सविता की सौत सीता ने सविता को गले लगाते हुए कहा, छोटी, तुमने तो शादी करने के बाद अपना घर-बार ही भुला दिया है, वो घर आज भी तुम्हारा है। तुम अपने घर और हम सबको कैसे भूल सकती हो। तुमने बहुत अच्छा किया जो दूसरी शादी कर ली। अपने ऊपर का कलंक तुमने धो दिया।सबके मुंह पर इस बच्चे ने चांटा जड़ दिया है जो तुम्हें बांझ और निपूती कहते थे। सासूजी भी बहुत दुखी और शर्मिंदा हैं, उन्हें सच्चाई पता नहीं थी ना। अब जाकर मैंने उन्हें बताया।
छोटी बोलो ना,आओगी ना अपने उस घर भी। तीज त्यौहार पर अजय, अनीता और हम सब तुम्हारा और मास्टर जी का बेसब्री से इंतजार करेंगे। वादा करो हमसे।
सविता ने भावुक हो कर कहा, हां दीदी, मैं जरूर आऊंगी, आपने इतना सब कुछ होते हुए भी मुझे आदर मान दिया, मैं आप सबको नहीं भूल सकती, मैं वादा करती हूं जब तक जिंदगी रहेगी मैं उस घर में आती रहूंगी। एक दूसरे के गले लग कर रोते हुए सविता ने अपनी सौत और अपने पहले पति के बच्चों को विदा किया।
सविता के बेटे के जन्मोत्सव पर सविता ने अपने पहले ससुराल वालों को आमंत्रित किया था।
सबके चले जाने पर सविता चुपचाप अपने कमरे में जाकर लेट गई, उसके आंखों से आंसूओं की धार बहने के साथ साथ विगत जीवन की पूरी कहानी एक फिल्म की रील की भांति चलने लगी।
सविता के घर में केवल उसकी मां के सिवाय कोई नहीं था, पिता बचपन में ही गुजर चुके थे। सविता पढ़ने में, गाने में बहुत ही होशियार थी। गांव में ही उसने बीए करने के बाद बीएड किया और उसकी नौकरी शहर में एक स्कूल में हो गई। जिस छोटे से घर में वो किराये से रहती थी उसके बगल के ही घर में एक सुदर्शन, युवक रवि अकेले ही रहता था। आते जाते दोनों में दोस्ती हो गई। पता चला कि वह एक आफिस में क्लर्क है। धीरे धीरे दोनो में ये दोस्ती प्रगाढ़ रिश्ते में बदलने लगी। रवि ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा,जिसे सविता और उसकी मां ने स्वीकार कर लिया, हालांकि वह उम्र में सविता से बहुत बड़ा था ।
दोनों की शादी एक मंदिर में दोस्तों और सविता की मां की उपस्थिति में हो गई। फिर दोनों ने कोर्ट मैरिज भी कर लिया।
सविता के पूछने पर रवि ने बताया कि उसके घर वाले इस शादी के खिलाफ हैं इसलिए वो शामिल होने नहीं आए।
सविता को कुछ महीनों के बाद
रवि अपने गांव ले गया वहां देखकर सविता हैरान रह गई कि रवि शादीशुदा है और उसके दो बच्चे भी हैं। उसके साथ इतना बड़ा धोखा। वह रोते हुए बैठी थी कि उसकी सौत सीता ने आकर कहा,बहना, हमें सब पता है इन्होंने हमसे सब बताया था,हम गंवार, अनपढ़,जाहिल हैं उनके साथ शहर में नहीं रह सकती,उनकी बदनामी होगी। इसलिए वो एक पढ़ी-लिखी नौकरी वाली से शादी करने जा रहे हैं। तुझे रहना हो तो रहो वरना अपने बच्चों को लेकर अपने मायके चली जाओ। मैं अब कहां जाऊंगी,बस मैंने हां कर दिया। तुम वहां रहकर इनकी देखभाल, सेवा करना मैं यहां गांव में रहकर इनके माता-पिता और खेती बाड़ी संभालूंगी। बस तुम दोनों आते जाते रहना।
