रीमा का परिवार एक जुट देख समारोह में आए सभी अतिथि आश्चर्यचकित हैं।
और इधर उधर छिटके लोग आपस में बतिया रहे ।ये जो देख रहे हैं ना सब भाभी जी का कमाल है। उन्होंने सबको बांध के रखा है।
वरना आज के समय में लोग अपने मां बाप को नहीं पूछते तो भला और को कौन पूछे।
खैर इस परम्परा को आगे बढ़ाने में इनकी बहुओं का भी बड़ा हाथ है ।वरना नए रिश्तों के जुड़ते ही लोग पुराने से कटने लगते हैं,ये कहके कि इतनी रिश्तेदारी निभाने की मुझमें सामर्थ नहीं है ।
इस पर पास खड़े कुछ लोगों ने कहा हां वो तो है अब देखिए ना कोई कह सकता है कि भाई साहब को गुज़रे इतने वर्ष हो गए।
कोई कोर कसर नहीं छोड़ी इंतजाम में भाभी जी ने , अब देखिए ना खुद के साथ साथ बहुओं को भी लगा रखा है।
सबको बराबर से पूछ रहीं हैं।
क्या नए क्या पुराने रिश्तेदार।
भाई वाह क्या बेहतरीन इंतजाम किया है और कितना स्वादिष्ट खाना बना है।
और तो और पोते के मुंडन संस्कार में भला विदाई भलाई कौन करता है पर वो देखो, वहां पर भी इन्होंने किसी को बिठा रखा है।
कि शुभ काम में बिना टीका और कोइया के कोई ना जाए।
खैर देर रात तक पार्टी चली सभी खूब खाएं पिए नाचे गाए।
और अपने अपने घर चले गए।
दूसरे दिन ही सामने की मिशराइन अपने बारे पर आई तो देखी भाभी जी के घर से रोने की आवाजें आ रही थी।और दरवाजे पर कुछ कुर्सियां लगी थी।
ये देख वो सन्न रह गई।
और मित्र अपने पति से घबराते हुए बोली सुनिए सुनिए वो देखिए वर्मा जी के घर से रोने की आवाजें आ रही हैं।और कुर्सियां भी लगी है।
आखिर हुआ क्या? चलिए चल कर देखते हैं।वहां जाकर देखा तो कल सबका स्वागत करने वाली भाभी जी नहीं रही पता चला।
दावत तवाजा के बाद जब सभी अपने अपने घर चले गए तो घर में कुछ ऐसा विवाद हुआ कि ये जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगी।
उसी बीच में मुर्छित होके फर्श पर गिरी तो ना उठी।और इतने लोगों में कोई डॉक्टर को लाने वाला ना था।
सबने एक दूसरे को सहेजा और “मैं थक गया हूं” कहते हुए अपने अपने कमरे में चले गए।
फिर दूर से आई लड़की ने पास के ही एक डाक्टर को बुला कर दिखाया।तब तक काफी देर हो चुकी थी। उन्होंने बताया कि मेजर हार्ट अटैक के चलते उनकी सांसें सदा सदा के लिए थम गई।
ये सुन पास बैठी बेटी दहाड़े मार मार कर रोने लगी।
फिर किसी तरह चुकी रात का समय था तो चुप कराया गया। और सुबह होने का इंतज़ार होने लगा।
इन ,सबके बीच घर आई मिशराइन ने सुना कि बगल के कमरे में आपस में सभी बेटे बैठे बातें कर रहे थे।
मिट्टी कैसे उठाई जाए ।हमारे पास तो पैसा ही नहीं है और जो है वो वापस जाने के लिए रखा है।
वो तो मां ने टिकट करके बुलवा लिया था तो हम लोग आ गए वरना कभी ना आते।फिर क्या जरूरत थी उनको इतने लोगों को इकट्ठा करके दावत करने की ,अब दावत किया तो किया भर बिदाई भी साथ में किया।
उसपर सभी बहुएं कह रही थी हां वही तो अब बताओ जो पैसा है यदि इनके क्रिया कर्म में लगा देगें तो हमारा और हमारे बच्चों का क्या होगा।
ये सुन मिशराइन के कान खड़े हो गए और सोचने लगी ।
सच बाहर से बहुत सुलझा हुआ दिखने वाला परिवार वास्तव में कितना बिखरा हुआ है।
जब एक मां की अर्थी उठाने के लिए इनके पास पैसा नहीं है तो भला किसी और का ये क्या करेंगे।
ये सब सुन उन्हें इस बात का यकीन हो गया कि जो एकता लोगों के बीच दिखती है वो दिखावटी है।सच तो ये है सभी रिश्ते खोखले हैं। बस फर्क इतना है कि कहीं दिखता है कहीं दिखता नहीं हैं।
और आंसू भरे। आंखों में अपने उस घर में चली गई।जहां वर्षों से इसी के बीच वो मुंह बंद करके रह रही हैं।
स्वरचित कहानी
कंचन श्रीवास्तव आरजू