फिर वही ख्वाब…..मिताली अपनी ही डरावनी आवाज़ से जागकर बिस्तर पर उठ कर बैठ गई……
…..एक कमरा छोटा सा…. चारों तरफ से बिल्कुल बंद जिसका केवल एक ही छोटा सा दरवाजा है…..काफी नीची छत है …..एक भी रोशनदान नहीं है… घुप अंधेरा….. उसमें एक लड़की है उसका पूरा चेहरा अस्पष्ट सा है केवल उसकी कत्थई आंखें जिनमें डर है ..दिख रही हैं..दरवाजा बंद है उसको बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है…..उसका दम घुटने लगता है …..वो जोर से चिल्लाना चाह रही है..पर आवाज़ ही नही निकल पा रही है…उसके गले से दबी दबी घुटी सी चीखें निकलने लगी……
छोटी सी मिताली अपना ये सपना मम्मी को बताते बताते हांफने लगती है,मम्मी ने प्यार से उसे अपने पास लिटा कर,अरे बेटा तुम घबराओ नहीं ये तो सपना है सो जाओ भगवान का नाम लो कह कर शांत किया। ….
…”पर मां वो मैं ही हूं मुझे कौन बंद किया है ऐसे घुटन वाले कमरे में ….मिताली बहुत डर रही थी।
मम्मी को लगा कि मिताली के मन में कोई पीड़ा है या कोई असुरक्षा की भावना है जिसका डर इस सपने में उसकी चीख से व्यक्त हुआ है पर उन्होंने मिताली को “अरे वो तुम नहीं हो तुमको कौन बंद करेगा बेटा हम लोग है..” कह कर शांत करने की कोशिश की परंतु मिताली को पक्का विश्वास था …
…”नही नही मां वो मैं ही हूं…..”मां सपने में उस लड़की की भी कत्थई आंखें है जैसी मेरी है देखो ना….।”
…..बचपन से लेकर कॉलेज की पढ़ाई तक यही ख्वाब अक्सर मिताली को दिखता रहा परेशान करता रहा ।इस ख्वाब को मिताली और उसके माता पिता उसी से जोड़ते आ रहे थे, मनो चिकत्सिक की सलाह लेकर उसकी भावनात्मक सुरक्षा का विशेष ध्यान रखते थे,उसे किसी बात का डर या कुंठा तो नहीं है,कोई दबी इच्छा तो नही है. किसी भी भावी आशंका असुरक्षा के मद्देनजर .उसे पढ़ा लिखा कर अपने पैरो पर खड़ा कर दिया .,…… अब एक सर्वसुविधायुक्त स्कूल में उसकी एक प्रतिभावान,समर्पित,मेधावी और बहुत उदार शिक्षिका के रूप में ख्याति हो गई………
फिर भी मिताली के भीतर का डर उसे स्वयं को वही लड़की समझने को बाध्य करता था जिसका सबसे प्रमुख कारण
उसकी कत्थई आंखें ….. जो सपने वाली लड़की की भी थी…
जो किसी विकट परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए छटपटा रही है…मिताली को आईने में अपनी कत्थई आंखों में ख्वाब वाली कत्थई आंखें ही नज़र आने लगी थीं।.
पर !!ऐसी कोई भी विकट परिस्थिति उसकी जिंदगी में नहीं आई शादी भी बहुत अच्छे घर में हुई जहां उसकी ख्वाहिशों को पूरा सम्मान और सहयोग दिया जाता था….पर अभी भी यही ख्वाब उसे परेशान कर ही देता था …… मेरे साथ कोई अनहोनी घटित होने वाली है ….उसके मन से वो सहमी कत्थई आंखें हटती ही नहीं थीं।
एक दिन उसके स्कूल में इंटरस्कूल विचार अभिव्यक्ति प्रतिस्पर्धा का आयोजन था जिसमे ….”मेरे ख्वाब और मेरी ख्वाहिश”…… विषय पर अपने विचार लिखने थे ।सभी बच्चों ने बहुत उत्साह से लिखा,अधिकतर बच्चों ने बहुत लंबा लिखा एक्स्ट्रा कॉपी लिया लिखने के लिए…। मिताली के पास सभी नोटबुक्स मूल्यांकन के लिए आई थीं।सबकी कॉपी देखते देखते उसके हाथो में एक ऐसी कॉपी आई जिसमे एक ही लाइन लिखी थी…….
