनेज कर लेंगे….हम कब अपनी ख्वाहिशों को तवज्जो देते हैं बता बस जो पति और बच्चों को पसंद उसमें ही खुद की खुशी खोजने लगते हैं… अब बहुत हुआ यार…सब अपने अपने हिस्से की खुशी जी रहे तो चार दिन हम क्यों नहीं….बस कुछ मत सोच….हमारे साथ चल….तू बोल तो मैं तेरे पति से बात कर लूँ?”गरिमा ने कहा

‘‘ तू इतना बोल रही है तो मैं कोशिश करती हूँ….तनय को आने दे उनको पूछ कर बताती हूँ ।”कहकर अवनि ने फोन रख दिया

अवनि हँसमुख स्वभाव की सीधी सरल लड़की। 

पति और दो वयस्क होते बच्चों की मां , अपनी जिम्मेदारी निभाते निभाते वो अपने लिए जीना भूल सी गई थी वो कहते हैं ना शादी के बाद अक्सर बच्चों और परिवार के पीछे वह खुद को भूल ही गई… यही हाल अवनि का हो रखा था….शायद हम औरतों के हिस्से में खुशी हमेशा दूसरों के साथ ही बाँध कर आती है….बस घर गृहस्थी सम्भालते सम्भालते खुद को कभी ना ढंग से सँवारने का सोचती ना अपनी पसंद का खाने का।

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फिर अब पैंतालीस की उम्र में आते आते उसका ऐसा विरक्त मन तनय को भी कभी कभी परेशान कर देता था। 

वो बहुत बार पूछ चुके थे,”क्या बात है अवनि तुम यूँ हमेशा काम में ही क्यों लगी रहती हो….. कभी कभी तो समझ ही नहीं आता तुम्हें क्या चाहिए?”

अवनि आज तनय के आने से पहले रात के खाने की तैयारी कर ली थी ताकि शाम की चाय के साथ गरिमा की बात रख सके।

 तनय आज थोड़ी देर से घर आये।

काम का बोझ और थकान चेहरे पर दिख रही थी। 

खैर चाय के साथ अवनि हिम्मत करके गोवा जाने की बात रख दी।

“अकेले चार औरतें मिलकर गोवा जाने का सोच रही हो….दिमाग खराब तो नहीं हो गया है तुम्हारा….ये सब चोंचले ना अमीर घरों की औरतों के होते…हम जैसे लोग अकेली औरत को गोवा नहीं भेजते…ये सब तुमने सोचा भी कैसे?‘‘ तनय तैश में आकर बोला

अवनि चुप हो गई।

दूर अब कमरों में बैठे बच्चों ने भी दोनों की बातें सुनी।

कुछ देर बाद अवनि रसोई में जाकर रोटियाँ सेंकने लगी और तनय टीवी देखने मे व्यस्त हो गए।

अवनि की बेटी अन्वी  बीस साल की हो गई थी और बेटा अनय सत्रह साल का मतलब दोनों ही समझदार हो गए थे।

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दोनों अवनि को बुलाकर अपने कमरे में ले गए और पूछे,”माँ आप जाना चाहती हो?…अगर आपका मन है तो मन को पक्का करो और जाओ….हम लोग भी तो कॉलेज टूर पर चले जाते हैं….पापा भी ऑफिस के काम से टूर पर निकल ही जाते है ….बस एक आप हम सब की वजह से कही नहीं जाती हो….हम पापा से बात करते हैं….हमें मना नहीं कर पायेंगे….बस आप गरिमा आंटी के साथ जाओ और एन्जॉय करो।”कहकर दोनों अवनि के जवाब का इंतजार करने लगे

“रहने दो बेटा…. पापा को कभी पसंद नहीं आयेगा…मैं वैसे भी कभी उनके बिना कहीं नहीं गई हूँ…तो अब इस उम्र में कैसे जा सकती हूँ….बात को यही खत्म करते हैं….मुझे नहीं जाना।”उदास होकर अवनि ने कहा

बच्चों ने बिना अवनि को बताए किसी तरह पापा को बहुत समझाया तो वो हाँ कर दिए।

अवनि को जब पता चला उसे आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी।

जाने से पहले अन्वी ने मम्मी के लिए अच्छी अच्छी ड्रेसेज ला दी और प्रॉमिस लिया कि ये गोवा जाकर ही देखना।

अवनि ने खाने पीने का लगभग सामान तैयार कर दिया था ताकि किसी को कोई दिक्कत ना हो। 

काम वाली को भी सब समझा दिया था… वो इतने दिन खाने की ज़िम्मेदारी भी उठा ली थी पर अवनि को थोड़ा संशय भी था पहली बार ऐसे परिवार को छोड़कर जाने का सोच रही थी ।

तनय अवनि के जाने से खुश नहीं थे पर बच्चों के सामने कभी कभी एक बाप भी हार मान लेता है जब वो बात अपनी माँ की करने लगे हो।

अवनि चार दिन गोवा में दोस्तों के साथ बहुत खुश नजर आ रही थी…. बच्चों को हर बात फोन कर के बताया करती 

….तनय से बात करने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।

अवनि ने ये चार दिन अपनी ख्वाहिशों के साथ जिया और उसके चेहरे की चमक बता रही थी कि कभी कभी खुद के लिए भी खुश रहना जरूरी है तभी हम प्यार से परिपूर्ण हो सकते है तन से भी मन से भी।

घर आकर अवनि में बहुत बदलाव आ गया था। 

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वो अब खुश रहने लगी थी। 

खुद को सँवारने लगी थी ….वो असर उस ड्रेस का था जो अन्वी ने दिया था जिसको पहन कर अवनि को एहसास हुआ कि उम्र कोई भी हो, आपको जिसमें खुशी मिलती हो वो कर लो। 

तनय भी अब अवनि के बदले रूप से हैरान था। 

अब अवनि के अंदर कोई कोना रिक्त नहीं रहा था।अब वो  प्यार से परिपूर्ण हो गया था …खुद से भी प्यार करना ज़रूरी है थोड़ा बदलाव करना ज़रूरी है एक ही ढर्रे पर चलते चलते इंसान ऊब जाता है ।

 हम औरतें सच में  बच्चों और परिवार के आगे वो खुद को भूल ही जाती है ….खुद के लिए प्यार तो हमारे अंदर भी भरा हुआ रहता है बस खुद के लिए जो प्यार होना चाहिए वो कोना हमेशा हम रिक्त ही छोड़ देते हैं….जब हम खुद को खुश रखेंगे तभी सबको खुश रख सकते। 

ये बातें हमारे पति और बच्चों के साथ साथ हमारे परिवार वालों को भी समझना चाहिए। 

एक औरत खुश रहेगी तभी घर के हर सदस्य को वो खुश रख सकती है।

मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#वाक्य 

# बच्चों और परिवार के पीछे वह खुद को भूल ही गई…

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