कठपुतली का खेल – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

आज मीता बहुत खुश थी अपने मायके जो आई थी ।पीहर में आने का एक अलग ही सुख होता है और जब पुरानी सहेलियों से मिलन हो जाए तो कहने ही क्या

खूब गप्पे लड़ना, चिंता फिकर सब छोड़ बचपन की यादों को ताजा करना एक अलग ही सुख देता है ,ससुराल में काम करके जो थकान हो जाती है वो मायके में 10 दिन रहकर ही उतर जाती है।

आज उसने और उसकी बचपन की सहेली ऋतु ने बच्चों के साथ आमेर का किला देखने का प्रोग्राम बनाया 

वहां घूम कर बच्चे बहुत उत्साहित और खुश नजर आ रहे थे और जब कठपुतली का नाच देखा तो बच्चे खूब उछल कूद करके हंस रहे थे। उन्होंने शायद पहली बार देखा था।

मीता और ऋतु भी बच्चों की खुशियों में शामिल होकर खूब मजे ले रही थी पर कठपुतली का खेल देखकर मीता थोड़ा गंभीर हो गई और उसका ये अचानक चुप सा हो जाना ऋतु को समझ आ गया था क्योंकि ये पहली बार नहीं हुआ था ।

एक बार शादी से पहले भी वो दोनों जब मेले में कठपुतली का खेल देख रही थी तो सब लोग खुश हो रहे थे बस मीता पता नहीं क्यों चिंतित सी दिखाई दे रही थी जैसे आज दिख रही थी

जब ऋतु ने कारण पूछा तो वो दुखी होते हुए बोली

“मुझे लग रहा है जैसे मै भी एक कठपुतली ही हूं जिसकी कोई इच्छा ,अभिलाषा नहीं है। हमेशा से ही सबकी इच्छा से जीती आई हूं

तुम्हे देखो बाहर शहर में पढ़ने भेज दिया पर मेरे घर वालों ने नहीं भेजा। मुझे विज्ञान विषय में रुचि थी पर होम साइंस दिलवा दी और अब घर बैठ कर एम ए करने बोल दिया जबकि मुझे बाहर शहर जाके बी एड करनी थी , टीचर बनना था। कठपुतली को देखकर सब खुश तो होते हैं पर यहां तो वो भी नहीं है बस सबको लगता है लड़की की जल्दी से जल्दी शादी करो और पराए घर भेजो।

ऐसा नहीं है मीता, तू गलत समझ रही है। घर वाले हमारी खुशी के लिए ही करते हैं जो भी करते हैं 

हां खुशी के लिए करते हैं पर जिस काम में उनको खुशी होती है बस वो ही काम करते हैं। कहकर मीता घर के लिए निकल गई थी।

और आज भी मीता का मन घर जाने का हो रहा था इसलिए खेल आधा छोड़कर वो दोनों खाना खा पीकर घर की ओर चल दी।

रास्ते में ऋतु ने बोला

“अब क्या हुआ मैडम, क्यों दुखी लग रही है?

अब तो नहीं है तू कठपुतली, बढ़िया खाता पीता घर मिला है, कोई कमी नहीं है और अब तो तुमने बी एड भी कर ली है”

“हां तो क्या हुआ करने से , नौकरी तो नहीं करने दी पतिदेव ने

यहां भी उनकी इच्छा सर्वोपरि

बोले घर सम्हालो और मस्त रहो, क्या कमी है जो नौकरी करनी है?”

“पर ऋतु यार मुझे लगता है हम औरतों की जिंदगी कठपुतली जैसी ही है बस अंतर है तो इतना कि वो सुन बोल नहीं सकती और हम सुनने , बोलने लायक हैं फिर भी अपने मन की नहीं कर सकते

अब ससुराल में भी सुबह से शाम तक मेरे काम खत्म नहीं होते पर सुनने को यही मिलता है कि तुम पूरे दिन घर पर करती क्या हो?

