खोल दो पंखो को – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

कुछ दिनों से रोहित देख रहे थे मीता अक्सर खोई -खोई सी एकटक सामने देखती रहती, उसका वजन भी कम हो रहा था, उसके चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने वाली सदाबहार मुस्कुराहट की जगह एक खामोशी फैली हुई है, किसी काम में उसका मन नहीं लगता, कभी सब्जी जल जाती तो कभी दूध उफन कर गिर रहा होता पर मीता अपनी दुनिया में गुम होती।ना जाने क्या सोचती रहती।

ये हालत तो तब भी नहीं थी जब काव्या और कृष पढ़ाई करने हॉस्टल गये थे, तब भी मीता इतनी उदास नहीं थी पर जब कृष आगे की पढ़ाई के लिये विदेश गया,तब से मीता थोड़ी शांत दिखने लगी, रोहित ने नोटिस तो किया पर इसे गंभीरता से नहीं लिया। अभी कुछ दिन पहले काव्या भी चली गई ,

हाँलाकि रोहित काव्या को विदेश भेजने के पक्ष में नहीं था पर मीता ही बोली “काव्या को जाने दो नहीं तो उसे लगेगा हम ने कृष को तो भेज दिया पर वो लड़की है इसलिये उसे नहीं भेज रहे “।

 “ऐसे कैसे सोच सकती है कभी दोनों भाई -बहन में फर्क किया है हमने,वैसे भी काव्या छोटी होने से ज्यादा लाड़ली रही है, हाँ वो लड़की है, इसलिये मन में एक डर जरूर है, वो वहाँ सुरक्षित कैसे रहेगी “रोहित बोला।

“कृष कैसे सुरक्षित रहेगा ये आपने नहीं सोचा “मीता ने कहा तो रोहित आश्चर्य से मीता को देखने लगा, फिर हँस कर बोला “मीता तुम भूल रही कृष लड़का है, उसकी सुरक्षा के लिये क्या सोचना “।

“यही तो नजरिया है, लड़के की सुरक्षा की चिंता नहीं, पर लड़की की सुरक्षा के लिये उसके सपनों को तोड़ना ठीक है, जब माता -पिता के घर में ये हाल तो ससुराल में क्या होगा “मीता थोड़ा गुस्से से बोली।

“तुम औरतें ना, ससुराल को जेल समझ लेती हो, तुम भी तो ससुराल आई थी तो कौन सा तुम पर मैंने या माँ -बाबूजी ने बंदिश लगाई थी “रोहित ने चिढ़ कर कहा।

“आपने प्रत्यक्ष रूप से बंदिश नहीं लगाई थी पर घर की जिम्मेदारियों और रिश्तों ने अप्रत्यक्ष रूप से मुझे मेरी सीमा -रेखा बता गई थी।एक अच्छी बहू, पत्नी और माँ ही नहीं, बेटी और बहन भी बनने के लिये, एक औरत ना चाहते हुये भी बहुत समझौते करती है, कभी किसी ने एक स्त्री के मन में झांकने की कोशिश की,

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उसके भी कोई सपनें है ये जानने की कोशिश की, नहीं ना, भला स्त्री के क्या सपनें… उसका क्या वजूद, उसका पति और बच्चों की देखभाल के अलावा क्या सपने हो सकते है “मीता आवेश में बोल रही थी।रोहित गुस्से में बिना टिफ़िन लिये ऑफिस चला गया। गुस्से में आ तो गया पर मन किसी काम में नहीं लगा। बहुत सोच -विचार कर,घर आ काव्या को भी विदेश जाने की अनुमति दे दी।

 मीता खुश तो हुई पर काव्या के जाने के बाद उदास हो गई, रोहित तो अपने ऑफिस में व्यस्त था। घर का सूनापन अखरने का उसे समय ही नहीं मिलता सो वो मस्त था पर बच्चों के जाने के बाद सबसे ज्यादा असर एक माँ पर पड़ता है, अगर वो हाउसवाइफ है, क्योंकि उसकी दुनिया तो अपने बच्चों के इर्द -गिर्द ही घूमती है।

मीता भी बच्चों के जाने के बाद अकेले पड़ गई। अब किसकी पसंद का खाना बनाये, किसके झगडे सुलझाये,घर की ख़ामोशी में उसे काव्या और कृष की आवाजें सुनाई देने लगीं।बच्चों और पति के लिये तो उसने अपने शौक को भी भुला दिया।जिस घर में उसे समय ही नहीं मिलता था उसी घर में अब उससे समय ही नहीं कटता।मीता अक्सर अपने से ही बात करती रहती।

रोहित इन सब से बेखबर था। पर अब मीता की बढ़ती खामोशी देख, रोहित को खतरे की घंटी सुनाई देने लगी। मीता की चिंता में गुम रोहित को अहसास ही नहीं,कब उसका कुलीग और मित्र सुयश सामने आ कर बैठ गया। सुयश ने जब रोहित को हिलाया तब वो चैतन्य हुआ।

“क्या बात है रोहित, तुम इतने गुमसुम क्यों हो “सुयश ने पूछा।

“कुछ नहीं, बस मीता के बारे में सोच रहा था, उसको किस डॉ. को दिखाऊं “रोहित उदास स्वर में बोला।

