क्या कोई आयेगा? – दर्शना जैन

कई बार अमरदीप काम से लौटता और उसका अपनी पत्नी उर्मिला पर जरा-जरा सी बात पर चिल्लाना शुरू हो जाता। उर्मिला को बुरा लगता तो उसकी सास कहती,” समझा करो बहू, काम कर करके थक जाता है बेचारा अमरदीप, फिर उसे काम का तनाव भी कितना होता है। ऐसे में कभी अगर वह चिल्ला भी दे तो बुरा मत माना करो।” उर्मिला सोचती – दिनभर काम में तो मैं भी लगी रहती हूँ।

    उर्मिला की सास बात-बात में अक्सर बहू पर चिड़ने लगी थी। इस बारे में पति से कुछ कहने पर जवाब मिलता,” तुम देख ही रही हो कि कुछ दिनों से मम्मी बीमार रहने लगी है और बीमारी व्यक्ति को चिड़चिड़ा बना देती है, समझा करो उर्मिला।” उर्मिला ने मन ही मन कहा कि यह चिड़ मुझपर ही क्यों निकलती है?


      उर्मिला की कोई साड़ी उसकी ननंद को पसंद आती तो वह यह कहकर ले लेती कि भाभी, एक-दो बार पहनकर लौटा दूँगी। जब ननंद साड़ियों को लौटाने का नाम नहीं लेती तो उर्मिला के उदास होने पर अमरदीप कहता,” इसमें उदास होने जैसा क्या है, बाजार से नयी साड़ियाँ खरीद लाओ। कुछ महीनों बाद शादी हो जाने पर मेरी बहन चली जायेगी। तुम बड़ी हो तो बड़ों जैसी समझदारी भी रखो।”

   इसपर उर्मिला को याद आया कि बड़ी होने का ऐसा ठप्पा पापा भी उस पर तब लगाते जब बचपन में भाई की किसी बात पर गुस्सा हो जाती थी। कभी उसे पापा की किसी बात का बुरा लगता तो मम्मी उसे पापा को समझने की दुहाई देती। उर्मिला के मन में एक टीस उठी – क्या ताजिंदगी उसे ही सबको समझना होगा, क्या कभी उसे समझने कोई नहीं आयेगा?

दर्शना जैन

खंडवा मप्र

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