युवराज, बेटा युवराज मैं जरा पड़ोस में जा रही हूं। अपने नए पड़ोसी आए हैं। अभी-अभी शिफ्ट हुए हैं। जाकर पूछती हूं कहीं उन्हें किसी चीज की जरूरत तो नहीं। मैं रसोई संभाल दी है पीछे से चौक वाली आएगी तो उस से बर्तन मंजवा लेना। घर का ध्यान रखना ठीक है। अपने युवा बेटे युवराज को हिदायत देकर रश्मि चली गई।
जैसे ही वह पड़ोस के घर में वह घुसी उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। वे लोग काफी पैसे वाले थे। वह सकुचाते हुए सोफे पर बैठ गई। उनकी नई पड़ोसन कमरे से निकाल कर बाहर आई। फिर उस ने नमस्ते करके अपना परिचय दिया। दोनों में आपस में बातचीत हुई। फिर रश्मि यह कहकर घर वापस आ गई कि किसी चीज की जरूरत हो तो अवश्य बताना। संकोच मत करना।
पड़ोसियों को आए हुए बहुत दिन हो गए थे। युवराज ऊपर फर्स्ट फ्लोर वाले कमरे में अपने फाइनल वर्ष की तैयारी कर रहा था। पढ़ाई करते-करते वह बोर हो गया तो बालकनी में आकर खड़ा हो गया। अचानक उसकी नजर पड़ोस में खड़ी हुई लड़की पड़ी। लड़की ने भी उसे देखा। मगर युवराज उस लड़की को देखकर भूल न पाया। अब उस का हरदम यही मन होता कि वह उस लड़की से मिले और बातें करें। उसकी आंखों के आगे उस लड़की का चेहरा घूमता रहता। फिर यह बात उसने अपने दोस्त को बताई जो कि इस सोसाइटी में रहता था। उसने उससे वादा किया कि वह उसे उसे लड़की से मिलवा कर रहेगा ताकि वह उसे अपने दिल की बात कह सके।
फिर एक दिन उसके दोस्त ने उस लड़की और लड़के की मुलाकात करवा दी। रुचि को भी युवराज अच्छा लगने लगा और धीरे-धीरे उसकी दोस्ती प्यार में बदल गई। वे लोग अक्सर मिलने लगे और फिर शादी के बंधन में बनने की सोचने लगे। लड़की ने अपने माता-पिता से बात की मगर लड़की के माता-पिता इस रिश्ते के खिलाफ थे।
इसी बीच युवराज ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके और आगे की पढ़ाई के लिए बाहर चला गया।लड़की ने भी अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी। लड़की के माता-पिता का कहना था की बेटी यह लड़का हमारी हैसियत का नहीं है। तुम इसके साथ खुश नहीं रह पाओगी। तुम्हें हमने बड़े नाजों से पाला है। लेकिन लड़की जिद पर अड़ गई। बोली मैं शादी करूंगी तो इसी लड़के से करूंगी वरना नहीं।
रुचि ने अपने माता-पिता को समझाया की मम्मी युवराज एक अच्छी पढ़ाई किया हुआ लड़का है और मैं भी पढ़ी हुई लड़की हूं। हम दोनों मिलकर अपना घर चला लेंगे। कम मिलेगा तो कम खा लेंगे और अधिक मिलेगा तो अधिक खाएंगे। इस पर रुचि के पिता ने कहा की प्रेम विवाह में अक्सर ऐसा ही होता है पहले तो बच्चे भावनाओं में आकर शादी कर लेते हैं फिर बाद में पछताते हैं।
इसीलिए मैं तुम्हें समझा रहा हूं कि तुम अभी भी देख लो अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। फिर रुचि ने सोचा यदि मेरी शादी नहीं हो सकती तो मैं अब युवराज से मिलूंगी भी नहीं। वह उससे दूर-दूर रहने लगी। वह घर पर ही उदास बैठी रहती। उसके माता-पिता से उसकी यह उदासी देखी ना गई। आखिरकार उन्हें अपनी लड़की की जिद के आगे झुकना पड़ा और वह शादी के लिए मान गए। फिर युवराज और रुचि के माता-पिता ने अच्छा सा मुहूर्त निकाल कर दोनों की शादी करवा दी।
लक्ष्मी कानोडिया