 सुबह जल्दी उठो सास ससुर जी के लिए चाय बनाओ, फिर बच्चों का टिफिन, स्कूल छोड़ना, पतिदेव का नाश्ता, टिफिन, सास ससुर जी का खाना, बच्चों को लाना, उनका खाना, फिर चाय का टाइम, बच्चों के पढ़ाई का समय, शाम के खाने का समय, और कब रात हो जाती है पता ही नहीं लगता। फिर पतिदेव की इच्छा पूरी करो सबके इशारों पर नाचते नाचते खुद की जिंदगी कहां रह गई।

कठपुतली नहीं तो और क्या बोलूं अपने आपको “कहते कहते भावुक हो गई मीता

ऋतु ने कहा” हां यार सही बात है। ये तेरी नहीं लगभग सभी औरतों की कहानी है बस कोई खुद के लिए जी लेता है और हम औरों के लिए जीते हैं।

क्यों न अब खुद के लिए भी जीना शुरू करें?” 

“मैने तो शहर जाके पढ़ाई की फिर भी कोई फायदा नहीं। सारे हुनर होते हुए भी बस घर की चार दिवारी में कैद होकर रह गई हूं। “

बातों बातों में कब घर आ गया पता ही नहीं चला

दोनों ने एक दूसरे को अगले दिन मिलने का वादा किया और कुछ नया करने का भी

अगले दिन…

“ऋतु मैने कल बहुत सोचा इस कठपुतली अध्याय के बारे में और फिर लगा कि कठपुतली हमे किसी और ने नहीं बल्कि खुद ने ही बनाया है

“हे मीता ये क्या बोल रही है?” ऋतु ने आश्चर्य से कहा

“और नहीं तो क्या , शादी के बाद आदर्श बहु, आदर्श पत्नी बनने के चक्कर में सबके लिए आगे से आगे सुविधाएं जुटाते रहे , कभी किसी को परेशान नहीं किया, कहने से पहले ही सबकी इच्छाएं पूरी करने की कोशिश में लगे रहे बस और अब जब मां बन गए तो बच्चों की फरमाइश उनके बोलने से पहले ही पूरी करते हैं

सबको तो यही लगता है न कि हम आदर्श बहु, आदर्श पत्नी और आदर्श मां है और सबकी खुशी में ही हमारी खुशी है और फिर सबने हमें अपने इशारों पर कठपुतली की तरह नाचने के लिए बाध्य कर दिया या कह सकते हैं हमने अपने आपको कठपुतली बना लिया

मुझे आज मेरी सासु मां की हालत भी ऐसी ही लगती है

पहले तो उन्होंने ससुर जी को हाथ ही हाथों में रखा , कभी कुछ करने नहीं दिया और अब जब उनकी उम्र हो गई है तो उन्हें ससुर जी में कमी दिखाई देती है । जब वो उनसे काम करवाते है तो बोलती हैं ये तो 75 साल के हो गए और मै 73साल में भी इनको 16 साल जैसी दिखती हूं की पूरा दिन मुझे दौड़ाते ही रहते हैं कभी बीड़ी ला, कभी पानी, कभी चाय तो कभी अखबार 

कठपुतली की तरह अपने इशारों पर नचाते रहते है ।

पर अब लगता है सासु मां को भी समझाना होगा और खुद को भी कि काम करना बुरा नहीं है , किसी की परवाह करना भी पर जब सामने वाला हम पर हावी होने लगे तो ये गलत है”

मीता बोलती ही जा रही थी । लग रहा कब से मन में दबी भड़ास निकाल रही हो

“चल मीता अब तू अपने शिक्षक बनने की तैयारी कर और मै अपनी डांस क्लास खोलती हूं 

तुझे तो पता ही है मुझे डांस का बचपन से कितना शौक है । डांस के साथ एक्सरसाइज भी हो जाएगी और मै मोटी थोड़ी पतली भी हो जाऊंगी “हंसते हुए ऋतु बोली

