बेटे की आया आशा के आने में अभी देर थी अत: डॉ अनुपमा अपने छह माह के बेटे का दूध लेने रसोई में खुद आई तो चकित हुई। ….नाम ही शान्ति है उसका ;लेकिन आते ही घर चहकने लगता है उसके हाथ के बने खाने मे स्वाद भी है पर आज चुपचाप उतरे मन से खाना बना रही थी ।
अनुपमा बोली “क्या बात है शान्ति ? आज बड़ी चुप सी हो।”
“क्या बोलू डा. साब !जमाई ने पीट कर बेटी को लौटा दिया धेवती के साथ। “
“ओह … मैं अभी आती हूँ।”
बेटे को दूध पिला कर वापिस लौटी अनुपमा।
“कौन सी बेटी “
“जी ..पुष्पा चौथे नम्बर की।”
अनुपमा को पता था कि शान्ति ने बेटे की चाहत में छह बेटियाँ पैदा कर ली थी।
आशा भी आ गई थी।
नीचे दो चार मरीज थे उन्हें देख कर अनुपमा फिर ऊपर जाने लगी । दुसरे डा. के यहाँ खाना बनाने के लिये शांति नीचे उतर रही थी। अनुपमा ने उसे सीढियों पर रोक कर सारी जानकारी ली ।
शान्ति बोली ” बेटी को तो वापस न भेजना मुझे अब; दस कलास पढ़ी है और उन्ने तो सुन्दर करने वाला कोरस ( ब्यूटीशियन)भी कर रखा है …बेटी के तो दो ही ठौर होवें आप घर या बाप घर।”
अनुपमा बोली ” उसे मेरे पास लाना।
शाम को शान्ति खाना बनाने आई तो पुष्पा को भी साथ लाई ।अनुपमा पुष्पा से बात करने के बाद बोली
“कल आ जाना …मुझे फेसियल कराना है ।”
दुसरे दिन पुष्पा आई ।अनुपमा ने सारा सामान मंगा लिया था पुष्पा ने फेसियल बहुत अच्छा किया ।
अनुपमा ने हास्पीटल के डाक्टर्स की पत्नियों को बताया .. पुष्पा सारे हास्पीटल की ब्युटीशियन बन गई ।
दो महीने बाद फेसियल के लिये अनुपमा ने पुष्पा को फोन किया ।
पुष्पा बोली “डा. साब ! आज काम जरा ज्यादा है; कल आ जाऊ “
” ठीक है “…कह कर अनुपमा खुश होते हुए बालकनी मे आ गई ।दो हफ्ते पहले गमला छोटा होने के कारण जो गुलाब का पौधा सूख रहा था माली ने गमला और मिट्टी में बदलाव करके अपनी समझ से खाद डाल दी थी ।आज उस पौधे पर एक कली आ गई थी ….कल तो वह पुष्प अवश्य बन जायगी।
दीप्ति सिंह (स्वरचित एवं मौलिक)