सविता ने इसे अपनी नियति मान लिया और वापस दोनों लौट आए। रवि ने इसके लिए उससे माफी मांगी, मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा था। तुम्हें बताता तो तुम किसी हालत में मुझसे शादी नहीं करती, मैं उसे तलाक दे दूंगा। सविता ने कहा, नहीं तुम्हें तलाक देने की जरूरत नहीं है।
दो साल हो गए पर सविता को बच्चे नहीं हुए। एक दिन उसे पता चला कि रवि ने अपनी नसबंदी करा ली है वह तो जैसे आसमान से नीचे गिर पड़ी। उसे रवि से नफ़रत होने लगी। बोलचाल बिल्कुल ना के बराबर होती। हमेशा से ही खिलखिला कर हंसने वाली सविता खामोश हो गई। धीरे धीरे उसकी सास, गांव वाले और स्कूल की शिक्षिकाएं उसे बांझ कहने लगी। पर वो किस मुंह से अपनी सफाई देती। उसके पति ने उसे अपनी कसम दे दी थी। अब सविता ने अपनी जिंदगी को नरक बना लिया। खाना पीना सब बंद और वह बीमार रहने लगी। ये सब देख कर रवि को अपने किए पर बहुत पछतावा होता,वह उसे खुद को छोड़ने को भी कहता पर सविता खामोश हो कर देखती रहती । शायद उसका धोखा वह सह नहीं पा रही थी।
एक दिन रवि को हार्ट अटैक आया और वह हमेशा के लिए अपने अपराध बोध से मुक्ति पा गया।
उसके जाने के बाद सविता ने उसकी पत्नी बच्चों और माता पिता को संभाला। बेचारे उनका क्या दोष। दोनों बच्चों को अपने साथ रख कर पढ़ाया लिखाया। गांव भी जाती रही।
एक दिन सविता ने अपनी सौत सीता से कहा,उसकी मां ने अपनी कसम दे कर उसे शादी के लिए राजी कर लिया है।वह एक शिक्षक से शादी करने जा रही है। सबने उसे सहर्ष स्वीकृति दे दी।
शादी होने के बाद उसका रिश्ता उनसे टूट गया और आज बेटे होने की खुशी में सविता ने अपने पहले पति के घरवालों को बुलाया था।
दीवाली पर वो अपने पति और बेटे के साथ रवि के घर गई। सब बहुत खुश हुए। सासूजी ने रोते हुए कहा, उसे रवि के बारे में कुछ नहीं पता था इसलिए वो सविता को अपशकुनी,बांझ कहती रही, छोटी दुल्हन, मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं। अभी भी यह घर तुम्हारा है। तुमने सीता को पेंशन,बीमा सबका हकदार बनाया, अपने लिए रवि से कुछ नहीं मांगा। हम पर तुम्हारा बड़ा अहसान है। नहीं मां जी,आप सब तो मेरा भी परिवार थे। नहीं,बहू,थे नहीं अब भी हैं। तुम्हारे उस घर के साथ साथ यह घर भी तुम्हारा ही है। हमें छोड़ना नहीं।
आज भी सविता के दो दो घर हैं, दोनों घर की जिम्मेदारी उसकी है और रवि के बच्चों की पढ़ाई, शादी उनके बच्चों की जिम्मेदारी सब बखूबी निभा रही है।
लगता है जैसे उसके तीन तीन बच्चे हैं।
**यह भी मेरी अन्य कहानियों की तरह एक सच्ची कहानी है।
मैं सविता के घर आती जाती हूं और सब कुछ अपनी आंखों से देखा है। **
सुषमा यादव पेरिस से
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
# यह घर भी तुम्हारा है।
Sacchi gatana hai esha bhi es jamane me ho sakta hai sister 🤔🤔👏
Absolutely