तेजस जी के बहनोई सुनील अमेरिका में जॉब करते थे।जब कभी भारत आते तो तेजस जी से भी मिलने आते।खूब सारे अमेरिकन गिफ्ट भी लाते।तेजस जी को किसी चीज की कमी नही थी खुद सम्पन्न थे,पर जब सुनील अमेरिकन गिफ्ट लाते तो उनमें एक हीन भावना घर जाती।एक कशिश दिल मे उठ जाती कि वे खुद अमेरिका नही जा पाये।उनके मन मे ये लालसा अधूरी रह गयी थी।तेजस जी के एक ही बेटा था,प्यार से उसे वे विक्की पुकारते थे।वह हाई स्कूल का एग्जाम दे चुका था।तेजस जी ने मन मे यह निश्चय कर लिया था कि वे भले ही अमेरिका न जा पाये हो पर वे अपने विक्की को हर हालत में अमेरिका भेजेंगे।
अपनी इस अभिलाषा को उन्होंने अपनी पत्नी उषा के अतिरिक्त किसी को जाहिर नही किया,हाँ विक्की को जरूर जताते रहते बेटा जल्द आई टी कर ले तुझे अमेरिका में ही नौकरी करनी है।विक्की को यह सुनकर अच्छा तो लगता फिर कहता पर वहां मम्मी पापा मेरे पास नही होंगे तो मैं आप बिन कैसे रहूंगा?अरे उसकी चिंता मत कर हम साल दो साल में तेरे पास आते रहेंगे।
तेजस जी के सोचने का दायरा मात्र इतना रह गया था कि उनका बेटा अमेरिका अवश्य चला जाये, वहां जॉब करेगा तो उनका सपना पूरा होगा आखिर वह समय भी आ ही गया।विक्की का जॉब अमेरिका में लग गया,तेजस जी पूरे उत्साह के साथ विक्की के जाने की तैयारी में लग गये।अपनी जान पहचान में अपनी रिश्तेदारी में शायद ही कोई बचा हो जिसे तेजस जी ने गर्व पूर्वक ये न बताया हो कि उनका बेटा अमेरिका जा रहा है।
विक्की अमेरिका चला गया,तेजस जी भी साल डेढ़ साल में तीन तीन महीने को विक्की के पास अमेरिका हो आते।वही एक बार उनका परिचय एक भारतीय परिवार से हो गया।शंकरलाल जी के पिता कभी अमेरिका आये थे,तो यही रह गये। शंकर लाल जी की परवरिश अमेरिका में ही हुई थी,शादी अवश्य भारतीय लड़की से हुई थी।शंकरलाल जी का भारत जाना न के बराबर होता,सही बात तो यह है कि उन्होंने एक प्रकार से अमेरिकी कल्चर अपना ली थी,इसी परिवेश में शंकरलाल जी के बच्चे भी पले बढ़े।उनकी बेटी शर्मिला और बेटा हरीश भी देखने मे भारतीय लगते थे पर अमेरिकी संस्कृति में वे भी पगे थे।अमेरिका प्रवास के दौरान तेजस जी और शंकरलाल जी की अच्छी खासी मित्रता हो गयी।दोनो परिवारों में आना जाना हो गया।
इसी मित्रता पूर्ण वातावरण में शंकरलाल जी ने अपनी बेटी शर्मिला की विक्की से शादी का प्रस्ताव रख दिया।तेजस जी को प्रस्ताव बुरा नही लगा।शर्मिला सुंदर थी,जॉब भी करने लगी थी और सबसे बड़ी बात वह भी अमेरिका में ही रहती थी।
विक्की ने अपने पिता से विरोध प्रकट किया,विक्की का कहना था,पापा मैं भारतीय लड़की से शादी करना चाहता हूँ।शर्मिला भारतीय जैसी दिखती तो जरूर है पर वह भारतीय संस्कार नही रखती।शंकरलाल जी ने अधिकार पूर्ण स्वर में कहा देखो बेटा तुमने खुद कोई लड़की पसंद कर रखी हो तो बात दूसरी है,अन्यथा तुम्हारे लिये शर्मिला सर्वथा उपयुक्त है।
