रमा की अभी नई-नई शादी हुई है ।उसे परिवार में इतना प्यार मिला कि, वह अपने मायके को भी भूल गई। जब पहली बार उसने रसोई में खाना बनाया ,उस खाने को खाकर उसके ससुर
बोले, रमा तो बिल्कुल मेरी मां जैसा खाना बनाती है’ यह सुनकर उसे बहुत अच्छा लगा।
रमा के पिताजी सख्त स्वभाव के थे इसलिए वह सोचती थी कि पुरुष ह्रदय कठोर होते हैं। एक दिन जब वह ससुराल में बीमार हुई , तो उसके ससुर ने उसे दूर से ही देखकर पहचान लिया, कि रमा बीमार है ।और वह भागे भागे उसके पास गए ,और कहा बेटी मैं तेरे लिए दवाई लेकर आऊं या फिर तुझे डॉक्टर के पास लेकर चलूं। हाव भाव से ही उसके दुखों को उन्होंने पहचान लिया यह देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह अपने ससुर के भीतर अपनी मां की छवि को देखने लगी।
कुछ दिन तक ससुराल में सब कुछ बहुत अच्छा चलता
रहा।
ससुराल में मायके से भी ज्यादा प्यार मिलने पर वह खुद को संसार की सबसे भाग्यवान स्त्री समझती और मन ही मन खुश रहती। उसे ऐसा लगता मानो कोई सपना चल रहा हो।
परंतु विधाता को कुछ और ही मंजूर था। इसी बीच रमा की जेठानी ने मकान को लेने की जिद शुरू कर दी।
वह रोज अपने पति से झगड़ा करती, यह पूरा मकान मुझे चाहिए। अब तो घर में रोज क्लेश होने लगा। इन रोज-रोज के क्लेशों से तंग आकर
रमा अपने पति से बोली ,रमेश यह मकान इन्हें ही दे दो।’
परंतु रमा ‘मम्मी पापा और हम सब कहां जाएंगे।?
‘रमा कहीं ना कहीं हम अपना ठिकाना बना ही लेंगे’ दो वक्त की रोटी सुकून से मिल जाए वही बहुत है’।
रही मम्मी पापा की बात तो उन्होंने तो यह मकान बनाया है। दीदी अगर यह मकान लेती हैं तो मम्मी पापा को अपने जगह भी रखनी होगी। “
जेठानी को बुलाकर ससुर ने ‘ पूछा बेटा मकान तुम्हें एक ही शर्त पर मिल सकता है कि हम सदा इसी मकान में रहेंगे।’
जेठानी झट से खुश हो गई
और कहने लगी ‘मैं आपकी जीवन भर सेवा करूंगी परंतु मुझे यह मकान दे दीजिए”
रमा और उसके पति बाहर किराए पर रहने के लिए चले गए।
अब उनके पास कोई आसरा नहीं था। मकान में से थोड़ी बहुत कीमत उन्हें दी गई।
परंतु जेठानी ने धीरे-धीरे सास ससुर को भी घर से बाहर निकाल दिया।
वह दोनों भी रमा के घर में ही आ गए।
इसी तरह 10 वर्ष बीत गए
अब जेठानी के बच्चों की शादी भी हो गई।
इसी बीच रमेश ने भी बहुत बड़ा मकान बना लिया।
अब जेठानी को उसके बच्चों ने उस मकान भी उसे उसी तरह बाहर निकाल दिया जिस तरह से उसने अपने सास-ससुर को निकाला था।
अपने बेटे बहू को दरबदर भटकते देखकर उनके ससुर बहुत चिंतित रहते।
और वह रमा और रमेश से कहते हैं’ इन दोनों की किसी भी तरह से सहायता करो मुझसे इन दोनों की यह हालत देखी नहीं जाती।”
वे जब भी बैठते अपने बेटे बहू के बारे में ही सोचते रहते और मन ही मन दुखी होते।
रमा यह सब देखकर सोचती देखो इनके बच्चों ने उनके साथ कितना बुरा किया फिर भी यह उन से कितना प्रेम करते हैं।
कौन कहता है पुरुष हृदय कठोर होते हैं?
इनके भीतर तो मां जैसी ममता भरी हुई है।
अनीता चेची