मधु जी की आज तेरहवीं है पिछले दस बारह दिनों से लोग आनंद जी से मिलने आ रहे हैं, उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद उन्हें सांत्वना देने के लिए। मधु जी पिछले डेढ़ बरस से बीमार थी ,एक दिन काम करते-करते वो सीढ़ियों से फिसल गई और रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई तब से उठ ही नहीं पाई, तब से बिस्तर पर ही थी।
तब से आनंद और उनका छोटा बेटा कमल ही दिन रात उनकी सेवा करने लगे, आनंद जी तो फिर भी बूढ़े हो चले थे ,पर कमल ने उनकी सेवा में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी।
मधु जी और आनंद जी के दो बेटे हैं कमल और विमल।
विमल तो पढ़ लिखकर हैदराबाद सेट हो गया, अच्छी कंपनी में नौकरी लगी थी, अच्छा खाता कमाता और कुछ जरूरत भर रुपए गांव में आनंद और मधु के खर्चे और इलाज के लिए भी भिजवाता रहता था।
मां बाप कितना ही कहते लेकिन विमल कभी मिलने नहीं आ पाता था,नौकरी और काम का बहाना बनाकर कभी मिलने नहीं आया।विमल का इंतजार करते करते मधु जी का स्वर्गवास हो गया । अब जाकर विमल आया, लोक लाज के कारण अब तो आना ही था।
उधर कमल का मन कभी पढ़ाई में लगा ही नहीं, हमेशा बस अपने पिता के साथ खेतों पर जाता, खेती बाड़ी करता, कभी कभी मधु और आनंद कहते कि ये हमारा खोटा सिक्का है जो पढ़ लिख ना सका।
तेरहवीं वाले दिन किसी रिश्तेदार ने आनंद जी से कहा मधु जी की तेरहवीं और रस्म पगड़ी का बहुत अच्छा इंतजाम किया है, आपका बड़ा बेटा विमल बहुत लायक है जो इन सब का खर्चा उठाने में सक्षम है समर्थ है, नहीं तो आपका छोटा बेटा कमल तो खोटा सिक्का ही निकला।
इतना सुनकर आनंद जी कहते हैं भाई साहब आप सही कहते हैं कमल खोटा सिक्का ही है, पर ऐसा खोटा सिक्का जिस तरह एक किसान के दो घड़ों में से एक घड़ा साबुत,घर में पानी भरने के काम आता है, वो तो आप विमल को समझ सकते है, और थोड़ा चटका हुआ घड़ा मेरा कमल है, जो निस्वार्थ बिन कहे उस घड़े की तरह मेरे आंगन को सीचंता रहा,अपनी मां की सेवा करता रहा।
इस खोटे सिक्के की कीमत मुझे बाद में पता चली भाई साहब, मैं तो कहूंगा खोटा तो खोटा सही ,ऐसा बेटा भगवान सबको दे, क्योंकि पैसे से तो फिर भी कोई भी मदद कर देगा ,लेकिन बुजुर्गों की सेवा यदि कोई बच्चा करता है तो ऐसी संतान बहुत ही पुण्य कर्मों से मिलता है।
और ये मेरे पुण्य कर्म है कि मुझे कमल जैसा खोटा सिक्का बेटे के रूप में मिला। यही तो है जिंदगी में कभी खुशी कभी गम।
ऋतु गुप्ता