खोखले रिश्तों से मुक्ति – सरोज माहेश्वरी : short moral story in hindi

       रिश्ते जीवन का आधार हैं,उर्जा का स्रोत हैं,जीने का संबल हैं। रिश्तों में अहसास का होना आवश्यक है। जब रिश्तों पर भौतिकता भारी पड़ जाती है और अहसास दम तोड़ देते हैं तब ये रिश्ते आडम्बरों की चादर ओढ़ कर इतने खोखले हो जाते कि इस खोखलेपन की गूंज समाज को झनझना देती है। इसी विषय पर मेरी एक कहानी…..

                      राधेश्याम जी एक  सेकेंण्डरी विद्यालय में गणित के अध्यापक थे।उनकी पत्नी सुमित्रा एक आदर्श ग्रहिणी थीं। शादी के लगभग दस वर्ष उपरांत उन्हें जुड़वां संतानों का सौभाग्य प्राप्त हुआ।अपनी सामर्थ्य अनुसार उन्होंने अपने जुड़वां पुत्रों की परवरिश में कोई कसर न छोड़ी।

बड़े पुत्र का नाम धीरज और छोटे पुत्र का नाम नीरज रखा।धीरे धीरे समय पंख उड़ाकर बीतने लगा। दोनों भाई पढ़ने में कुशाग्रबुद्धि थे। बड़े होकर इंजीनियरिंग करने के बाद एक अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी में काम करने लगे।  महत्वाकांक्षाओं नें पंख पसारे और फिर दोनों एम. एस करने अमेरिका चले गए और नौकर करके वहीं जा बसे। दोनों भाइयों ने भारतीय मूल की लड़कियों से शादी कर ली।

                       काल चक्र आगे बढ़ा..अब राधेश्याम जी सेवानिवृत्त  हो चुके थे। बच्चे अपने परिवारऔर नौकरी में अमेरिका में मस्त, व्यस्त थे। महीने में एक दो बार फ़ोन पर बातचीत होती। धीरे धीरे वह भी कम होती गई। एक दिन सुमित्रा जी सीढ़ियों से  फिसलकर गिर गईं।कमर की हड्डी टूट गईं डाक्टरों ने तुरंत ऑपरेशन करने का कहा। राधेश्याम जी ने सुमित्रा जी की हालत बेटों को फोन पर बताई।

दोनों बेटों और दोनों बहुओं में से कोई नहीं आया। ऑपरेशन हो गया। राधेश्याम जी अकेले ही पत्नी की सेवा में  जुट गए। सुमित्रा जी का मल मूत्र सब बिस्तर पर ही होता था वे बिस्तर से उठने में असमर्थ थीं। नर्स या आया रखने की सामर्थ्य  राधेश्याम जी में न थी। जैसे तैसे पत्नी का इलाज करा रहे थे।

बच्चे कभी भी मांबाप की आर्थिक सहायता नहीं करते थे। सुमित्रा जी की रीढ़ की हड्डी तो जुड़ गई, परन्तु बिस्तर पर लेटे लेटे उनकी कमर में घाव हो गए। पस खून के द्वारा पूरे शरीर में फैल गया।डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिये और सुमित्रा जी को कुछ दिनों का ही मेहमान बताया।

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                        दूसरे दिन राधेश्याम ने बेटों को फोन किया और गिडग़िडाते हुए बोले..बेटा! तुम्हारी मां बहुत बीमार है अधिक से अधिक पन्द्रह दिनों की ही मेहमान है।तुम परिवार के साथ जल्द से जल्द भारत आ जाओ ।तुम्हारी माँ अपने पुत्रों और दोनों पौत्रों के कंधों पर  विदा होना चाहती है।

बड़े रूखेपन से बेटा धीरज बोला…बाबू जी!यदि मां के अंतिम दिन पंद्रह दिन में भी पूरे नहीं हुए तो क्या हम एक महीने की छुट्टी लेकर आएंगे…जब मां को कुछ होगा तब देखा जाएगा…अभी हमें चैन से जीने दो कहते हुए धीरज ने फोन नीरज को पकड़ा दिया( नीरज कम्पनी के काम से धीरज के पास आया था)हाँ बाबूजी!भइया ने जो कुछ कहा वही विचार मेरे भी हैं और फिर जल्दी से ऐसे फोन रख दिया, मानों कहीं पिता उसे भावनाओं के जाल में  फंस न लें।

                आज राधेश्याम जी खोखले हुए खून के रिश्तों का बोझ लेकर घर गए। पत्नी के पास दो पल बैठे जो आंखें मूंद अचेत अवस्था पड़ी थी। राधेश्याम जी जमीन पर बिछे बिस्तर पर जाकर  लेट गए कागज़ पर कुछ लिखा और चादर ओढ़कर सो गए। 

दूसरे दिन दोपहर तक उनके घर से कोई आवाज़ नहीं आई तो चिंतित होकर पडोसियों ने घंटी  बजाई कोई उतर न मिला। पुलिस की सहायता से दरवाजा तोड़ा गया।दोनों पति पत्नी कमरे में में मृत पड़े थे। राधेश्याम जी का शरीर शांत मुद्रा में अनंत में विलीन हो गया था तकिए के नीचे एक कागज मिला। लिखा था..

मेरी जो कुछ थोड़ी  चल अचल संपत्ति है वह अनाथाश्रम को दान कर दी जाए आगे लिखा था… ” जिन रिश्तों में अपनत्व, संवेदना,प्रेम मर जाते हों उन रिश्तों में रिक्तता आ जाती है, ऐसे रिश्ते खोखले कहलाते हैं। पैसे और कैरियर की अंध दौड़ में मेरे बच्चों ने इन दस सालों में बूढे मां बाप की कोई परवाह नहीं की।इन खोखले रिश्तों सें मैं मुक्त होना चाहता हूँ सो मुझे मुखाग्नि किसी अनाथ बच्चे के हाथों से मिले।”

दूसरा पत्र सुमित्रा जी के तकिए के नीचे से मिला जो एक माह पूर्व लिखा गया था जब वे बिस्तर पर असाध्य पड़ी थीं पर मस्तिष्क काम कर रहा था। लिखा था ….” मैंने इन दस वर्षों में अपने धीरज ,नीरज को अपने हाथों से स्पर्श नहीं किया और न गले ही लगाया। पैसे और कैरियर की अंध दौड़ में वे अपने बूढे मां बाप को भी भूल गए हैं।

उन्हें मां बाप के त्याग का तनिक भी अहसास नहीं। उनकी संवेदनाएँ मर चुकी हैं। ऐसे खोखले रिश्ते मेरे मृत शरीर को मुखाग्नि देने के अधिकारी नहीं हैं। मेरे पति जीवित हो तो वे मुझे मुखाग्नि दें उनके न रहने पर किसी अनाथ बच्चे द्वारा मुझे  मुखाग्नि दिलाई जाए”

                  जब एक अनाथ बच्चे के द्वारा बूढ़े दम्पति को मुखाग्नि दिलाई गई तब मृत्युपरांत 

राधेश्याम एवं सुमित्रा जी ने इन खोखले रिश्तों से मुक्ति पा ली….

स्व रचित मौलिक रचना 

सरोज माहेश्वरी पुणे ( महाराष्ट्र) 

#खोखले रिश्ते

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