सरल ह्रदय वाले लोग सबको अपने जैसा समझकर उनसे वैसे ही व्यवहार की अपेक्षा करते हैं लेकिन अधिकांश दोहरे चरित्र वाले, त्रिया चरित्र वाले, औपचारिकता निभाने वाले ही होते हैं खास तौर पर अपने निकट रिश्तेदार, सगे- संबंधी जिनको हम पहचान नहीं पाते और हमारी विश्वसनीयता और सहजता से कही बातों का “स्वरुप विरूपित” कर किसी और ही मंतव्य की अवधारणा कर लेते हैं ।
रमा जी के बेटे की शादी हुई तो मन में उत्साह,उमंग के साथ साथ एक आशा भी थी मन में कि अब वो जिम्मेदारियों से कुछ निवृत होकर अपने मन की जिन्दगी जी सकेंगी ।मन में बहुत इच्छा थी कि घर गृहस्थी कोई देखने वाला हो तो वो भी अपनी सहेलियों की तरह कभी तीर्थ ,कभी बेटे -बेटियों के पास जाकर उन्मुक्त जीवन जिएं
लेकिन नौकरीपेशा बहू थी तो घर की जिम्मेदारी तो क्या बल्कि उसके सुबह चाय ,नाश्ता, टिफिन आने के बाद उससे पूछ कर डिनर का खाना बनाना ये सब जिम्मेदारियां उन पर अतिरिक्त पड़ गई ।क्या कर सकती थीं मना भी तो नहीं कर सकतीं कि अब मुझसे नहीं होता ।
काम में तो कोई सहयोग नहीं मिलता बहू से ,न ही उसे हमदर्दी ही होती ,न ही कोई संवेदनाएं तिरोहित होती उनके लिए हाँ एक बात जरूर काॅमन है उसमें और आजकल के सब बेटे बहुओं में — आडम्बर और जग दिखावा और सोशल मीडिया पर उसका प्रसार इसलिए ही प्रचन्ड गर्मी में उनके लिए खाना बनाते ,सुबह जल्दी उठकर रसोई के कामों में लगे देखकर जिनका ह्दय संवेदित नहीं होता
,वे ही बच्चे “माँ” “बाप” के जन्मदिन ,एनीवर्सरी पर , मदर्स -फादर्स-डे पर केक कटवा कर ,उन्हें बुके ,गिफ्ट देकर ,उनकी पिक्स और वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करना नहीं भूलते ।
पहले वो कभी बीमार होतीं तो बेटा उनके कमरे से तब तक नहीं हिलता था जब तक कि वो निश्चिंत न हो जाता । जूस ,सूप ,दवाईयाँ सब का नियोजन खुद ही देखता ,सिर सहलाता ,टाँगे दबाता ।
अब भी केयर ,ट्रीटमेंट है लेकिन पास बैठने का समय नहीं,पापा या मेड को दवा ,आहार वगैरह का निर्देशन दे चला जाता और बीच बीच में एक दो चक्कर भी मार लेता। रमा जी अक्सर सोचतीं शादी के बाद माँ बाप के लिए संवेदनाएँ शून्य क्यों हो जातीं हैं ।
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दीवाली पर बेटे बहू ने रमा जी को मंहगा स्मार्ट फोन भी ले कर दिया जिसका स्टेट्स प्रोफाइल पर डाल वाहवाही लूट ली गई ,कुछ फीचर भी समझा दिए लेकिन यह नहीं जानती थी रमा जी कि इसमें रिकार्डिंग का भी ऑप्शन होता है।यह तो सच है कि बेटियाँ माता -पिता की ज्यादा हमदर्द और उनके मन को समझने वाली होती हैं
इसलिए रिश्तेदारी या पास पड़ोस में अपनी बहू की कोई बात न करने वाली रमा जी कभी कभार अपनी बेटी से अपने मन का दर्द कह सुन लेतीं ,उन्हें पता नहीं था कि बहू ने रिकॉर्डर ऑन किया हुआ था और जब एक दिन बहू ने उनसे फोन ले जाकर अपने कमरे में सुना और पति को भी सुनाया तो उनके घर में महाभारत हो गया ।
बेटे ने उनको उनकी ही रिकार्डेड बातें जब सुनाईं तो बेचारी रमा जी अपने घर में ही मुँह छिपाती फिर रही थीं ।क्या अपने मन की बात अपनी बेटी से भी कहने का अधिकार नहीं उन्हें?
उनके लिए तन ,मन एक कर देती हैं वो,घर से निकल नहीं पातीं,रिश्तेदारी में सब जगह बेटै बहू की नाक ऊँची रखतीं और उनसे यह छल !! उनके और बेटी के संवादो को सुना कर मुद्दा बनाकर अपने ही घर में कटघरे में खड़ा कर दिया गया उसे ।
रमा जी ने उनका वो मोबाइल वापिस कर दिया और वापिस अपने पहले वाले मोबाइल को ही चालू कर लिया ।बेटी से बातें करते समय अब वो बेटे बहू की कोई बात न करतीं न जाने कब कहाँ अपने ही घर में उनकी जासूसी की जा रही हो ।मन में टीस उठती लेकिन क्या कर सकतीं थी ? अब इन्हीं खोखले रिश्तों को स्वीकार करना होगा।
कुछ दिन बाद उनका बी पी अचानक शूट कर गया ।हाॅस्पिटल में एडमिट कराया गया ।दो दिन आई सी यू के बाद जब रूम में शिफ्ट हुई ,तो बेटे की आँखो में अपने लिए फिक्र- तड़प – देखने को मन उद्वेलित था लेकिन सब सामान्य था वहाँ ,चिन्ता भी दिखी तो सिर्फ शब्दों में न आँखो में ,न भावों में हाँ !!
एक सुविधाजनक एअर कंडीशन रूम में फलों और जूस ,नारियल पानी इन सबकी कोई कमी नहीं थी। जब उनके पति होते पास में तो वे उसका माथा सहलाते ,कोई न कोई बात करके उसका मन बहलाते रहते थे लेकिन जब वो घर जाते और बेटा मनन साथ होता थो वो उसके चेहरे को देखतीं रहतीं कि वो कुछ बात करे लेकिन वो हर समय फोन में व्यस्त होता ।
वो कुछ बात करने की कोशिश करती कि कुछ संवाद हो तो वो कहता कुछ चाहिए आपको ? नहीं तो आप आराम करो ,बीमारी में ज्यादा बोलना नहीं चाहिए ।अब उसे कौन समझाए कि बात करना ही आराम देगा माँ को ,वही दवा है उसकी ।
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अपनों ने ही मगर बदल दी है अपनेपन की परिभाषा
वो चाहती थीं कि बात न करे तो कम से कम पहले की तरह उसका माथा सहला दे ,टाँगे दबा दे ,अपने हाथ से सूप पिला दे लेकिन वो तो इन सबसे ज्यादा इम्पोर्टेड काम कर रहा था –फेसबुक पर “मदर सीरियस ” की अपनी पोस्ट पर सभी फेसबुक फ्रैन्डस के संवेदना प्रकट करने वाले कमेन्ट्स का रिप्लाई भी तो करना था।
सब रिश्ते हो गए खोखले ,बस होते नाम भर
एक पल में दरक जाते जैसे पानी में रेत का घर
पूनम अरोड़ा