दोनों सहेलियां हंसते हुए कॉफी पीने लगी

“और आज मुझे मां को भी समझाना है कि भाभी को ज्यादा रोका टोकी नहीं करे, उसे अपने हिसाब से रहने दे। पूरे दिन सबकी सेवा करते हुए वो भी तो थक जाती है । और भाभी को भी बोलूंगी कोई स्कूल ज्वाइन कर ले ताकि आत्मविश्वास बना रहे और दो पैसे हाथ में होंगे तो वो भी अपने मन की कर पाएगी नहीं तो घर के काम तो हमे बस कठपुतली बना कर छोड़ेंगे “ऋतु ने कहना जारी रखा और मीता ने भी हां में हां मिलाई

मायके के 10 दिन कब पूरे हो गए पता भी नहीं चला और मीता और ऋतु के ससुराल वापस जाने के दिन आ गए 

दोनों हंसी खुशी अपना वादा याद रखते हुए एक दूसरे से विदा लेकर अपने अपने ससुराल चली गई

ससुराल में …

“मां जी आप कब तक ऐसे ही पापाजी का ध्यान रखती रहेंगी अब आपकी भी उमर हो गई है “मीता अपनी सास से बोली

“तो क्या करूं बहु, तेरे पापाजी का स्वभाव तो तू जानती है

गुस्सा उनकी नाक पर धरा रहता है। थोड़ा भी लेट हो जाती हूं उनका काम करने में तो पूरा घर सिर पर उठा लेते हैं”

“हां तो कोई बात नहीं , मै बात करती हूं उनसे 

बच्चे जैसा देखते हैं वैसा सीखते हैं , आपके बेटे ने अपने पापा को देखा है तो वो भी मुझसे यही चाहते हैं और उनका बेटा उनको देखकर यही सीखेगा ,वो भी अपनी पत्नी से सारे काम हाथ ही हाथों में चाहेगा पर उस जमाने तक लड़कियां बिल्कुल बदल जाएंगी वो हमारी तरह कठपुतली बनकर नहीं रहना चाहेगी। फिर घर में वही लड़ाई झगड़े होंगे 

इससे अच्छा है हम अभी सबको अपना अपना काम करने के लिए जिम्मेदार बनाएं ताकि घर की लक्ष्मी को एक सुकून भरा और तनावमुक्त माहौल मिले और वो अपने मन का काम करने में हिचकिचाए नहीं”

पीछे से आते हुए ससुर जी ने सारी बातें सुन ली और बोले

“बहु ,क्या तुम्हे कोई परेशानी है घर में , या तुम अपने मन का काम नहीं कर पाती बताओ”

“अरे नहीं पापाजी मेरा वो मतलब नहीं था, मैं तो बस यही चाहती हूं कि मम्मी जी ने पूरी उम्र आपका ध्यान रखा है, परिवार के लिए तन मन समर्पित कर दिया पर अब हम सबको मिलकर उनका ध्यान रखना होगा, उन्होंने कभी अपने मन मुताबिक जिंदगी नहीं जी, जिम्मेदारियों के बोझ तले उनकी ख्वाहिश दब कर रह गई 

पर अब उन्हें आराम की जरूरत है और ये आपको भी समझना होगा।

इसलिए मैं कल से आपके लिए एक परमानेंट केयर टेकर का इंतजाम कर दे रही हूं जो आपके सारे काम में आपकी मदद करेगा और घर में मेरी सहायता भी क्योंकि मै भी एक स्कूल ज्वाइन करने की सोच रही हूं

हमेशा से मेरी इच्छा थी मै शिक्षक बनू पर कभी मौका नहीं मिला, अब बच्चे बड़े हो गए हैं तो मुझे भी थोड़ा समय मिल जाता है नई चीजें सीखने समझने के लिए

कल ही मैने देखा है पास में ही एक नया स्कूल खुला है आप दोनों इजाज़त दे तो मै बात कर आऊं”

“अरे तो तुमने कभी बताया क्यों नहीं? सास , ससुर साथ के बोले

“मनीष को बोला एक बार मना कर दिया ये कहकर कि घर में क्या कमी है? और मम्मी पापा का ध्यान कौन रखेगा?

