कटा हुआ हाथ – आरती झा

दीप के पिता तन्मय जी जल बोर्ड में क्लर्क हैं.. इतनी आमदनी हो जाती है कि अपने परिवार का जीवन यापन सही से कर सके और माँ छवि जी सुघड़ गृहिणी.. जिन्होंने अपने बच्चे को हर तरह के संस्कार से नवाजा है।

     दीप बचपन से ही अपने कार्य के प्रति कर्तव्य निष्ठ और पढ़ाई के प्रति पूर्ण समर्पित रहा है। बचपन से ही उसमें इंजीनियर बनने की ललक थी इसीलिए बारहवीं करते ही कोचिंग्स का पता करने लगा है…बदकिस्मती से जिसमें एडमिशन चाहता है… तबियत खराब हो जाने के कारण उसका प्रवेश परीक्षा नहीं दे सका… जितने अच्छे कहे जाने वाले कोचिंग संस्थान हैं.. उनकी फीस इतनी ज्यादा थी कि वो अपने माता – पिता से कुछ कह नहीं पाता है और चुपचाप रहने लगता है। बारहवीं में पंचानवे प्रतिशत अंक मिलने के बाद भी उसका कोई लाभ दीप को नजर नहीं आता है।

       एक दिन किसी कोचिंग संस्थान से बात करके काफी निराश होकर लौट रहा होता है.. कोचिंग के बाहर एक आदमी उसे वहाँ का कर्मचारी बता कर कुछ पैसे ले दे कर प्रवेश करा देने की बात कहता है। साथ में उसने ये भी कहा कि ये बात अंदर किसी को पता नहीं चलनी चाहिए… अन्यथा प्रवेश तो नहीं ही मिलेगा.. हो सकता है जेल भी जाना पड़ जाए।

       दीप ऊहापोह की स्थिति में घर आता है…दीप की माँ छवि जी रसोई में लंच की तैयारी कर रही थी… दीप अपने कमरे में चला जाता है… छवि जी चावल बीन रही होती हैं.. चावल लिए ही दीप के कमरे में आ गई और वहीं बैठकर चावल बीनने लगती हैं और दीप से बातें भी करने लगी।

छवि जी – किसी कोचिंग का पता चला बेटा.. 

दीप – देख रहा हूँ माँ.. सभी फीस ही इतनी माँगते हैं… 

छवि जी – कोई बात नहीं बेटा… कुछ ना कुछ व्यवस्था कर लेंगे… ऐसे तो तुम्हारा साल भी बर्बाद जाएगा… 

दीप – आज कोचिंग संस्थान से निकलते समय एक आदमी मिला था और दीप अपनी माँ से सारी बातें बताता है।

छवि जी – पर बेटा ये तो जोखिम वाली बात है… बिना किसी प्रमाण के किसी पर भरोसा कैसे कर सकते हैं.. पापा के साथ जाकर संस्थान में बात करना… 

दीप – नहीं संस्थान वाले तब बिल्कुल भी एडमिशन नहीं देंगे.. मना किया है उसने बताने से और इसके अलावा कोई उपाय भी तो नहीं है… उस आदमी का कोई रिश्तेदार वहाँ अकाउंट में काम करता है.. उसी की सहायता से वो हम जैसों की सहायता करता है… 




छवि जी – ठीक है.. पापा से बात करना.. आज जल्दी आने का बोल कर ऑफिस गए हैं.. मैं लंच तैयार करती हूँ.. तब तक आराम कर लो … कहकर छवि जी चली जाती हैं.. 

दीप को भी नींद आ जाती है… बातें करने की आवाज़ सुनकर उसकी नींद खुलती हैं..देखता है पापा आ गए हैं और मम्मी से बातें कर रहे हैं.. दीप भी उठकर वहीं आ जाता है…. 

दीप – मम्मी खाना लगा दो… बहुत तेज भूख लग रही है.. 

तन्मय जी – हाँ.. भई… भूख तो सच में बहुत तेज लग रही है.. 

छवि जी लंच लगाने लगती हैं. दीप भी उनकी मदद करने लगता है. तीनों खाना खाते खाते बातें कर रहे होते हैं.. दीप उन्हें सारी बातें बताता है… तन्मय जी भी ऐसे लोगों पर विश्वास नहीं करने की सलाह देते हैं।

उनकी बात पर दीप अनमना सा हो जाता है क्यूँकि उसे एक उम्मीद की किरण दिख रही थी.. उसे ऐसे देखकर तन्मय जी कुछ सोचते हैं… 

तन्मय जी – अच्छा ठीक है.. ऐसा करते हैं.. मुझे उस आदमी से मिलवाओ.. फिर देखते हैं.. आगे क्या किया जाए.. 

छवि जी – हाँ.. ये उचित होगा.. 

दीप – खुश हो जाता है.. ठीक है पापा.. वो वही रहता है..कल मैं आपके साथ ही चलूँगा… 

तन्मय जी – ठीक है बेटा.. लेकिन तुम मुझे उसे दिखाकर घर चले आना.. मैं अकेले ही मिलूँगा पहले… 




दीप – पर क्यूँ पापा.. 

तन्मय जी – पैसे के लेन देन संबंधित बहुत सारी बातें होंगी.. तुम अपना समय क्यूँ बर्बाद करोगे.. तुमने और institutes के प्रवेश परीक्षा के लिए अप्लाई किया है.. उसकी तैयारी पर भी ध्यान दो.. 

