उदय जब दस साल का था,तो प्रसव के समय उसकी माँ का अचानक निधन हो गया।उदय का जन्म उसकी माँ की शादी के बारह वर्ष बाद हुआ था,इस कारण उदय माँ के जीवन का सूर्य था।पूरा परिवार उससे अत्यधिक प्रेम करता था,विशेषकर दादा जी और माँ की आँखों का तारा था। माँ के निधन से अचानक से उदय के जीवन में अंधकार का डेरा पसर गया।
कुछ ही समय बाद घर में विमाता आ गई। थोड़े समय तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा,परन्तु उसके सौतेले भाई विनय के जन्म के बाद एक बार फिर से उसकी खुशियों के ग्रहण लग गए। विनय के जन्म के बाद उसकी विमाता के तेवर बदल गए। अब विमाता को उदय में केवल खामियाँ ही नजर आती थीं।विमाता के साथ-साथ उसके पिता भी मानो सौतेले हो गए। उसके पिता भी आँखें मूँदकर पत्नी की बातों पर ही भरोसा करते थे।
अचानक से बदली हुई परिस्थितियों और माता-पिता के उपेक्षित व्यवहार के कारण उदय रोज खून के आँसू रोता था।उसके जीवन के एकमात्र सहारा उसके दादाजी उसके आँसू पोंछते हुए कहते -” बेटा! तुम इन सब फालतू बातों पर ध्यान न देकर पढ़ाई में मन लगाओ।काबिल बनने पर यही विमाता तुम्हारी अहमियत समझेगी।”
समय के साथ उदय जहाँ पढ़-लिखकर काबिल सरकारी अधिकारी बन गया,वहीं उसका छोटा भाई विनय अत्यधिक लाड-प्यार के कारण नशे की गिरफ्त में आ गया। अब विमाता उदय की ओर उम्पमीदभरी नजरों से देखती रहती है।परिस्थितियाँ बदलते देर नहीं लगती है।कभी उदय को खून के आँसू रुलानेवाली विमाता आज अपने पुत्र की गलत आदतों के कारण खुद खून के आँसू रो रही है।सचमुच कहा गया है’जैसा करोगे,वैसा ही भरोगे’।
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लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)