आज संगम लाल के घर पार्टी में चलना है टाइम से तैयार हो जाना साथ में चलेंगे…दिवाकर ने जैसे ही कहा रत्नेश ने तुरंत मना कर दिया “अरे नही आज शाम को तो मैं कहीं नहीं जा सकता दोपहर में मेरा बेटा अजीत आ रहा है तीन सालों के बाद आ रहा है उसकी पढ़ाई पूरी हो गई है ना अब…बड़े उत्साह से कह रहे थे वो।
आ रहा है तो बढ़िया है अब तो तू और निश्चिंत होकर आ सकता है दिवाकर ने हंसकर कहा।
अरे भाई आज ही आ रहा है और आज ही मैं उसको छोड़कर पार्टी मनाने जाऊं अजीब लगेगा अजीत भी क्या सोचेगा कि पापा कितना घूमते है मजे करते हैं थोड़ा संकोच में गड़ गए थे रत्नेश!!
ये देख दिवाकर आश्चर्य चकित रह गए थे।
मना करने पर भी शाम को वो रत्नेश के घर पहुंच गए …अजीत आराम से सोफे पर लेट कर टीवी देख रहा था और रत्नेश कहीं नजर नहीं आ रहे थे।
पापा कहां हैं बेटा …दिवाकर ने पूछा तो अजीत ने बैठे बैठे ही नमस्ते की और किचेन की तरफ इशारा कर दिया फिर से टीवी देखने में मशगूल हो गया शायद कोई इंग्लिश मूवी देख रहा था।
दिवाकर सीधे किचेन में पहुंच गए जहां रत्नेश हलवा बना रहे थे।अच्छा तो इस हलवे की खातिर पार्टी की कुर्बानी दी जा रही है दिवाकर ने पसीने से लथपथ रत्नेश से कहा तो रत्नेश उन्हें देख थोड़ा झेंप से गए इतने दिनो बाद बेटा आया है उसकी मां सावित्री होती तो पता नहीं क्या क्या बनाती मैने सोचा उसकी पसंद का हलवा बना दूं…!
जब अजीत हॉस्टल जा रहा था आज से तीन साल पहले उसी साल सावित्री की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई थी…रत्नेश ने दिल पर पत्थर रख कर अपनी पत्नी की आकस्मिक मौत और बेटे को पढ़ने बाहर भेजना दोनों जिम्मेदारियां निभायीं थीं और अजीत की पढ़ाई में कोई व्यवधान नहीं आने दिया….अपने कलेजे में असीम व्यथा छुपाए चेहरे पर मुस्कान ओढ़े रहे ताकि बेटा उन्हें दुखी देख दुखी ना हो जाए और अपनी पढ़ाई पूरी करके ही घर वापिस आए…अकेले ही घर नौकरी समाज रिश्तेदारी सब संभालते रहे अजीत को कभी अपनी कोई परेशानी बता बता कर परेशान करना उचित नहीं समझा उन्होंने…आज वो बहुत खुश थे … कि उनका बेटा अपनी पढ़ाई पूरी कर लिया है उसके अच्छे कैरियर में वो अपनी भावी सुखद जिंदगी की कल्पना कर के परम आनंदित थे।
लेकिन दिवाकर को उनके बेटे अजीत का व्यवहार काफी तटस्थ सा दिखा पिता की परेशानियों को व्यथा को वो जैसे समझ ही नहीं रहा था एकदम लापरवाह और अलमस्त!
उन्हें अजीब लगा कि इतने सालों बाद वो घर आया है पर उसके चेहरे पर पिता से मिलने बात करने का कोई उत्साह नहीं था जितनी देर दिवाकर वहां रुके वो या तो टीवी देखता रहा या बीच बीच में मोबाइल पर दोस्तों से हंस हंस कर बातें करता रहा…!मां के जाने के बाद पिता ने अकेले सब कैसे संभाला कैसे अपनी व्यथा अनकही ही रहने दिया आज भी घर वापसी पर उसने जानने की चेष्टा नहीं की पिता उसकी पसंद का ख्याल कर उसके लिए किचन में अकेले हलवा बना रहे हैं और वो यहां निर्विकार भाव से टीवी देखने में मस्त है!!
