“पंडित जी!ये भी कुछ करेगा अपनी जिंदगी में या नहीं?”
विभा ने अपने सबसे छोटे बेटे निकुंज का हाथ दिखलाते हुए अपने फैमिली पंडित जी से पूछा तो वो मुस्करा
दिए और बोले…
“बड़े दोनो बच्चों जैसा तो नहीं पर आपके दिल के बहुत करीब रहेगा ये ताउम्र..”
विभा और रमेश के दोनों बड़े बच्चे बहुत होनहार थे,हमेशा क्लास में अव्वल आते,उनसे दस वर्ष छोटा निकुंज
जब से आया था उन सबकी जिंदगी में,काफी रौनक ही गई थी घर में पर वो थोड़ा आलसी और मस्त मौला
था।पढ़ाई लिखाई ने जरा दिमाग न लगाता,बस इसी बात की फिक्र विभा को रात दिन खाए रहती।
दिन बीते,दोनो बड़े बच्चे बड़ी पोस्ट्स पर लग गए और निकुंज ने जैसे तैसे ग्रेजुएशन की पढ़ाई की।
बिना किसी टेक्निकल एजुकेशन या बढ़िया प्रोफाइल के आजकल नौकरी कहां मिलती हैं?बस निकुंज को
भी कोई जॉब नहीं मिल रही थी।
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सब उसे खोटा सिक्का कहकर बुलाते और वो खिसिया के हंस देता,जबकि बड़े दोनो को कोहिनूर और हीरे
पन्ने की उपमा से नवाजा जाता,हालांकि घर के सारे काम दौड़ कर करता,बड़ा भाई कब शादी करके,विदेश में
सेट हो गया और उससे छोटी बहन सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी,वो भी अपने सहपाठी के साथ शादी कर
हैदराबाद में सेटल हो गई।
अब घर में बचे बूढ़े मां बाप और उनका खोटा सिक्का यानि निकुंज…कहने को घर में पैसों की कमी बिल्कुल
नहीं थी पर जवान होते बच्चे को नौकरी न मिलने का दुख मां पिता को खाए जाता।
जब भी कभी बड़े बेटे की कोई उपलब्धि मां बाप को पता चलती वो उसकी तारीफों के पुल बांध देते,बेचारा
निकुंज खुद तो होता लेकिन अपनी किस्मत को भी कोसता साथ में।”क्या मै अपने पेरेंट्स से कभी प्रशंसा के
दो बोल नहीं सुन पाऊंगा?”
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एक बार,उसके पिताजी को हार्ट अटैक का दर्द हुआ,उसकी मां समझ रही थी ये गैस होगी,वो घरेलू इलाज
करती रही,दोनो बड़े बच्चों को भी फोन करना चाहा पर एक को मिला ही नहीं दूसरी बहुत व्यस्त थी।
मां के हाथ पैर फूल गए..तब निकुंज जो हरफनफौला था,झट पिता को प्राथमिक चिकित्सा के तौर पर सीने
पर दबाव डालके सांस दिलाने की कोशिश करता रहा,डॉक्टर को कॉल करके उसने बुला ही लिया था।
थोड़ी बहुत भागादौड़ी के बाद,उसके पिता की जान बच गई।डॉक्टर ने निकुंज की तारीफ करते कहा,इनके
प्रयासों के बगैर इन्हें बचाना नामुमकिन था।
मां ने प्यार से निकुंज को गले लगा लिया तो वो धीरे से बोला…”मां! कभी कभी खोटा सिक्का भी काम आ
जाता है..”
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उसने ये बात जिस अंदाज में कही ,उसे सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए।
आज समझ आ रहा था उन्हें,औलाद पढ़ी लिखी हो,अच्छी हो,खूब कमाए,अपनी जिंदगी में सेट हो ,ये सब
बातें बहुत अच्छी लगती हैं लेकिन अगर कोई ये सब करने में सफल न भी हो और आपकी इज्जत और
सम्मान करता हो,एक अच्छा इंसान हो तो उसे कमतरी का एहसास न कराएं,पांचों उंगलियां एक समान नहीं
होती लेकिन उन सबकी महत्ता समान ही होती है।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद