Moral Stories in Hindi : कभी-कभी हम जिस बच्चे को खानदान का चिराग समझते हैं,वही खानदान की प्रतिष्ठा में कलंक लगा देते हैं और जिसे खानदान का कलंक समझते हैं,वही अपने सत्कर्मों से माता-पिता की जिन्दगी को रोशन कर देते हैं।प्रस्तुत निम्नलिखित कहानी इसी विषय से सम्बन्धित है।
कमला प्रसव पीड़ा से बेहाल थी।पहले से ही वह दो बेटों की माँ थी।शायद एक बेटी की आस में उसने तीसरी बार इस वेदना को सहने का मन बनाया हो,परन्तु इस बार उसकी प्रसव पीड़ा अत्यधिक कष्टदायक थी।सभी परिवारवाले ईश्वर से दुआ कर रहे थे कि किसी तरह कमला को इस पीड़ा से निजात मिले।उसी समय नवजात बच्चे की किलकारी गूँज उठी।कुछ ही देर में नर्स ने नवजात को लाकर सरला की बाहों में रख दिया।पूरे परिवार में लगातार तीसरे बेटे के आगमन से खुशी की लहर दौड़ उठी।कमला जरुर बेटी न होने से कुछ मायूस थी,परन्तु माँ के लिए संतान बेटा हो या बेटी!ममता उसकी छाती से अमृतरुपी दूध के रुप में बहने ही लगती है।
समय के साथ कमला अपने तीनों बेटों के पालन-पोषण में व्यस्त थी।अचानक से उसे आभास हुआ कि उसका तीसरा बेटा अशोक न तो नर है न ही नारी!वह अपूर्ण मनुष्य है।डरते-डरते कमला ने यह बात अपनी सास से कही।सास ने उसे ताना मारते हुए कहा -” बहू!मुझे तो इसका आभास पहले ही हो गया था।तूने एक किन्नर को जन्म देकर पूरे खानदान पर कलंक लगा दिया है।मेरे खानदान में कभी किन्नर नहीं पैदा हुआ था ऐसे बच्चे को त्याग देना ही बेहतर है!”
कमला सास के तानों से आहत होकर फूट-फूटकर रो पड़ी। शाम में पति के घर आने पर कमला ने वही बातें दुहराई। पति महेश के कानों में जैसे ही यह बात पड़ी,अचानक से वह स्तब्ध हो उठा।पति-पत्नी को विश्वास नहीं हो रहा था कि उनका छोटा बेटा ऐसा कैसे हो गया?
अगले दिन कमला दम्पत्ति बच्चे को लेकर डाॅक्टर के पास गए। डाॅक्टर ने सभी जाँच करने के बाद कहा -” यह बच्चा वैसे तो सामान्य है,परन्तु मुझे दुख के साथ यह भी कहना पड़ रहा है कि यह किन्नर है!”
कमला दम्पत्ति के लिए डाॅक्टर के शब्द मानो कानों में गरम- गरम पिघले शीशे के समान प्रतीत हो रहे थे।
अचानक से घर का वातावरण बदल गया।जिस बच्चे पर कल तक खानदान प्यार लुटा रहा था,वही अगले पल सबके लिए उपेक्षित हो उठा,परन्तु इसके विपरीत कमला की ममता अन्य दोनों बेटों की अपेक्षा छोटे पर अत्यधिक बरसने लगी।अब वह हर पल अपने छोटे बेटे के साथ साए की तरह लिपटी रहती।उसे जमाने की नजरों से बचाने की कोशिश करती।वह बेटे की कमजोरी की भनक समाज में किसी को नहीं लगने देना चाहती थी।
कमला का छोटे बेटे के प्रति अत्यधिक लगाव देखकर उसकी सास ताना मारते हुए कहती -” बहू!इस ठूँठ बेल को ज्यादा सीने से मत चिपकाया करो।खानदान के लिए यह कलंक है।”
माँ की बातों से सहमत होते हुए उसके पति महेश भी क्रोधित होते हुए कहता -“कमला!क्यों हमेशा दोनों बेटों को छोड़कर इस कुलनाशक के पीछे लगी रहती हो?ऐसे बच्चे को तो वो लोग (किन्नर )ही उठाकर ले जाएँ तो अच्छा है। इसके कारण दिनोंदिन खानदानकी बदनामी ही फैलेगी।”
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डॉ संजु झा