हलवा बनने के बाद रत्नेश ने ही सबकी प्लेट लगाई और खुद ही बेटे के पास बहुत उत्साह से ले गए हलवा देख कर भी अजीत ने कोई प्रसन्नता प्रकट नहीं की थी हलवा लेकर खा लिया बस!
बार बार रत्नेश उसको और हलवा देने की कोशिश करते रहे पानी का गिलास भी हाथ में पकड़ाया और हलवा खाने के बाद उसकी प्लेट भी उठाकर किचन में रखने गए..यहां तक कि अजीत की किताबें और कपड़े जो यहां वहां फैले थे उन्हें भी रत्नेश सहेजते जा रहे थे जैसे ये सब उन्हीं का ही काम है …अजीत ने भी बढ़कर पिता को ना ही मना किया ना ही उनके किसी काम में हाथ ही बटाया जैसे पिता को उसके ये सब काम करने ही चाहिए…..पिता ने हलवा बनाया पिता ने खाया या नहीं खाया इन सब बातों से कोई मतलब नहीं था।
दिवाकर ने ही अजीत से पूछ लिया था कैसा लगा तुम्हें हलवा ये तो बता दो अपने पिता को!!
तो अजीत ने हां ठीक था वैसे मैं इतना मीठा खाता नहीं हूं….कहा तो रत्नेश का चेहरा थोड़ा बुझ सा गया।
चल अब पार्टी में चलते हैं दिवाकर ने कहा तो रत्नेश डर सा गया और चुप रहने का इशारा करने लगा जैसे कोई अपराध करने की बात कह दी हो!!
कैसी पार्टी!!अबकी अजीत का ध्यान गया
कोई पार्टी नहीं बेटा रत्नेश ने कहना चाहा तो बात काटते हुए दिवाकर ने कहा हमारे अभिन्न मित्र संगम लाल जी के जन्मदिन की पार्टी है आज वही जाना है हम लोगों को इसीलिए तो मैं आया हूं।
क्या पापा इस उम्र में आप लोग इस तरह अपने जन्मदिन की पार्टी मना रहे हैं…चिढ़कर व्यंग्य से अजीत ने कहा तो रत्नेश जैसे जमीन में गड़ गए थे नहीं बेटा मैं नहीं जाता पार्टी में मैने पहले ही मना कर दिया था दिवाकर से …सफाई सी देने लगे थे वो।
मुझे विश्वास नहीं है वो तो आज मैं यहां आ गया हूं इसलिए आप नहीं जा रहे वैसे तो रोज ही पार्टियों का दौर चलता होगा अजीत की चुभती हुई बात दिवाकर के दिल में लग गई..!
हां अजीत ठीक समझा तुमने …आज तुम आ गए हो इसलिए तुम्हारे पिता ने जाने से मना कर दिया कि मेरा बेटा तीन सालों के बाद घर आ रहा है उसको मां की कमी नहीं खलनी चाहिए उसको ये घर अपना वही पुराना दुलारा घर ही महसूस होना चाहिए …अपने बेटे के साथ सुख दुख साझा करने के लिए नहीं गए…थोड़ा सा अपनत्व बेटे के सान्निध्य में ढूंढ पाने के लिए नहीं गए …लेकिन क्या फायदा ये जो घर आया है ये वो बेटा नहीं है जिसे मां के जाने के दुख में दुखी पिता की कोई चिंता हो!ये वो बेटा नहीं है जिसे अपनी पढ़ाई पूरी करवाने की खातिर अकेले पड़ गए पिता का कोई ख्याल आया हो!!
