moral stories in hindi : जब मेरा दाखिला स्कूल में कराया गया था.. तो मेरे पिता ने मेरा नाम मंजू तिवारी लिखवाया ..मेरे साथ ही मेरे से छोटा मेरा भाई चाचा का बेटा उसका भी दाखिला कराया गया उसका नाम लिखवाया गया.. हम दोनों भाई बहनों के साथ कोई भेदभाव नहीं था.. उसे भी खानदान का सरनेम दिया गया मुझे भी मेरे पिता ने खानदान का सरनेम दिया .
मंजू बड़ा प्रचलित सा नाम था.. तो क्लास में इस नाम की और भी लड़कियां हुआ करती थी.. मै सरनेम से ही पहचानी जाती थी.. वैसे भी किसी को बुलाया जाता है ।तो पूरे नाम के साथ ही बुलाया जाता है ।..तो मुझे भी सभी मंजू तिवारी नाम से ही जानते थे ..और शुरू से ही बुलाया गया… जहां भी गई वहां कभी मंजू तिवारी करके बुलाया गया या तिवारी मैडम कहा गया.. क्योंकि बचपन से मैं अपने नाम को तिवारी नाम के साथ ही सुनती आ रही हूं तो यह सरनेम मेरी व्यक्तित्व एक हिस्सा है।..
जिसको सुनने में मैं अभ्यस्त हो चुकी हूं। ..और सारे सर्टिफिकेट्स में मैं मंजू तिवारी ही हूं। सर्टिफिकेट पर नाम डिग्रियों पर नाम हमेशा मंजू तिवारी ही रहेगा जिसे बदला नहीं जा सकता.. और इसमें कुछ गलत भी नहीं है। ..इसी सरनेम के साथ मैंने 26 साल निकले अब मेरी शादी हो जाती है .तो मैंने अपनी फेसबुक प्रोफाइल भी मंजू तिवारी नाम से ही बना रखी है ।.. मैं उसे चला रही थी तो एक जान पहचान वाले व्यक्ति का कमेंट आया मंजू तिवारी…?
मैं समझ गई वह मेरे सरनेम के बारे में ही बात कर रहे हैं। मैंने उत्तर दिया क्यों तिवारी सरनेम की क्या किसी एक व्यक्ति ने रजिस्ट्री करा ली है। मेरे पिता का सरनेम है। इसमें किसी को क्या प्रॉब्लम,,, दूसरा सरनेम इस वजह से भी नहीं बदला कि जब हम सब साथ पढ़ते हैं तो fb पर अन्य सोशल मीडिया पर अपने साथ वाले साथियों को ढूंढते ही हैं ।..
इस कहानी को भी पढ़ें:
माफी (कहानी) – डाॅ संजु झा
और किसी को किसी का नया सरनेम क्या पता आसानी के से पुराने सरनेम के साथ उसको ढूंढ सकते हैं । ना मेरे सरनेम बदलने के लिए मेरे पतिदेव ने मुझे कुछ कहा… क्योंकि हम शुरू से ही एक प्लानिंग करके चले थे कि हम कुछ ना कुछ अलग-अलग काम जरुर करेंगे और हम अपने-अपने क्षेत्र में अपने-अपने सरनेम के साथ एक पहचान बना रहे हैं।
मैं सरनेम बदल भी लूं और समर्पण की भावना कम हो तो ऐसे सरनेम को बदलने से क्या मतलब यहां मैं यह भी कहना चाहूंगी मैंने अपना सरनेम नहीं बदला फिर भी हमारी गृहस्ती की गाड़ी बिना रुके सरपट दौड़ रही है।
और यहां मैं यह भी नहीं कह रही हूं कि जो सरनेम बदलते हैं उनमें समर्पण की भावना कम होती है। यह व्यक्तिगत चुनाव होता है सरनेम बदलने ना बदलना
ऐसे यही सरनेम का यक्ष प्रश्न मेरे सामने कई बार खड़ा हुआ,,,, मैंने समझाते हुए हमेशा कहा पहले महिलाओं के पास कोई भी डिग्री सर्टिफिकेट नहीं होते थे तो उनका सरनेम क्या नाम भी कई बार बदला जा सकता था अब तो हम इतने पढ़े लिखे हो गए हैं। कि हमारे नाम पर बहुत सारे कागजात डिग्रियां होती हैं। आसानी से अपने नाम को नहीं बदला जा सकता वैसे भी नए नियमो के तहत बेटियों की जाति और सरनेम नहीं बदला जा सकता क्योंकि जाति और सरनेम जन्म जात होते हैं।
हम पति-पत्नी बैंक जाते रहते हैं । हम दोनों के खाते को लेकर कागज देख देख रही थी तो बैंक मैनेजर गुप्ता कहने लगी मैंने तो अपना सरनेम आज तक नहीं बदला कौन मैरिज सर्टिफिकेट बनवाएं और सरनेम बदले क्या फर्क पड़ता है कि कोई भी सरनेम बना रहे.. हैं तो अपना ही ,,पिता का सरनेम मेरा ही तो सरनेम है। इसमें भला क्या परेशानी है।
मैंने कहा मैंम अपनी अपनी सोच होती है मैंने तो कई महिलाओं को देखा है कि शादी के दूसरे दिन ही अपना सरनेम प्रोफाइल बदल लेती है। चाहे अपने ससुराल के खानदान के प्रति उनका समर्पण ना हो लेकिन ससुराल के खानदान के सरनेम को पूरे श्रद्धा और समर्पण के साथ दूसरे दिन ही अपना लेती हैं। मेरी बात सुनकर मैनेजर गुप्ता हंसने लगी सही कहा मंजू ऐसा ही होता है। और बदलना ना बदलना व्यक्ति का अपना व्यक्तिगत मसाला है।
और मैं इन बातों पर नहीं जाना चाहती कन्या के दान के साथ उसके गोत्र का भी दान होता है। क्योंकि परिस्थिति और समय के अनुसार नियमों में सदा बदलाव आता रहा है। दिखाने के लिए आप अपना कोई भी सरनेम क्यों ना लगा ले लेकिन आधिकारिक तौर पर आपका वही सरनेम मान्य होगा जिस सरनेम के आपके पास सर्टिफिकेट होंगे पहचान पत्र होंगे मेरा सरनेम मेरी व्यक्तित्व का एक हिस्सा है। बहुत लंबे समय से,,,, जिसमें कुछ जोड़ा या घटाया नहीं जा सकता है। यदि मैं अपने कार्य क्षेत्र में सक्रिय नहीं होती तो कुछ भी हस्ताक्षर करती चाहे पति का सरनेम लगती चाहे पिता का,,
इस कहानी को भी पढ़ें:
मुहावरा – विभा गुप्ता
जब मैं अपने कार्य क्षेत्र में सक्रिय हूं। तो आधिकारिक तौर पर वैलिड हस्ताक्षर ही करूंगी जो मेरे नाम और प्रमाण पत्र मेरी पहचान को प्रमाणित करते हैं। मैं लिखने वाले ही सरनेम को हर जगह दिखाती हूं और लिखती हूं । और अपनी पहचान को प्रमाणित करती हूं। मैं पिता के खानदान से हूं सरनेम देने में उनके कोई दोहरे मापदंड नहीं थे मेरे खानदान के मुझ में अनुवांशिक गुण हैं। मैं मंजू तिवारी हूं। जो मेरी पहचान है। कुछ लोगों को लगता है कि हम सिर्फ बहने हैं इसलिए हमने अपना सरनेम नहीं बदला यदि हमारे यहां भाई भी होता तो भी मैं सरनेम नहीं बदलती जब पिता ने सरनेम दिया है तो मैं उसको क्यों हटाऊ और मेरे सुख-दुख में मेरे पिता खड़े रहते हैं। उनकी बेटी हूं मैं,,,,
पति के खानदान को तन मन का समर्पण है। यही मेरा दोनों खानदानों के बीच संतुलन है। और हम पति-पत्नी का एक दूसरे के प्रति प्रेम का समर्पण ही हमारे सुखद वैवाहिक जीवन का प्रमाण है। इसमें सरनेम कभी बाधा नहीं बना हम दोनों अपना-अपना आयकर भरते हैं। अपने-अपने नाम की प्रमाणिकता के साथ,,,, अगर कुछ ना करना हो तो कोई भी सरनेम हटाओ या लगाओ अगर जिंदगी में कुछ बनना है तो प्रमाणिक नाम की आवश्यकता होती है दिखावे के नाम की नहीं इसलिए मैं अपने पिता का दिया हुआ सरनेम के साथ चेक पर हस्ताक्षर करती हूं अपने असली व्यक्तित्व के साथ गर्व से लगती हूं। अपना सरनेम,,,,,
न जाने आज भी क्यों यदि लड़की शादी के बाद अपना सरनेम ना बदले तो समाज को परेशानी होने लगती है। बदलते समय के साथ सोच भी बदलना जरूरी है। सरनेम का यक्ष प्रश्न सदा बेटियों के सामने खड़ा कर दिया जाता है बेचारी पढ़ी-लिखी बेटियां भी अपने सरनेम को कभी हटती हैं कभी पिता के सरनेम को लगती हैं कभी पति और पिता दोनों के सरनेम लगती हैं। बेटियों को दोराहे पर खड़ा कर दिया है। और बेटियां अपने हिसाब से अपना रास्ता चुन रही है।
प्रतियोगिता हेतु कहानी
#खानदान #
मंजू तिवारी गुड़गांव
स्वलिखित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित