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एक दिन दिव्या अपनी मम्मी रमा के साथ सीढ़ियों की तरफ जा रही थी, तभी उसकी नज़र सामने वाली खिड़की से नीचे चली गई, और वह जोर से चीख कर माँ से लिपट गई।उसकी आँखें बंद थीं और वह जोर जोर से ‘नहीं नहीं’ कह रही थी।रमा ने बेटी का सिर सहला दिया और खुद भी नीचे देखने लगी। वहां से सोसाइटी का पार्क दिखाई दे रहा था। क्यारियों में माली रामधन काम कर रहा था।क्यारियों में फूल धीरे धीरे सिर हिला रहे थे।और तो ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया जिससे दिव्या इस तरह डर गई थी।
रमा दिव्या को फ़्लैट में वापस ले गई।पूछने लगी—‘ऐसा क्या देख लिया तुमने जो इस तरह डर गईं।’दिव्या ने कहा-‘माँ, बिल्ली कबूतर को…’ जो कुछ दिव्या ने बताया उससे रमा इतना ही समझ सकी कि दिव्या ने एक बिल्ली को कबूतर पर झपटते देखा था इसीलिए डर कर चीख पड़ी थी।
रमा ने कहा-‘बिटिया, कबूतर के पंख होते हैं, जरूर उसने उड़कर अपनी जान बचा ली होगी।’ उस समय तो दिव्या चुप हो गई लेकिन उसके व्यवहार से साफ़ था कि उस घटना का डर उसके मन से निकला नहीं था। क्योंकि हर बार खिड़की के सामने से गुजरते हुए वह अपनी आँखें कस कर बंद कर लिया करती थी। रमा सोच रही थी कि बेटी के मन पर डर की जो छाया पड़ गई है उसे कैसे दूर किया जाए।
इसी बीच एक दिन माली रामधन ऊपर आया। वह रमा के दरवाजे के बाहर रखे पौधों की देखरेख किया करता था। रमा ने उसे दिव्या के डर के बारे में बताया और पूछने लगी-‘यह जिस दिन की घटना है उस दिन तो तुम भी वहीँ पास में काम कर रहे थे।आखिर हुआ क्या था।’
1
रामधन कुछ पल चुप खड़ा रहा जैसे कुछ सोच रहा हो, फिर बोला—‘ क्या कहूँ मैडम,मैं वहीँ क्यारी में काम कर रहा था, हुआ यह था कि एक कबूतर घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा था,तभी एक बिल्ली ने उस पर झपट्टा मारा,मैं उसे भगाने के लिए दौड़ा जरूर पर बिल्ली ज्यादा फुर्तीली थी। मेरे वहां पहुँचने से पहले ही बिल्ली घायल कबूतर को झाड़ियों में खींच ले गई।शायद मुझे दूर से ही बिल्ली पर पत्थर जैसा कुछ फैंकना चाहिए था तब शायद भाग जाती और कबूतर बच जाता।’
‘बुरा हुआ।’-रमा ने कहा।फिर बोली-‘दिव्या के मन पर उस दिन की घटना का डर बैठ गया है।उसे दूर करने में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।’
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‘बताइए मुझे क्या करना होगा।’-रामधन ने पूछा।
‘क्या तुम दिव्या से यह कह सकते हो कि उस दिन तुमने कबूतर को बिल्ली से बचा लिया था।’
‘आप मुझसे झूठ बोलने के लिए कह रही हैं। यह तो ठीक नहीं होगा। मेरे मन पर भी इस बात का बोझ सदा रहेगा कि मैं घायल कबूतर को बिल्ली से बचा नहीं सका |’ कह कर रामधन नीचे चला गया। रमा ने भी महसूस किया कि रामधन से झूठ बोलने के लिए कहना गलत था।उसे दिव्या का डर दूर करने का कोई और उपाय खोजना होगा।
दो दिन बाद रामधन ने आकर रमा से कहा-‘जरा बेबी दिव्या को तो बुलाइए।’ रमा ने दिव्या को बुला लिया। वह कुछ असमंजस में थी।रामधन ने दिव्या के कंधे पर हाथ रख कर कहा-‘ बेटी, मैं तुम्हें बताना भूल गया।उस दिन जब बिल्ली ने कबूतर पर झपट्टा मारा तो मैंने बिल्ली पर पत्थर फैंका जो उसे लगा,बस वह वहां से भाग गई।’