ये तो ऐसा खुदगर्ज बेटा है जो पिता की मजबूरी का लाभ उठा रहा है ऐसा लगता है तुम घर आकर हलवा खाकर पिता पर कोई एहसान कर रहे हो पिता तो खुश हैं पर बेटा खुश नहीं है ख्याल होता तो तुम भी पिता के साथ किचेन में रहते साथ मिलकर हलवा बनाते बातें करते पानी का गिलास उनके हाथ में पकड़ाते मां के बारे में बातें करते आराम से यहां बैठकर टीवी नहीं देखते रहते!!अपनी जिंदगी के असहज खालीपन को भरने के पिता के प्रयासों पर तीक्ष्ण टिप्पणी कर उन्हें अपराधबोध से ग्रसित नहीं करते।
पिता पुत्र के रिश्ते को तूने कितना खोखला और बेमानी कर दिया।
और ऐसे संग दिल पुत्र की खातिर उसके पिता अपने अजीज अपने सुख दुख में साथ देने वाले मित्र के जन्मदिन में जाने में शर्म महसूस कर रहे हैं।
शर्म तो तुझे आनी चाहिए अजीत तूने क्या ख्याल किया अपने पिता का बता!!जब अभी ये हाल हैं तेरे तो आगे जिंदगी में जब तेरे पिता सच में अशक्त हो जाएंगे तब तू कैसा व्यवहार करेगा समझ में आ गया है मुझे!!
रत्नेश गलती तेरी भी है इतना भी सिर नही चढ़ाना चाहिए तुझे बेटे को कम से कम पिता का भी ख्याल करना तो सिखाना चाहिए था इतना डर रहा है तू पार्टी में जाने से क्यों??मैं अकेले ही चला जाऊंगा तू रहने दे।
दिवाकर आवेश में हांफने लग गए थे और बाहर जाने लगे थे।
अचानक रत्नेश को यूं लगा मानो वृक्ष के फल ने वृक्ष की जड़ को खोखला करना शुरू कर दिया हो।
रुक जा दिवाकर मैं भी आ रहा हूं तेरे साथ चलूंगा…सही कह रहे हो दोस्त मेरा बेटा पास आकर भी मेरे पास नहीं है..सावित्री के जाने के बाद दुनिया में अकेला ना रह जाऊं इसीलिए बेटे की चापलूसी सी करने लग गया था सच है मैं ही इसकी आदतें बिगाड़ रहा हूं… ये सोचने लग गया है कि पापा को ही इसके लिए हमेशा करना चाहिए इसको नहीं…मैने सोचा था कि माता पिता का ख्याल करना बड़े होकर बेटे अपने आप समझ जाते होंगे पर ऐसा नहीं है और
जब अभी ही नहीं है तो आगे जिंदगी का क्या भरोसा ..!
चल अभी ये जो चंद खुशी के पल मिल रहे हैं तुम लोगों के साथ वो तो जी लूं….इस खोखले रिश्ते को निभाने से बेहतर है तुम लोगों के साथ सच्चे दिल के रिश्ते निभा लूं…कहते हुए दिवाकर का हाथ पकड़ लिया था उन्होंने।
दोनों को हाथों में हाथ डाल जाते हुए देख कर अजीत को अपना पूरा व्यक्तित्व अचानक खोखला और व्यर्थ महसूस होने लगा था ।
जब जड़ ही खोखली हो जायेगी तो वृक्ष का अस्तित्व फल का अस्तित्व भी कैसे बचेगा!!
तुरंत गाड़ी की चाबी निकाल वो लपक कर उनके पास गया ..रुकिए पापा आज ही तो समझ पाया हूं कि मेरा भी कोई फर्ज़ है मुझे भी कुछ करना चाहिए एक मौका तो दीजिए चलिए मैं भी आप लोगों के साथ पार्टी में चलता हूं आइए गाड़ी में बैठिए..!और खोखली होती सूखती जड़ों में जीवन का पुनर्संचार होने लग गया था।
ये सच है दोस्तों कि आधुनिक परिवेश में बहुधा एकल संतान या दो संतानों की सुख सुविधा और मनमानी इच्छापूर्ति करते मां बाप अपने ही बच्चों को दूसरों का ख्याल रखना सिखाना भूल जाते हैं परिणामत:वो खुदगर्ज से बन जाते हैं घरेलू जिम्मेदारियों को वहन करना घरवालों का ख्याल करना बचपन से ही सिखाइए अचानक बड़े होने पर वो अपने आप करने लग जायेंगे ऐसा नहीं होता है और फिर मां बाप दुखी होते हैं।
लतिका श्रीवास्तव