विक्की शर्मिला की शादी हो गयी।दोनो अमेरिका में ही रहते थे,दोनो ने अमेरिकन नागरिकता ली हुई थी,इस कारण कोई समस्या नही आयी।शर्मिला एक डोमिनेटिंग नेचर की लड़की थी,वह विक्की पर हावी रहती,उसे विक्की का भारत अपने माता पिता के पास जाना पसंद नही था।धीरे धीरे तेजस जी एवम विक्की का संपर्क मात्र वीडियो कॉल तक सीमित हो गया।तेजस जी उम्र के साथ कमजोर भी होने लगे थे,शुगर,कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों ने घेर लिया था।उनकी पहले जैसी चुस्ती दुरुस्ती सपना बन गयी थी।उन्हें अहसास होने लगा था कि इस उम्र में उनका बेटा उनके पास होना चाहिये था,पर दोष किसे दे,भेजा तो उन्होंने ही था।उन्हें कभी कभी अपने पर झुंझल आती,क्यों उन्होंने अपने बेटे को अपनी ही जड़ो से काट दिया।वे अपनी पीड़ा को अवसर देख विक्की से कह भी देते,बेटा अब अकेले नही रहा जाता,लौट आ।
विक्की अपने पिता के मनोभावों को समझ तो रहा था,पर करे तो क्या करे,सब कुछ करा धरा को उसके पिता का ही था।इधर शर्मिला भारत बिल्कुल भी नही जाना चाहती थी।विक्की को क्रोध अपने पिता पर तो था ही कि उन्होंने खुद उसे विदेश भेजा और उसकी शादी भी यही करा दी जो एक प्रकार से विदेशी ही हो चुके थे,उसका क्रोध अपनी पत्नी शर्मिला पर भी था जो उसकी इच्छा, उसके माता पिता को बिल्कुल भी महत्व नही दे रही थी।बेबसी के इस वातावरण में उसने भारत की कंपनियों में भी जॉब के लिये आवेदन कर दिया, बिना शर्मिला को बताये।
तेजस जी को हल्का सा हार्ट अटैक आया,तो उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया।तेजस का मन चीत्कार कर उठा।उसे पिता के पास होना चाहिये पर शर्मिला बिल्कुल भी तैयार नही थी।आखिर उसने निर्णय लिया और शर्मिला से बोला शर्मील देखो मेरे माता पिता को मेरी जरूरत है,मुझे उनके साथ रहना चाहिये, प्लीज तुम्हें मेरी पत्नी होने के कारण मेरा सहयोग करना चाहिये।उनकी जीवन यात्रा रह ही कितनी गयी है।हम वहां संतोष महसूस करेंगे,शर्मिल चलो भारत चले।शर्मिला ने स्पष्ट इनकार कर दिया,साथ ही चेतावनी भी दे दी कि यदि वह जायेगा तो वह तलाक ले लेगी।विक्की अवाक सा शर्मिला का मुँह देखता रह गया।तलाक जैसी बात एकदम से उसके मुंह से सुन विक्की अंदर तक दरक गया।उसने सोचा कि आखिर उसने पाया क्या,न तो वह माँ पिता को पा सका और पत्नी को पाया तो ऐसे जो उसकी भावनाओं को तलाक के साथ तराजू में तौल रही हो।
कई दिनों के उहा पोह के बाद विक्की एक दिन बोला शर्मिल मैं भारत वापस जा रहा हूँ,मैं चाहता हूं मेरी पत्नी भी मेरे साथ चले।शर्मिला के पुनः मना करने पर विक्की शर्मिला से यह कहकर कि ठीक है शर्मिल मैं जा रहा हूं, तुम्हारा इंतजार करूँगा।यदि मेरे प्रति जरा भी अनुराग पनपे तो शर्मिल आ जाना मेरे पास,मैं स्वागत ही करूँगा।
विक्की भारत आ गया अपने पापा मम्मी के पास।विक्की के जाने के बाद शर्मिला को तन्हाई में विक्की के साथ बिताये पल याद आते तो वह बेचैन हो जाती।उसके सामने कभी तो विक्की का प्यार भरा हँसता चेहरा घूमता तो कभी वह मासूम सा चेहरा जो कह रहा हो आ जाओ ना शर्मिल,मैं अकेला हूँ।ये भावनाये शायद अमेरिकन संस्कृति पर उसके भारतीय जीन्स के कारण हावी हो रही थी।एकांत में उसे क्रोध आता कि वह क्यो नही विक्की से तलाक ले रही? कौनसी शक्ति उसे रोक रही है?भारतीय संस्कृति या विक्की का प्यार?निर्णय तो न कर सकी पर यह स्पष्ट हो गया कि वह विक्की के बिना रह नही पायेगी।
सुबह की फ्लाइट में बैठी शर्मिला आंखे बंद कर सोच रही थी कि पता नही भारत कैसा होगा,मेरा विक्की तो मेरी राह देखता ही होगा तो भारत भला अच्छा क्यो नही होगा?
बालेश्वर गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित।
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