‘तो आपने कबूतर को बचा लिया था।’—दिव्या ने उत्तेजित स्वर में कहा और हंस पड़ी।फिर पूछा-‘घायल कबूतर का क्या हुआ।
‘मैं उसे घर ले गया।चोट ज्यादा नहीं थी। दवा लगाने से ठीक हो गई, अगली सुबह मैंने उसे आकाश में उड़ा दिया।’ सुन कर दिव्या ताली बजाने लगी—‘माँ,घायल कबूतर को काका ने बचा लिया,वह यह तो बहुत अच्छा हुआ।’
2
रमा अचरज से रामधन को देखती रह गई।उसे रामधन का इनकार याद था, फिर यह परिवर्तन कैसे हो गया! पर दिव्या के सामने कुछ पूछना ठीक नहीं था।अगली दोपहर उसने रामधन को क्यारियों में काम करते देखा तो उसके पास जा खड़ी हुई। वह कुछ पूछती इससे पहले ही रामधन बोल उठा-‘मैं जानता हूँ कि आप क्या पूछना चाहती हैं –यही न कि उस दिन मना करने के बाद मेरा मन कैसे बदल गया।रमा चुप सुनती रही।रामधन ने आगे कहा-‘उस दिन मैंने आपकी बात मानने से मना तो कर दिया पर मैं रात भर सोचता रहा कि अगर दिव्या बेबी की जगह मेरी अपनी बेटी होती तब भी क्या मैं यही करता। और तभी मैंने बेबी दिव्या से झूठ कहने का निश्चय कर लिया।‘
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रमा अब भी कुछ न बोली।लेकिन वह संतुष्ट थी कि दिव्या के मन से उस दिन की घटना का डर निकल गया था और इसमें रामधन ने बहुत मदद की थी।वह बोली –‘मैं तुम्हारा यह अहसान कभी भूलूंगी नहीं।’
रामधन ने कहा-‘ मुझे ख़ुशी है कि बेबी दिव्या का डर दूर हो गया,लेकिन…’
‘लेकिन क्या?”
‘यही कि मेरे मन पर यह बोझ सदा रहेगा कि मैं घायल कबूतर को बिल्ली का शिकार होने से नहीं बचा सका।’लेकिन रामधन ने कुछ निश्चय कर लिया था।उसी दोपहर वह अपने घर के पास वाले घायल परिंदों के अस्पताल में जा पहुंचा।वहां घायल परिंदों का डाक्टर रामधन को जानता था।उसने कहा-‘आओ जी फूलों के डाक्टर।’
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रामधन ने कहा-‘ मैं घायल परिंदों के इलाज की ट्रेनिंग लेना चाहता हूँ।’ डाक्टर ने पूछा तो रामधन ने कहा—‘ सोसाइटी का पार्क बहुत बड़ा है।वहां कई बार घायल परिंदे नज़र आते हैं
पर उनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता, पर अब से मैं घायल परिंदों की देख भाल करूंगा, उन्हें इलाज के लिए यहाँ लाया करूंगा।इसलिए मैं परिंदों का इलाज करना सीखना चाहता हूँ।’
उस दिन से हर दोपहर का अपना आराम छोड़ कर रामधन परिंदों के अस्पताल में समय बिताने लगा। इस बारे में उसने किसी से कुछ नहीं कहा।और फिर कई बार ऐसा हुआ कि रामधन को अपना मनचाहा करने का मौका मिल गया।और जिस दिन उसके द्वारा अस्पताल में लाये गए घायल परिंदे ने स्वस्थ होकर आकाश में उड़ान भरी तो वह उसके लिए सबसे ज्यादा ख़ुशी का दिन था।और उस दिन रामधन ने सोसाइटी के पार्क में खेलते सब बच्चों को टाफियां खिलाईं। फिर वह दिव्या से मिलने गया, उसे टाफी देते हुए बताया कि आज उस घायल परिंदे ने स्वस्थ होकर आकाश में उड़ान भरी है, जिसे वह परिंदों के अस्पताल ले गया था।
यह सुन कर दिव्या बहुत खुश हुई। इसके बाद खुशी की ऐसी टाफी दिव्या को कई बार खाने को मिली।घायल कबूतर को न बचा पाने के अपराध बोध से बाहर निकलने का अनोखा उपाय खोज निकला था रामधन ने।##