खिलौनों में भेदभाव कैसा – प्रीती वर्मा

कितनी उत्साहित थी वो, सुबह से अनगिनत बार मुझसे पूछ चुकी थी.. मम्मा कब पहुंचेंगे चाचू जी,मैं तो परेशान हो चुकी थी उसे बताते बताते कि चाचू शाम को पहुंचेंगे।और सिर्फ तान्या ही नही, जेठानी का बेटा अरनव भी सुधीर के आने से उत्साहित था।घर के दोनो बच्चे सुधीर का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। या यूं कहें बाल मन को अपने चाचू चाची से कुछ गिफ्ट पाने की ललक और उत्साह ज्यादा था।

क्योंकि सुधीर और विभा बहुत दिनों बाद इस होली घर आ रहे थे।सुधीर और विभा जब भी आते थे, बच्चों के लिए कुछ न कुछ खिलौने और गिफ्ट लाते थे।

मेरी बेटी तान्या और जेठानी के बेटे अरनव में चार बरस का अंतर था।अरनव नौ साल का, और मेरी बेटी तान्या पांच साल की थी।लेकिन फिर भी जब घर में कोई खिलौना या कुछ  आता तो दोनो बच्चों के लिए एक समान आता।

दोनों बच्चों के लिए दिन बमुश्किल गुजरा, शाम होते ही सुधीर और विभा ने घर में एंट्री ली।दोनो बच्चे दौड़े दौड़े भागे भागे अपने प्यारे चाचू से लिपट गए, और ढेर सारी बातें करने लगे।कोई अपने खिलौने दिखाता तो कोई अपना नया स्कूल बैग।

दोनों बच्चों से बातें करते हुए, सुधीर को कुछ ध्यान आया और बोला… अरे मैं भी अरनव के लिए एक खिलौना लाया हूं,,, मैं अभी गाड़ी से निकालता हूं।

और सुधीर जब बाहर जाने लगे तो दोनों बच्चे उनके पीछे हो लिए चहकते हुए,, कि अभी उन्हें और खिलौने मिलेंगे।

सुधीर ने गाड़ी खोला और एक फुटबॉल निकाला और अरनव को दे दिया,, अरनव खुश हो गया।और चहकते हुए फुटबॉल उछालने लगा। लेकिन तान्या के चेहरे उदासी तैर गई थी।वो मासूमियत से पूछी, चाचू मेरे

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लिए???

सुधीर बोला,,आपके लिए कुछ नहीं मिला बेटा, मैं सुबह आपके लिए यहीं से कुछ ले आऊंगा, आपके लिए तो मैं प्यारी सी डॉल लाऊंगा।

लेकिन चाचू मुझे भी फुटबॉल ही चाहिए, अरनव भाई को तरह।इस बार तान्या का स्वर रूआंसा था।वो ललचाई आंखों से अरनव को फुटबॉल खेलते हुए देख रही थी।उसका उतरा हुआ चेहरा देख, मुझे भी बहुत दुख हुआ।

फुटबॉल आप क्या करोगी बेटू,, वो तो लड़के खेलते हैं, मैं आपके लिए बड़ी सी डॉल लाऊंगा।सुधीर ने तान्या को गोद में लेते हुए कहा।

“तान्या ने धीमे से उदास लहजे में बेमन से “हम्मम” कह कर अपनी सहमति दे दी।लेकिन इस बार मुझे उसका समझौता करना अच्छा नहीं लगा।और मैं बोल पड़ी.. बेटा, चाचू नहीं लाए तो क्या बेटा, मैं कल पापा से कहकर आपके लिए फुटबॉल मंगवा दूंगी ओके।

हां मम्मा मंगवा देना।तान्या थोड़ी खुश हुई।

क्या भाभी , आप बच्ची के मन में भेदभाव की भावना डाल रही हैं।आप उसके मन में चाचू के खिलाफ जहर घोल रही हैं, कि चाचू उसके लिए खिलौने नहीं लाए।देवर जी थोड़ा रुआब से बोले।

भेदभाव मैं नहीं, आप कर रहे हैं देवर जी।आप लड़का और लड़की के बीच भेदभाव कर रहे हैं।और वही भेदभाव का बीज आप बच्चों के मन में भी रोपित कर रहे हैं।जब आपको पता है घर में दो बच्चे हैं तो दोनों के लिए एक समान खिलौने लाने थे न।बच्चे वैसे भी दूसरे बच्चे को जिस खिलौने से खेलते देखते हैं, वही पाने की चाह रखते हैं।

अब आप बातें बढ़ा रही हैं भाभी, तान्या तो मान गई थी, ऐसे रहा तो आप उसे जिद्दी बना देंगी।देवर जी ने कहा।




हां, मैं अपनी बेटी को जिद्दी बनाना चाहती हूं।मैं नही चाहती हूं कि मेरी बेटी समझौता करे, मैं चाहती हूं मेरे बेटी अपने हक के लिए जिद्द करे, अपने हक के लिए लड़े  ।सिर्फ बेटियों को ही बचपन से समझौता करना क्यों सिखाया जाता है।उन्हे अपने हक के लिए लड़ना क्यों नही सिखाया जाता ।

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“और आपने क्या कहा, लड़कियां फुटबॉल नहीं खेलतीं? आपसे ये उम्मीद न थी,इतने पढ़े लिखे होकर भी ऐसी विचारधारा रखते हैं आप।खिलौनों में भेदभाव कैसा।कोई खिलौना किसी किसी लिंग विशेष का नाम लिखकर नही बनाया जाता।

लड़कियां क्या नहीं करती हैं।लड़कियों ने तो चांद तक अपने पैर जमा लिए हैं।लड़कियां पतंग से लेकर प्लेन तक उड़ाती हैं।अब दुनिया बराबरी वाली है देवर जी।लड़के लड़की दोनों की परवरिश एक समान होती है अब।और लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों के बराबर हैं।”मैं बोल हो रही थी, कि देवर जी उठकर बाहर चले गए।

कुछ वक्त बीत गया, वो नहीं आए, तो सासू मां मुझे कोसने लगीं,,, एक तो इतने दिन बाद मेरा लड़का घर आया, और तू निशा.. तू तो हर बात को बहस बना देती है।

बिल्कुल सही करती हैं भाभी।लड़कियों को बहस करना चाहिए, अपने अधिकारों के लिए, अपने हक के लिए।देवर जी पीछे से बोले।उनके हाथ में एक बड़ी सी फुटबॉल थी।जिसे उन्होंने तान्या के हाथ में दिया, और बोले,, भाभी बिल्कुल सही कहा आपने, बच्चों में भेदभाव नहीं करना चाहिए।मैं मुस्कुरा दी।फुटबॉल पाकर तान्या के चेहरे की खुशी का भाव देखते बन रहा था।

#भेदभाव

स्वरचित मौलिक©®

प्रीती वर्मा

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