Moral Stories in Hindi : हमें यहां रहते हुए छह साल हो गए कुनाल पर कभी महसूस नहीं हुआ कि हम अपने परिवार के बीच नहीं हैँ…. मुझे तो मन में बहुत डर था कि हम भागकर लव मेरिज कर रहे हैँ सबकि मर्जी के खिलाफ जाकर… पता नहीं कैसे रहेंगे, कैसे कमायेंगे , खायेंगे नये शहर में पर धीरे धीरे ये डर भी निकल गया मन से… तुम एक फ़ोन शोप में काम करने लगे और जल्द ही मुझे भी एक स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गयी…. हमने छोटा सा घर भी ले लिया हैँ अब तो…. पड़ोसी ,, आस पास के लोग भी अच्छे हैँ हमारे… कभी ज़रूरत हो तो हमेशा खड़े होते हैँ…
आज कविता संडे होने के कारण चाय की चुस्कियां लेते हुए बालकनी में बैठकर अपने पति कुनाल से जी भरकर बातें कर रही हैँ….
तुम सही कह रही हो कविता…. पर कभी कभी माँ पापा दीदू की बहुत याद आती हैँ…. ऐसा लगता हैँ दिल में कुछ खालीपन हैँ…. कभी कभी तो पूरी रात घूमता रहता हूँ जब माँ की वो थपकियां , उनका पेट भरें होने के बाद भी एक रोटी और खा ले मेरा कुन्नु … कहना, जबर्दस्ती अपने हाथों से खिला देना…. मुझे थका होने पर गले से लगा लेना, गलती होने पर पापा को ना बताकर मुझे उस गलती से निकालना बहुत याद आता है …
वैसे तो पापा ने भी मेरी कोई ऐसी ख्वाहिश नहीं जो कभी पूरी ना की हो पर पता नहीं क्यूँ मेरे और तुम्हारे रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पायें वो…. कैसे जोर से चिल्लाकर बोले थे उस दिन ,,,तू हमारे लिए हमेशा हमेशा के लिए मर गया ….. क्या सच में कविता माँ पापा दीदू को मेरी बिल्कुल याद नहीं आती होगी…. यह बोलते हुए कुनाल छोटे बच्चों की तरह रो पड़ा था… और कविता के कंधे पर उसने अपना सर रख दिया था….
कुनाल को रोता देख कविता भी रो पड़ी… उसने अपने दुपट्टे से कुनाल के आंसू पोंछे…..कविता के माँ पापा तो कुछ सालों के बाद पिघल गए थे भले ही वो दोनों से मिलने न आतें हो पर कभी कभी फ़ोन पर हाल चाल ले लेते थे…. कविता तो सास ससुर को भी खूब फ़ोन लगाती थी…. पर उसका नंबर जान उन्होने कभी उठाया ही नहीं…..
तुम इन आस पास के लोगों की, पड़ोसियों की बात कर रही पर क्या ये मुझे मेरे माँ पापा जैसा प्यार दे पायेंगे…. वो अपनापन दे पायेंगे… खून के रिश्ते खून के ही होते हैँ… उनकी जगह कोई नहीं ले सकता…. मैं भी क्या बातें लेकर बैठ था यह जानते हुए कि मेरा छोटा कुनाल मेरी कविता के पेट में पल रहा हैँ… अब तो बस वो कुछ दिनों में ही आने वाला हैँ…. अच्छा तुम अपना मूड ठीक करो…. और आराम करो….आज मैं तुम्हारे लिए पालक , चुकुन्दर का जूस बनाता हूँ….. यह बोल कुनाल किचेन की तरफ चला गया….
इधर कविता सोचने लगी… सच में इंसान कितना की परिपक्व , बड़ा क्यूँ ना हो जायें उसके मन का बच्चा तो ज़िन्दा रहता ही हैँ जो इस उम्र में भी कभी कभी माँ की गोद चाहता हैँ….. बेचारे कुनाल घर की, मेरी, बच्चें की ज़िम्मेदारियों के बीच उलझ कर रह गए हैँ….. कितना याद करते हैँ माँ बाऊ जी को … रात में पता नहीं क्या याद कर उठ जातें हैँ…..
कविता ने निश्चय कर लिया था कि वो कुनाल के चेहरे पर ख़ुशी वापस लेकर आयेगी….
कुछ ही दिनों में कविता ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया….. कुनाल खुश भी बहुत था और घबराया हुआ भी था क्यूँकि कविता को ओपरेशन से बच्चा हुआ था डॉक्टर ने पांच दिन होस्पिटल में रखने को बोला था माँ और बच्चा दोनों को…. उसे समझ नहीं आ रहा था वो इतने छोटे बच्चे को कैसे दूध पिलाये ….उसको साफ करें …
बेटे ने कुनाल की शर्ट पर पोटी कर दी थी वह उसे साफ करने बाहर आया ही था कि सामने से उसे दो बुजूर्ग लोग आतें दिखें … वो उन्हे कुछ कुछ पहचान रहा था…. जैसे जैसे वो पास आयें…. कुनाल को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ ये तो उसके माँ बाऊ जी ही थे… पिछले छह सालों में कितने ढल गए थे दोनों … वो ख़ुशी से पगला गया था…. जोर से चिल्लाया…
माँ पापा आप……
वो बच्चे को नर्स को पकड़ा दोनों के पैर छू गले से लग गया… काफी देर तक माँ से चिपका रहा….
जे हमारो पोता हैँ का कुनाल?? माँ ने पूछा. …
हां माँ…. आपका पोता हैँ… कल रात ही हुआ हैँ….
बिल्कुल शहुर ना हैँ तुझे…. छोरे को नरस के हाथ पकड़ा दिया…. अब लाला की अम्मा आ गयी हैँ… बस अब मैं करूँगी अपने छोटे कुनाल की सेवा….
देसी घी भी ले आयें हैँ गांव से….. खूब मालिश करना मेरे लाला की…. बिल्कुल तन्दरुस्त हो जायें … हला… कुनाल के पिता जी बोले….
हमारी बहू कहां हैँ… उसने तो ऐसे घबराकर फ़ोन किया …. जैसे क्या अनहोनी हो गयी हो….. सारे काम धाम छोड़ भाग आयें हम….
पापा दीदू कहां हैँ??
दीदू क्या बैठी रहेगी घर पर … ब्याह के गयी सासुरे….
उसे खबर कर दी हैँ कल आ रही हैँ लाला को देखने…
क्या सच में?? कुनाल को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके सभी अपने उसके पास हैँ…. सच में खून के रिश्ते की बराबरी कोई नहीं कर सकता….
सभी लोग अंदर कविता के पास आयें… कविता ने सास ससुर को देख दुपट्टा सर के ऊपर कर लिया…. नमस्ते किया…
सास ससुर ने दोनों हाथों को उठा ढ़ेरों आशीर्वाद दिये अपनी बहू को….
अगले दिन से कुनाल अपनी जॉब पर जाने लगा… उसे अब अपने बेटे की बिल्कुल भी फिक्र नहीं थी क्यूँकि उससे ज्यादा देखभाल करने वाले बाबा अम्मा जो आ गए थे छोटू के….
स्वरचित
मौलिक अप्रकाशित
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा