खानदान की इज्जत – रोनिता कुंडु   : Moral Stories in Hindi

सुनिए जी… आपको कुछ कहना था… मम्मी के बारे में गीतिका ने अपने पति शशांक से कहा…

 शशांक:  अरे यार… फिर से शुरू मत हो जाना तुम… दिन भर काम करके बंदा घर आकर दो घड़ी चैन से सोएगा या फिर घर की महाभारत सुनेगा..? सोने दो मुझे चैन से और खुद भी सो जाओ… यह कहकर शशांक सो गया और इधर गीतिका भी अपने आंसू एक कोने में दबाकर सोने की कोशिश करने लगी… पर ऐसा क्या था जो गीतिका शशांक से कहना चाहती थी..? पर शशांक सुनना नहीं चाहता था… यह जानेंगे बाद में 

अगली सुबह शशांक को उसकी मां कौशल्या जी ने कहा… बेटा आज छुट्टी ले लो… आज तुम्हारी बहन और उसके परिवार को खाने पर बुलाया है… सोचा था पहले तुमसे पूछ कर ही सब कुछ तय करूंगी… पर कल रात ही मधु ने कहा कि उसके ननद अदिती सिर्फ आज ही फ्री रहेगी… उसके बाद उसकी शादी तक किसी न किसी रिश्तेदार के यहां जाना है… तो मैंने सोचा उसकी शादी के पहले हमें भी तो उसे दावत पर बुलाना होगा,

तो यही सोचकर उसके परिवार को सुबह ही न्यौता दे दिया… अब तुम सारे इंतजाम देख लेना… कुछ भी कमी नहीं होनी चाहिए बेटा… आखिरकार तुम्हारी बहन के सामने उसकी खानदान की इज्जत का सवाल है.. मधु की भी नई-नई शादी हुई है तो उसके परिवार को भी पता चलना चाहिए के उसका भी खानदान किसी से कम नहीं है 

शशांक:   ठीक है मां… आप मुझे लिस्ट दे दो… मैं सारा सामान जाकर बाजार से ले आता हूं और फिर गीतिका की मदद भी तो करनी पड़ेगी ना… 

कौशल्या जी इस पर अपनी आंखें तरेर कर कहती है… तू बस बाहर का देख ले… घर की रसोई के लिए हम हैं 

उसके बाद शशांक बाजार चला गया और इधर कौशल्या जी गीतिका को क्या-क्या बनेगा यह हिदायत देने लगी… थोड़ी देर में सारा सामान आ गया और गीतिका भी अपने काम पर लग गई… शशांक गीतिका की मदद करने जैसे ही रसोई में जाता, कौशल्या जी उसे किसी और काम में लगा देती…. खैर गीतिका को तो इन सब की आदत थी…

उसने बिना किसी से उम्मीद लगाए अपना सारा काम खत्म कर लिया… तरह-तरह के पकवान की खुशबू से घर पूरा महक रहा था… फिर सारे मेहमान आ गए और सभी कोई खाने की टेबल पर बैठे थे… गीतिका सभी को खाना परोस रही थी और सभी खाने की तारीफ भी कर रहे थे.. खाने का कार्यक्रम खत्म हुआ और मेहमान अपने घर चले गए… 

मेहमान को बाहर तक छोड़ने के बाद शशांक गीतिका से कहता है अब तुम भी खा लो… फिर साथ में रसोई का काम निपटा लेंगे… तब तक मैं अपने कमरे में ही हूं… तुम्हारा खाना हो जाए तो मुझे बुला लेना… यह कहकर शशांक अपने कमरे में चला गया… थोड़ी देर बाद शशांक देखता है कि काफी देर हो गई, पर गीतिका नहीं आई उसे बुलाने… इसलिए वह खुद ही रसोई में चला गया तो देखता है गीतिका रसोई में जमीन पर ही बैठकर खाना खा रही है 

पर शशांक यह देखकर हैरान था कि घर पर इतने पकवान बने हैं और यह सिर्फ दाल चावल और एक सब्जी ही खा रही है… पनीर के कोफ्ते भी तो बने थे जो कि गीतिका के पसंदीदा में से एक है… पर वह उसकी थाली में नहीं है… तो उसने उत्सुकता वश पूछा… गीतिका आज तो इतने सारे पकवान बने हैं और तुम बस दाल चावल और भरवा बैंगन ही लेकर बैठी हो… पनीर के कोफ्ते नहीं लिए..? 

