आस्ट्रेलिया से लौटते हुए मिहिका विमान में बैठी अभी दोपहर बाद के बारे में ही सोच रही थी, रह रह कर उसे मिली ये ट्राफी खुशी का अहसास करा जाती थी। वह सुबह वह दो दिन आस्ट्रेलिया में रही, आस्ट्रेलिया उसे एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था।
यह ऐसा समारोह जिसमें फर्नीचर से संबंधित वार्ता के लिए की देश उसी की तरह आमंत्रित थे, आज उसके द्वारा बनाए गए ब्रांड फर्नीचर एक अंतरराष्ट्रीय मार्केट में जगह बना उस ट्राफी का हकदार बना, जिसे पाने के लिए, की देश इस ट्राफी की चाहना रखते थे। उसे याद आया वह दिन ,जब वह उसने अपने पिता के फर्नीचर व्यवसाय में उतरने के लिए उनसे आग्रह किया था।
तब उनका व्यवसाय इतने गहन स्तर का नहीं था, साथ ही एक युवती होने तथा एक कम उम्र होने की भी बंदिश थी। पर पिता को शुरू से ही इस व्यवसाय में देखकर लकड़ी के प्रति उत्सुकता होती थी। कालेज में आते आते यह उत्सुकता लकड़ी के प्रति जुनून में परिवर्तित हो गई।
पिता का मेन मार्केट में एक छोटा सा शोरूम था। जो उनके परिवार के गुजारे लायक आमदनी करा जाता था। पर वह पढ़ाई के साथ पिता के व्यवसाय में भी शौक से हाथ बंटाती। पिता भी दो बेटियों के होने से इसे सहर्ष इसके आग्रह को स्वीकार करते क्योंकि बेटा न होने से एक तरफ बेटी का व्यवसाय की तरफ झुकाव उन्हें मंजूर होता।
लगता कोई तो है जो उनकी विरासत को अगले चरण तक ले जाएगा। पर लकड़ी का यह व्यवसाय उन्हें कोमलता सरीखी बेटी के लिए सख्त जान पड़ता और वे उसे इस व्यवसाय में आने पर रोकना चाहते लेकि मिहिका तो जैसे इसी व्यवसाय के लिए मन बनाए बैठी थी, उसेपढाई से भी ज्यादा लकड़ी की कलाकृतियां बनाने में आनंद आता।
आखिर पिता की सहमति मिलते ही वह इस व्यवसाय में कूद पड़ी पर यह व्यवसाय उसके लिए कितना कठिन होने वाला है, यह उसे आगे चलकर पता चला। साथ ही मुकेश के साथ दो सालों से चली आ रही दोस्ती लगभग खत्म होने को ही थी। मुकेश के साथ उसकी शादी की बात चल ही रही थी कि,
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मुकेश की दादी , उसके विजातीय होने पर अड गई और शादी की बात खत्म हो गई, मुकेश चाहता था कि उनकी दोस्ती चलती रहे पर इस रिश्ते का कोई भविष्य न पाकर उसने मुकेश से दोस्ती तोड ली, व आगे कभी न मिलने को कहकर वह आखिरी बार चली आई।
दिल टूटने के सदमे में काफी दिन उसने स्वयं को घर में बंद रखा। मां पिता ऐसी हालत देख क्षुब्ध थे, पिता ने उसे शोरूम का काम सम्हालने के लिए कहा। मिहिका को भी यही ठीक लगा, और वह लकड़ी के व्यवसाय में आ गयी।
पिता के साथ व्यवसाय की बारीकियां समझते उसे लगा कि अगर वह लड़की के व्यवसाय में विशिष्टता हासिल कर लें तो वह व्यवसाय को किसी अगली ही दिशा में ले जा सकती है। और पिता से विचार विमर्श कर वह विशिष्टता हासिल करने विदेश चली गई, वहां जाकर दो साल के फर्नीचर कोर्स ने उसे इस लाइन में दक्ष कर दिया तथा
वह लौटी तो एक नया आत्मविश्वास लिए। पर अब उसका हृदय लकड़ी के व्यवसाय सा सख्त हो गया था। उसने स्वयं को काम में डुबोकर बाकी सब भुला दिया। वह पिता को लकड़ी यानी कच्चा माल लाने मे नये नये आयडिया देने लगी। एक टीम तैयार की जो हर तरह की जरूरत के हिसाब से फर्नीचर डिजाइन बना कर उन्हें दिखाता तथा पास करने पर नये नये तरीकों से बनाता।
और इसी टीम ने फर्नीचर मार्केटिंग के नये तरीकों को अपनाया, जिसका फायदा हुआ कि अब उनका शोरूम एक प्रतिष्ठित शोरूम में गिना जाने लगा। पर मिहिका तो काम में ऐसी डुबी कि उसने विदेश में होने वाली कंपनी में अपने ब्रांड को परिभाषित किया। अब उनके शोरूम से फर्नीचर विदेशों में भी सप्लाई होने लगा।
एक सामान्य घर के सोफा सेट , से लेकर विदेशी सोफा सेट तक बात पहुंच गयी। वह की बार फर्नीचर की विदेशों में होने वाली मिटीगों में भाग लेने लगी। ऐसे मिटीगों में वह अपने नये आयडिया के साथ अपने शोरूम में बनने वाले फर्नीचर को प्रमोट करती। ऐसी ही एक समारोह जो आस्ट्रेलिया में था, जिसमें वह अपने ब्रांड को परिभाषित करने आई थी। यहां आकर वह अपनी ट्राफी लिए मंच से मुड़ी ही थी,कि एक जानी पहचानी आवाज कानों में पड़ी, ट्राफी मुबारक मिहिका। उसने पीछे मुडकर देखा तो वह हकबका कर देखती ही रह गई, वह मुकेश था।
पहले से कहीं ज्यादा हैंडसम। उसे मंच से नीचे जाकर इंतजार करने को बोल वह माइक की तरफ बढ़ गया। वह अपने आफिस के डायरेक्टर की हैसियत से यहां आया था। जिसे विदेशी कंपनियों से संबंध बनाने के बारे में मिटिग करनी थी। कुछ ही देर में प्रोग्राम समाप्त होने पर वह व मुकेश आमने-सामने थे। और इतने सालों के हिसाब किताब के बाद एकाएक मुकेश मिहिका को देखते हुए बोला, मिहिका क्या तुम अभी मुझसे शादी करोगी। क्या, तुमने अभी तक शादी नहीं की। नहीं मिहिका मैं, तुम्हें छोड़ कर कहीं और शादी नहीं कर पाया।
और फिर तुमने भी तो अभी तक शादी नहीं की मिहिका, । और तुम्हारी दादी। उन्हें व सब को समझ आ चुका है कि मुकेश अगर शादी करेगा , तो केवल मिहिका से ही। और फिर दोनों ने तय किया कि वे अपने देश जाकर ही सबकी रजामंदी से शादी करेंगे। आज एरोप्लेन में बैठी मिहिका को अपनी काठ सी सख्त जिंदगी, रबर सी हल्की लगने लगी, उसे लगा कि इस हल्की जिंदगी में उसके पर निकल आए हैं, और एरोप्लेन के साथ वह भी उड़ी जा रही है।
* * पूनम भटनागर।