“मेरी मां की बंद आंखों के ख्वाबों को अपनी खुली आंखों से देखना ही मेरी जिंदगी की एकमात्र ख्वाहिश है।”
इसे पढ़कर मिताली के हाथ जम से गए बहुत मर्मस्पर्शी पर आत्मविश्वास से सराबोर पंक्ति।जल्दी से नाम देखा सोनू लिखा था बस।किसी सरकारी स्कूल की छात्रा थी उसकी लिखावट मोती की तरह थी जिसका एक एक अक्षर लिखने वाली के व्यक्तित्व को बखूबी अभिव्यक्त कर रहा था।
सोनू और उसकी मां शांति नगर नामक झुग्गी में एक सीलन भरी कोठरी में रहते थे….सोनू ही मेरी जिंदगी है मैडम जी…. मैं इसकी जिंदगी इस तरह बर्बाद नही होने दूंगी,पढ़ा लिखा कर अपने पैरो पर खड़ा करवाऊंगी,समाज में इज्ज़त से अपना जीवन यापन करने लायक हो जाए यही मेरा ख्वाब है….. सोनू की मां मिताली को बता रही थी । मिताली को अपनी बेटी से मिलने आया जानकर अपनी बेटी के प्रति गर्व लेकिन अपनी छोटी सी कुठरियां में बिठाने लायक उचित स्थान ना दे पाने की विवशता उस गरीब मां की आंखों में साफ दिख रही थी।
….वास्तव में वो कोठरी भी नहीं थी कुठरिया ही थी सूर्य की रोशनी ,प्राकृत हवा से महरूम अंधेरी सीलन भरी ….और उसकी छत तो इतनी नीची थी कि मिताली को अपना सिर टकराने का खतरा महसूस हो रहा था।
तुम यहां क्यों रहती हो क्या काम करती हो …ऐसे प्रश्नों के उत्तर मिताली को स्पष्ट दृष्टव्य हो रहे थे फिर भी कुछ और जानकारी मिले ,ये सोचकर उसके पूछने पर उस कृशकाय मां ने कातर स्वर में बताया ……”सब कुछ अच्छा था….सोनू के पिता ऑटो रिक्शा चलाते थे बहुत कमाई हो जाती थी….सोनू पैदा होने के समय बहुत उत्साह में थे उनकी ख्वाहिश थी बिटिया को पढ़ा लिखा कर साहब बनायेगे समाज में इज्ज़त से रहेगी सब सुख सुविधा संपन्न रहेगी…..पर एक दिन रात में ओवरटाइम करने चले गए,तेज आंधी बारिश हो रही थी मना करने पर भी नही माने बोले” अब तो बिटिया के लिए रात में भी काम करके ज्यादा पैसे इकठ्ठा करना है ताकि बढ़िया स्कूल में पढ़ाने की फीस भर सकूं”
तेज बारिश में ऑटो फंस गया और पलट गया ….उनकी मौत हम दोनों की ख्वाहिशों की भी मौत लेकर आ गई….इस झुग्गी में बड़ी कठिनाई से सर छिपाने की जगह मिल पाई ….बिटिया को पास के सरकारी स्कूल में दाखिला मिल पाया है पढ़ाई में बहुत होशियार है स्कूल में गुरुजी बताते हैं….पर यहां का माहौल उसे आगे नही बढ़ने देता यहां के इन आवारा लडको से अपनी बिटिया को कैसे बचा पाऊंगी मैं……इसके पापा के ख्वाब मेरी आंखों में अभी भी कैद हैं….जिन्हे मैं बंद आंखों से ही देख पाती हूं खुली आंखों से देखने की हिम्मत और सामर्थ्य नहीं है मैडम जी….आप कुछ सिफारिश कर दीजिए मेरी बिटिया की आप बड़े लोग है…..कहते हुए वो मिताली के पैरो पर झुक गई ।
अरे अरे ये आप क्या कर रही है सोनू तो बहुत प्रतिभाशाली है वो प्रतियोगिता में प्रथम आई है….मिताली ने उन्हें उठाते हुए कहा…….
…..क्या मैं सच में फर्स्ट आई हूं .” कहते हुए सोनू अंदर आई और मिताली को देख कर सहम कर रुक सी गई….लेकिन उसकी आंखों में जो था उसे देख कर मिताली की आंखें फटी रह गईं ……..
वो थी सोनू की कत्थई आंखें।
अचानक मिताली जड़वत सी हो गई….अपना रहस्यमई ख्वाब हकीकत की शकल लिए कत्थई आंखों वाली सोनू ,उसकी सीलन भरी, एक दरवाजे और नीची छत वाली घुटन पैदा करने वाली कोठरी के रूप में साक्षात सामने दिख रहा था ….जो वहां से बाहर निकलने के लिए रास्ता ढूंढ रही थी….सब कुछ आईने के समान स्पष्ट हो गया ….फिर उसने देर नहीं की……
दोनो मां बेटी को समझा बुझा कर मिताली अपने साथ अपने घर ले आई अपने बड़े से घर के एक कमरे में उनके रहने की व्यवस्था कर दी,उसकी मां को घरेलू काम काज सौंप कर उनके स्वाभिमान का सम्मान रखा,मिताली को अपने स्कूल में एडमिशन दिलाकर उसकी वर्तमान और भावी उच्च शिक्षा के लिए कृत संकल्पित हो गई।
बहुत सालों के बाद वो उस डरावने ख्वाब से मुक्त हुई,आज मिताली के दिल में सुकून था किसी अनहोनी घटना का खौफ अलविदा हो चुका था आज वो निश्चिंत भरपूर नींद सोई थी उन सोती हुई कत्थई आंखों वाली लड़की की आंखों में कत्थई आंखों वाली सोनू के ख्वाब खुल कर मुस्कुरा रहे थे…. उन्हें भी बाहर आने के लिए एक खुला रास्ता जो मिल गया था।
लेखिका : लतिका श्रीवास्तव