खुद का संडे – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

नीलांश कई दिनों से देख रहा था कि निली काफी उदास और गुमसुम सी होती जा रही है।बस मशीन की तरह अपना काम निपटाती रहती है।ना हँसना न खिलखिलाना। माँ-पापा की चाय, बिट्टू-पिंकी की पढ़ाई, लंच-डिनर, उसका टिफिन, घर की साफ-सफाई सब काम बिल्कुल परफेक्ट, समय पर लेकिन खुद बिल्कुल बुझी-बुझी सी। जब भी नीलांश उससे इस बारे में बात करना चाहता वह टाल जाती।

एकदिन नीलांश के हाथ निली की डायरी लगी तो उसे पता चला कि उसकी प्यारी निली अपनी जिंदगी की एकरसता से ऊब गयी है। घर में किसी को यह एहसास ही नहीं है कि वह मशीन नहीं इंसान है। वह भी थकती है, उसे भी आराम चाहिए, उसकी भी कुछ ख्वाहिशें हैं। सबकी ख्वाहिशें पूरी करते-करते उसकी खुद की छोटी-छोटी ख्वाहिशें जैसे- सड़क किनारे खड़े होकर गोलगप्पे खाना, आसमान में बैलून उड़ाना,

चाय की प्याली के साथ नीलांश का उसे जगाना कहीं खोती जा रही है।बाकी सबके पास तो अपने शौक पूरे करने के लिए, आराम करने के लिए संडे होता है लेकिन उसके पास तो वह भी नहीं क्योंकि उस दिन तो उसे सबकी स्पेशल डिमांड्स पूरी करनी होती है। उसका अपना संडे तो शादी के बाद मानो खो ही गया है।ये सब पढ़कर नीलांश को बहुत अफसोस हुआ और खुद पर गुस्सा भी आया कि वह क्यों नहीं अपनी प्यारी निली को समझ पाया।

फिर अचानक उसकी आँखें चमक उठी। दो दिन बाद ही तो संडे है।उसने सोच लिया कि इस संडे वह अपनी निली की लाइफ में नई ताजगी भरेगा।उसे पुरानी हंसमुख निली से मिलवाएगा।

संडे के दिन नीलांश जल्दी जग गया।उसने चाय के साथ आठ बजे निली को जगाया।”अरे! आपने चाय क्यों बनाई? हे भगवान!आठ बज गए।अलार्म कैसे नहीं बजा? माँ-पापा की चाय?” निली ने हड़बड़ाते हुए पूछा।

“रिलेक्स निली, अलार्म मैंने बंद किया था और माँ-पापा चाय पीकर बच्चे के साथ सामने पार्क में गए हैं। यदि एक दिन देर से उठ गई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा।” नीलांश ने उसे शांत करते हुए कहा।

“आपको क्या पता संडे को तो डबल काम होता है। बिट्टू ने नाश्ते में डोसे के लिए बोला है।हटो बहुत काम है।मेरे पास इन सब बातों के लिए समय नहीं है।” निली ने कहा।

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“हाँ, सही कहा समय ही तो नहीं है तुम्हारे पास खुद के लिए।देखो कैसी मुरझा गई हो।तुम्हारी दस बजे की पार्लर में अपॉइंटमेंट है।फुल पैकेज है, पेडीक्योर, मेनिक्योर, फेसियल सबकुछ।जाओ रिलेक्स करो।जब तुम्हें लेने आऊँगा तब सड़क किनारे गोलगप्पे भी खाएँगे औऱ आकाश में बैलून भी उड़ायेंगे।फिर तुम्हारे फ़ेवरेट रणवीर सिंह की मूवी देखकर डिनर करके घर आएँगे।” नीलांश ने हँसते हुए कहा।

“पर, घर का काम।एक संडे ही तो मिलता है घर के पेंडिंग कामों को निपटाने के लिए।निली ने कहा।

“सही कहा, एक संडे ही तो मिलता है खुद को भी तरो-ताज़ा करने के लिए। जिम्मेदारियाॅं कभी खत्म नहीं होंगी। तुम तो जिम्मेदारियों के चक्कर में खुद को भूलती जा रही हो। कहीं ना कहीं इसमे हमारी भी गलती है हमने तुम्हें ‘टेकेन फॉर ग्रांटेड ‘ले लिया है,लेकिन अब और नहीं। मैने शर्मा जी को बोल दिया है वह अपनी खाना बनाने वाली कुक को आज यहाॅं भी भेज देंगे और बाकी का काम हमसब मिलकर करेंगे।क्यों बच्चों?” नीलांश ने गुड्डू और पिंकी की ओर देखते हुए कहा।

“हाँ-हाँ, सिर्फ बच्चे ही क्यों।हम भी तुम्हारी मदद करेंगे और अपनी बहू को उसका संडे गिफ्ट में देंगे।” पापाजी ने अंदर आते हुए कहा।

फिर माँ ने निली के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा “बेटी, हमें कभी ध्यान ही नहीं आया कि तुम भी थकती हो,तुम्हें भी आराम चाहिए लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।अबसे हम सब मिलकर काम करेंगे ताकि तुम भी रिलेक्स कर सको और रही आज की बात तो इस संडे तुम्हारी काम से छुट्टी।”

ये सुनकर बिट्टू और पिंकी चिल्लाने लगे “हुर्रे! आज मम्मी की भी छुट्टी है” और निली की आँखों में खुशी के आँसू आ गए क्योंकि सालों बाद ही सही उसे उसका खुद का संडे मिल गया था।

दोस्तों, यह बात सही है कि जिम्मेदारियाॅं कभी खत्म नहीं होंगी। लेकिन इन्हीं जिम्मेदारियों के बीच से ही कुछ पल खुद के लिए चुराने पड़ते हैं। खुद का संडे ढूॅंढना पड़ता है। आपकी क्या राय है इस बारे में?…

धन्यवाद

श्वेता अग्रवाल

साप्ताहिक वाक्य कहानी प्रतियोगिता#जिम्मेदारियाॅं कभी खत्म नहीं होंगी।

शीर्षक-खुद का Sunday.

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