इसके बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई आपसे पूछने की।

खेर छोड़िए पुरानी बातों को, अब मौका मिला है तो आप साथ देंगे न “मीता ने बहुत ही आत्मीयता से पूछा

“हां बहु जाओ, तुम हमारा इतना ध्यान रखती हो , मान सम्मान करती हो , बेटी की तरह हक जताती हो तो हमे भी अच्छा लगेगा जब बेटी खुश रहेगी । इसी बहाने सब अपना अपना काम भी करना सीख जाएंगे”

ससुर जी ने हंसते हुए कहा

उधर ऋतु भी अपनी डांस क्लास खोलने के लिए कोशिश करने लगी थी

ऋतु के ससुर जी तो थे नहीं बस सासु मां थी जिनसे ऋतु को अनुमति लेनी थी

“मां जी आप कह रही थी न मै बहुत अच्छा डांस करती हूं । आप कहे तो मै अपने ऊपर वाले फ्लोर पर डांस क्लास शुरू कर दूं?

अभी बच्चों की छुट्टियां है तो सब आना भी चाहेंगे और कुछ आमदनी भी हो जाएगी ।जिसमें हम दोनों का फिफ्टी फिफ्टी होगा और आपका मन भी लगा रहेगा”

“अरे हम दोनों का क्यों?डांस तो तू ही सिखाएगी “सास ने आश्चर्य से बोला

“अरे आप साथ देंगी तभी तो कुछ कर पाऊंगी मैं

आप साथ में ड्राइंग सिखाना, आप भी तो ड्राइंग में मास्टर हो वो बात अलग है कि आपने नौकरी नहीं की या आपको करने नहीं दी गई

पर अभी आपकी अधूरी इच्छा पूरी करने का सुनहरा अवसर मिला है उसे हाथ से नहीं जाने दीजिए”

सासु मां के बात जंच गई

दोनों ने अगले दिन क्लास खोलने का मैसेज भी ग्रुप में फॉरवर्ड कर दिया वो भी कम फीस पर 

पहले दिन ही उम्मीद से अच्छा रिस्पॉन्स मिला था दोनों सास बहु खुशी से फूली नहीं समा रही थी।

आज ऋतु की सास को अपनी बहु पर गर्व हो रहा था कि जिस शौक को वो बरसों से भूल चुकी थी आज बहु ने वो दबी हुई इच्छा पूरी कर दी

ऋतु ये सोचकर खुश थी कि अब उसके हुनर का दम चार दिवारी में नहीं घुटेगा, न ही वो कठपुतली की तरह सबके इशारे पर नाचेगी।

उधर मीता का भी यही हाल था वो खुश थी कि वो मन की इच्छा पूरी कर पाएगी और सास खुश थी कि अब उसे भी इस उमर में कुछ आराम नसीब होगा

ससुर जी दोनों सास बहु को देखकर खुश थे और सोच रहे थे देर से ही सही हमे हमारी गलती का एहसास हुआ कि हमने अपने घर की औरतों को सच में कठपुतली बना कर रख दिया था , पर अब नहीं

अब सबको मिलकर एक दूसरे का ख्याल रखना है और आगे बढ़ना है।

दोस्तों ऐसा अक्सर होता है कि घर की पढ़ी हुई बहु या बेटी चाहते हुए भी नौकरी नहीं कर पाती या अपने शौक को समय नहीं दे पाती। शायद पितृ सत्तात्मक समाज इसके आड़े आ जाता हो या घर की परिस्थितियां या फिर हम खुद औरतें ही अपने आपको घर और घर वालों की सेवा में समर्पित कर देते हैं और अपनी जिंदगी जीना भूल जाते हैं 

पर ये गलत है। हमे अपनी इच्छा से अपनी जिंदगी जीने का पूरा हक़ है और अपने हक के लिए आवाज़ उठानी पड़े तो गलत नहीं। समस्या बहुत हैं पर समाधान हमे ही खोजने होंगे और कठपुतली बनकर रहने से कुछ हासिल नहीं होगा इसलिए खुद के बारे में सोचना चाहिए और आगे पढ़ने , बढ़ने के प्रयास करते रहने चाहिए

ये मेरी व्यक्तिगत सोच है। कहानी को कहानी की तरह पढ़े अन्यथा न ले

अपने विचारों से अवगत कराना नहीं भूलें

धन्यवाद

निशा जैन

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