सागर अपने पिता का सबसे बड़ा और प्यारा बेटा था वैसे भी पहले बच्चे पर प्यार ज्यादा ही होता है चाहे वह बेटा हो या बेटी क्योंकि प्यार बांटने वाला दूसरा नहीं होता न बाकी के बच्चों का प्यार दूसरे के साथ बंट जाता है इसमें दोष किसी का भी नहीं है लेकिन प्यार के साथ- साथ जिम्मेदारी और बड़प्पन की उम्मीद भी उसी से ज्यादा होती है।
सागर चार भाई और दो बहनों के साथ खुश था। पढ़ाई के बाद जो भी समय मिलता वह पिता के साथ दुकान पर हाथ बंटाता। एक दिन अचानक काल के क्रूर हाथों ने असमय ही उसके पिता को छीन लिया दुकान से घर जाते समय एक कार वाले की टक्कर से उनकी दुनियां उजड़ गई।
उस समय सागर की उम्र मात्र अठारह वर्ष थी। वह 12 वीं की परीक्षा दे रहा था। दुःख से सभी का बुरा हाल था लेकिन यह पापी पेट किसी से कोई हमदर्दी नहीं रखता भूख के सामने सारे दुःख फीके पड़ जाते हैं। छोटे भाई- बहनों का ख्याल करके उसने गद्दी संभाल ली और लड़कपन में ही जिम्मेदारी ओढ़ ली
सारे परिवार की अब सबकी आशा का केंद्र वही था किसकी किताबें लानी हैं, किसके कपड़े फट गये हैं, किसकी शादी में व्यवहार देना है इसकी चिंता में ही उसकी ज़िंदगी गुजरने लगी। अपने लिए सोचने का न तो वक्त था और न ही खर्च इसकी इज़ाज़त दे रहे थे वह पूरी तरह से मशीन बन चुका था।
पिता के मित्र ने अपनी बेटी के लिए उसे योग्य समझा और उसका घर बस गया पत्नी भी सीधी सादी परिवार के लिए समर्पित मिली अब दोनों मिलकर जीवन की गाड़ी को चलाने लगे। सागर का उसके सभी भाई- बहन बहुत सम्मान करते थे और उसके सपनों को पूरा करने के लिए जी- जान से अपनी लक्ष्य पूर्ति में लगे हुए थे उनकी मेहनत रंग भी लाई और दो भाई एक बहन डॉक्टर और एक भाई- बहन इंजीनियर बन गये।
सबकी पढ़ाई का खर्चा इतना अधिक था कि दुकान में से उसकी पूर्ति संभव नहीं थी तो सागर ने बैंक से काफी कर्ज ले रखा था सोचा कि जब सबकी नौकरी लग जायेगी तो मिलकर पटा देंगे।
अब सब अच्छी तरह से सेटल भी हो गये अब वह बहुत खुश था जब कभी उसकी पत्नी कहती कि थोड़ा अपने लिए भी तो सोचो तो वह गर्व से सीना फुलाकर कहता.. मेरे लिए सोचने के लिए मेरे भाई बहन हैं न.. मुझे क्या जरूरत है ये मेरी ताकत और अभिमान सब कुछ हैं।
एक दिन शॉर्ट सर्किट से उनकी दुकान में रात को आग लग गई और जब तक वह वहाँ पहुंचा सब कुछ जलकर राख हो चुका था जब पता चला तो सारे भाई- बहन आये और उसे तसल्ली देते रहे।
तभी सागर की पत्नी ने कहा कि बैंक का लोन भी पटाना बाकी है इस पर दूसरे नम्बर का भाई बोला… कैसा लोन?? हमें तो भाई ने कभी कुछ बताया ही नहीं और दुकान तो पापा की थी उसमें तो हम सबका भी हिस्सा था।भाई ने अपना फर्ज़ निभाया इसके लिए हम उनके ऋणी रहेंगे लेकिन कर्ज़ उन्होंने लिया है तो हम क्यों भरें ?? बाकी सबने भी सहमति में सर हिला दिये आज सागर का विश्वास चकनाचूर हो गया था जिन रिश्तों पर उसे गर्व था आज वे खोखले साबित हो गये थे।
#खोखले रिश्ते
स्वरचित एवं अप्रकाशित
कमलेश राणा
ग्वालियर