रक्षाबंधन का त्योहार आने में कुछ ही दिन बचे थे। गरिमा अपने भाई के लिए राखी खरीदने बाजार गई। राखी खरीदते समय उसे अनायास ही विनय की याद आ गई।
विनय मेरी प्रिय सखी अनु का भाई था। अनु और मैं कक्षा आठ से साथ पढ रहे थे। विनय बहुत ही मिलनसार, हँसमुख और हाज़िरजवाब था। वह मुझे अपनी बहन अनु के समान ही मानता था। विनय से मेरी पहली मुलाकात अपने घर पर हुई थी।
हमारी हिंदी अध्यापिका ने अनु और मुझे मिलकर एक परियोजना बनाने को कहा था। परियोजना अगले दिन ही बनाकर देनी थी। समय कम था। परियोजना बनाने में देरी हो गई थी, इस कारण अनु का भाई विनय उसको लेने मेरे घर आया था। अनु के भाई से मिलकर मुझको लगा ही नहीं, मेरी उससे पहली मुलाकात है।
मुझे यह भी याद आया, एक बार विनय कंपनी के काम से कहीं बाहर गया था तो मेरे लिए भी एक सुंदर-सा उपहार लेकर आया था। मैंने मना किया तो उसने कहा, क्या तुम मुझे अपना भाई नहीं समझती! मेरे लिए जैसे अनु वैसे ही तुम हो।
इसी तरह हँसते-खेलते कब स्कूली शिक्षा समाप्त हो गई, पता ही नहीं चला। कॉलेज और विषय अलग होने के कारण मेरा और अनु का मिलना-जुलना कम हो गया। फोन पर ही बातचीत होती थी। अनु के भाई का भी मुंबई स्थांतरण हो गया। फिर एक दिन विनय के मुंबई से घर आते समय रेल हादसे में निधन की खबर मिली।
अनु की हँसती-खेलती दुनिया गम के सागर में डूब गई। मुझे भी बहुत दुख हुआ। अनु के भाई का मुसकराता चेहरा बार-बार मेरी आँखों के सामने आ रहा था।
अनु तो टूट ही गई थी। मैंने उसे सांत्वना दी, जबकि मुझे पता था, इस दुख से उबरने में अभी कुछ समय लगेगा।
तेरह दिन बीतने के बाद अनु ने माता- पिता की खातिर अपने आप को संभाल लिया। भाई के असामयिक निधन ने उसको अचानक ही बहुत बड़ा बना दिया था। उसने पढाई के साथ-साथ पार्ट टाइम नौकरी भी ज्वाइन कर ली।
विनय के देहांत के बाद अनु की यह पहली राखी है, यह सोचकर मैं उसके बारे में सोचकर बेचैन हो उठी। कुछ सोचकर मैंने अनु के लिए एक सुंदर-सा उपहार लिया और उसके घर की और चल पड़ी।
अनु के उपहार लेने से मना करने पर मैंने संजीदगी से कहा- “क्या विनय के जाने से हमारा रिश्ता खत्म हो गया ! क्या विनय तुम्हारा ही भाई था, मेरा नहीं! विनय ने तुझमें और मुझमें कोई फर्क नहीं किया। वह मुझे भी अपनी बहन मानता था, इस नाते तुम मेरी भी बहन हुई न! क्या भाई ही त्योहार पर बहन को उपहार दे सकते हैं! बहनें कोई उपहार नहीं दे सकती क्या!समय बदल गया है। भाई से कुछ लेने से क्या तुम मना करती? क्या रक्त से बने रिश्ते ही सच्चे होते हैं”!
#दिल_का_रिश्ता
अर्चना कोहली ‘अर्चि’
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
मौलिक और स्वरचित