“क्या हो गया भाभी को “सुयश ने आश्चर्य से पूछा। तब रोहित ने उसे सारी बात बताई,

“अब आज ही देखो, तवे पर रोटी जल रही थी पर मीता सामने शून्य में देखती खड़ी थी, मैंने जाकर गैस बंद की, ये देखो रोटी और सब्जी… देख कर तुम्हे समझ में आ गया होगा,मीता किस दौर से गुजर रही, अगले हफ्ते मुझे फिर टूर पर जाना है कुछ समझ में नहीं आ रहा क्या करू “रोहित बोला।

 सारी बात सुन कर सुयश बोला “देख भाभी अकेलेपन से उपजे अवसाद से ग्रस्त है, तू तो ऑफिस में व्यस्त रहता, तुझे बच्चों के जाने से उतना फर्क नहीं पड़ा जितना भाभी को, उनकी तो दुनिया ही उलट -पुलट हो गई, मनोचिकिश्यक को भले दिखा ले, पर वो भी तुम्हे यही राय देगा कि भाभी को तेरे साथ और समय की जरूरत है, कभी उन्होंने अपने सपनों से समझौता किया तो आज तुम्हे उनके लिये अपने कैरियर से समझौता करना पड़ेगा,उनके शौक को जीवित कर,उनको विरक्ति से बचाने के लिये जिंदगी की ओर मोड़ना है “सुयश ने समझाते हुये बोला।

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बात रोहित की समझ में आ गई, शाम समय से घर लौट आया, मीता से बोला “मीता तुम तैयारी कर लो, हम लोग कल गोवा चल रहे, तुम्हारा बहुत मन था गोवा जाने का,”एक पल को मीता की आँखों में चमक आई फिर बुझ गई।

“बिना बच्चों के घूमने में क्या मजा आयेगा “मीता बोली

“क्यों मीता, मैं और तुम तो हैं, शादी के बाद व्यस्तता की वजह से तुम्हे घुमा नहीं पाया तो अब चलते हैं, और हाँ ये तुम्हारी पसंद के लेखक की किताबें भी ख़रीद कर लाया हूँ, तुमको प्राकृतिक नजारों संग किताबें पढ़ने का शौक था ना, और हाँ ये ब्रश और कैनवास… तुम्हारे पेंटिंग्स करने के लिये लाया था “रोहित बोला।मीता हैरान परेशान रोहित के बदले रूप को देख रही थी, कहाँ तो घर में भी लैपटॉप में सर गड़ाए रहता था और कहाँ आज घूमने की बात…।

“रोहित तुम ठीक तो हो, और ये ब्रश और कैनवास बेकार लाये, मुझे. मुझे पेंटिंग छोड़े जमाना गुजर गया, अब नहीं हो पायेगा”। मीता थोड़ी उदासी से बोली।

 “मीता मैं अब ठीक हूँ हाँ पहले जरूर थोड़ा ठीक नहीं था…. और हाँ मुझे यकींन है तुम पेंटिंग शुरु करोगी तो सब हो जायेगा, फिर मै तुम्हारे साथ हूँ, यहाँ पास के पेंटिंग स्कूल में मै तुम्हारे लिये बात कर आया हूँ, गोवा से लौटने के बाद तुम अपनी क्लासेज ज्वाइन कर लेना “रोहित मीता का हाथ प्यार से पकड़ते बोला ।

और रोहित का साथ पा मीता एक बार फिर मुस्कुराने लगी, हाँ रोहित ने भी कुछ समझौता किया। ऑफिस का काम घर लाना बंद किया,बल्कि ऑफिस से घर समय से आना शुरु किया। मीता भी व्यस्त हो गई, एक बार फिर अपने उन ख़्वाबों को पूरा करने के लिये जो कभी पीछे छूट गये थे।मीता सोच रही थी

“जीवन पीछे मुड़ कर जीने के लिये नहीं, आगे बढ़ने का नाम है…। जीना इसी को कहते है।” मीता पेंटिंग क्लासेज ज्वाइन कर ली, कुछ दोस्त बन गये, जिंदगी अब बुरी नहीं लगती क्योंकि समय ही नहीं मिलता था।और मीता अब खुश रहती है जीवन जीने की कला उसे आ गया।

दोस्तों पति -पत्नी गाड़ी के दो पहिये होते हैं, एक भी पहिये में खराबी से पूरी गाड़ी का संतुलन खराब हो जाता है,अतः समझौता सिर्फ पत्नी को ही नहीं पति को भी करना चाहिये तभी दाम्पत्य की गाड़ी सुचारु रूप से चलेगी, आप क्या कहती हो रोहित ने थोड़े समझौते कर थी किया या नहीं ..।


बच्चों के सपनों को पँख दीजिये, उन्हें उन्मुक्त आकाश जरूर दे, उनकी उड़ान को आप रोक नहीं सकते पर अपने पंखो को खोल तो सकते है, खोलिये और जीने के नये मकसद पर फोकस करें।ये मत सोचिये अब उम्र बीत गई, क्योंकि आगाज़ की कोई उम्र नहीं होती।

 

–संगीता त्रिपाठी

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