गीतिका:   वह क्या है ना, जोरों की भूख लगी थी तो जो सामने आया फटाफट लेकर बैठ गई… छोड़िए बस अब तो खाना भी हो गया 

शशांक:    रुको… मैं देता हूं… पता है तुम सभी के लिए करोगी पर अपने लिए ऐसे ही काम चोरी करोगी… कहां रखा है सारा खाना..? फ्रिज में ना..? रुको मैं देता हूं… इससे पहले गीतिका कुछ और कह पाती शशांक फ्रिज खोलने लगता है… पर यह देखकर वह हैरान हो जाता है कि फ्रिज लॉक है… गीतिका अब अपनी आंसू छुपाते हुए खाने पर अपनी नज़रें गड़ाकर खाना खाने की एक्टिंग करने लगी…

पर शशांक अब समझ चुका था कि उस रात गीतिका उसे क्या कहना चाह रही थी..? पर वह चुपचाप वहां से चला गया और इधर गीतिका फूट-फूट कर रोने लगी… अब जब सभी रात में खाने बैठे तो गीतिका को कौशल्या जी ने कहा कोफ्ते शशांक को दे दो पहले… फिर जो बचे मुझे दे देना 

शशांक:  मम्मी मुझे नहीं खाना कोई कोफ्ता और आज से जो गीतिका खाएगी, मैं भी वही खाऊंगा… जिस घर में अपने खानदान की इज्जत कम ना हो इसलिए इतने पकवान बनाए जाते हैं और जो खानदान की इज्जत बचा रही है… उसकी मेहनत को कोई देखना नहीं चाहता है… उसे ही अच्छा खाना नसीब नहीं होता…

क्या करेंगी ऐसी दिखावे की इज्जत का..? गीतिका गरीब परिवार से है… सब कुछ चुपचाप सहती है… लेकिन याद रखना मम्मी घर की नींव संभाल कर उसी ने रखा है… पर आपको तो वही बातें याद रखकर जीना है… तो आज आप एक और बात अच्छे से सुन और समझ लो…  जब आपको हमारी जरूरत सबसे ज्यादा होगी उस वक्त सबसे बदला हुआ आपको अपना बेटा ही नजर आएगा…

आज आप जो गीतिका के साथ कर रही है, एक दिन अगर वही गीतिका ने आपके साथ किया तो फिर आप उसके लिए भी तैयार रहना… मुझे पता है कि गीतिका ऐसा कुछ नहीं करेगी… पर अगर मैं गीतिका की जगह होता मैं जरूर करता.. मैं तो हैरान हूं आप हमेशा से ऐसा ही करती आई हैं और इसने आज तक अपने होठों को इसी तरह सीलकर रखा है… मैं बस यही सोचता रहा कि यह बेवजह बस शिकायत करती है

और मैंने कभी इसकी बात नहीं मानी क्योंकि मुझे इससे ज्यादा आप पर भरोसा था… पर जब आज खुद मैंने अपने आँखो से सब कुछ देखा तो मुझे यकीन हो गया कि यह सच कहती थी.. आज घर में इतने सारे पकवान बने हैं और आपने सारा कुछ फ्रिज में रखकर फ्रिज को ताला लगा दिया…

आपने यह भी नहीं सोचा कि सुबह से इसने कितनी मेहनत की हैं इन सभी पकवानों को बनाने के लिए… किस लिए आपके खानदान की इज्जत बचाने के लिए.. जबकि वह बेचारी खुद भूखी बैठी है 

कौशल्या जी शशांक की इस बातों से खामोश रहती है और इधर गीतिका भी अपनी आंसू पोंछते हुए चुपचाप खड़ी रहती है… पता नहीं उनके घर की हालत शशांक के इस फैसले से बदलेगी या नहीं… पर दोस्तों ऐसा तो अक्सर हर घरों में देखा गया है… हम अपनी बेटी की इज्जत और अपने खानदान की इज्जत अपनी बेटी के साथ ही जोड़ते हैं… पर उस बेटी का क्या..?

जो दूसरे घर से आई है… अगर सच में अपने खानदान कि इज्जत बचानी है तो उस बेटी को भी प्यार देना पड़ेगा… क्योंकि आपके रहते हुए भी आपके खानदान की इज्जत उसी से है और आपके जाने के बाद भी आपके खानदान की इज्जत उसी से बनी रहेगी… 

धन्यवाद 

रोनिता

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