दीप – पर पापा.. ये शहर का सबसे अच्छा संस्थान है.. मुझे इसमें ही एडमिशन चाहिए…. 

तन्मय जी – इसी में हो जाएगा.. लेकिन तुम घर आ जाओगे.. मेरे साथ उस आदमी से नहीं मिलोगे.. पैसे का बंदोबस्त कर लेंगे हम लोग… मुझे भी कुछ काम है.. मैं थोड़ी देर के लिए बाहर जा रहा हूँ.. कहकर तन्मय जी चले जाते हैं.. 

दीप अपनी माँ की बर्तन समेटने… रसोई की सफाई में मदद करने लगता है.. 

छवि जी – मैं कर लूँगी बेटा… तुम अपनी पढ़ाई देखो.. 

दीप – बस माँ.. आपकी मदद कर के पढ़ूँगा… 

छवि जी बहुत गर्व और प्यार से अपने बेटे को देखती हैं.. जहाँ बच्चे कहने पर भी मदद करने के लिए तैयार नहीं होते हैं.. सौ तरह के बहाने बनाते हैं.. वही दीप बिना बोले हमेशा मदद करने लगता है.. ऐसा बेटा भगवान सबको दें.. सोचकर मुस्कुराने लगती हैं… दीप की मदद से सारा काम निपटा कर अपने कमरे में आ जाती हैं और दीप अपने कमरे में पढ़ने लगता है..

दूसरे दिन तन्मय जी दीप के साथ जाने के लिए ऑफिस से छुट्टी ले लेते हैं… दीप बहुत खुश होता है कि अब उसका एडमिशन उसके पसंद की संस्था में हो जाएगा….वहाँ पहुँच कर दीप उन्हें उस आदमी को दिखाकर घर लौट आता है…. 

तन्मय जी सीधे संस्था के रिसेप्शन पर जाकर ओनर से मिलने की बात करते हैं… 

रिसेप्शनिस्ट – सर.. जो भी समस्या है.. मुझे बताएं… उसका समाधान यही हो जाएगा.. 

तन्मय जी – माफ़ करें…. मेरी समस्या का समाधान सिर्फ आपके ओनर सकते हैं.. मुझे अपने बेटे के एडमिशन के लिए कुछ बातें करनी है.. 




रिसेप्शनिस्ट- आप बैठिए सर.. मैं बात करके आती हूँ.. 

थोड़ी देर बाद… आप जाइये.. सर से मिल लीजिए.. आगे से लेफ्ट उनका कमरा है.. 

तन्मय जी – धन्यवाद आपका… 

तन्मय जी संस्थान के ओनर मि. भदौरिया से मिलकर सारी चीजें विस्तार से बताते हैं… 

मि. भदौरिया – हमारे संस्थान के नाम से ऐसा गोरखधंधा चल रहा है.. और हमें कुछ ख़बर ही नहीं है….अभी पुलिस को सूचित करता हूँ.. 

तन्मय जी – सर अभी पुलिस आएगी तो वो आदमी वहाँ से खिसक जाएगा और हाथ कुछ नहीं आएगा…

मि. भदौरिया – बात तो सही कह रहे हैं आप.. मैं खुद ही पुलिस स्टेशन जाकर सारी जानकारी देता हूँ.. 

तन्मय जी – ओके सर.. फिर अभी मैं चलता हूँ.. अगर जरूरत हुई तो आप मुझे बुला सकते हैं… 

मि. भदौरिया – जी.. जरूर.. बहुत बहुत धन्यवाद आपका.. 

तन्मय जी के आते ही दीप प्रश्नों की बौछार कर देता है.. क्या बात हुई.. एडमिशन हो तो जाएगा ना.. 

तब तक छवि जी पानी लाकर देती हैं.. पानी खत्म करके तन्मय जो दीप को बैठने बोलते हैं.. 

तन्मय जी – कल फिर जाना है…उसके बाद ही कुछ कह सकते हैं.. 

दीप – मैं भी कल आपके साथ चलूँ पापा.. 

तन्मय जी – नहीं.. तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो.. मैं सम्भाल लूँगा.. 

दूसरे दिन मि. भदौरिया पुलिस को सूचित कर बुला लेते हैं… जो कि यूनीफॉर्म में नहीं सादे लिबास में आती है.. तन्मय जी को भी बुला लिया जाता है… 

इंस्पेक्टर तन्मय जी से सवाल जवाब करते हैं.. तन्मय जी फिर से अक्षरशः सारी बातें दुहरा देते हैं… 




इंस्पेक्टर – तन्मय जी आप ऐसा करें.. उस आदमी से दीप का पापा होने के नाते जाकर मिले… हम लोग भी वही आसपास उसकी बातें रिकार्ड करने की कोशिश करेंगे… 

तन्मय जी जाकर उस आदमी को अपना परिचय देते हैं और एडमिशन के लिए बात करते हैं।

एजेंट – बिल्कुल हो जाएगा सर.. सामने एक रेस्त्रां होता है.. वही बैठकर तन्मय जी से बातें करने का प्रस्ताव रखता है.. 

तन्मय जी उसके साथ जाकर बैठ जाते हैं.. इंस्पेक्टर अपने एक साथी के साथ रिकॉर्डर ऑन करके बगल वाले टेबल पर बैठ जाता है… एजेंट तन्मय जी को आश्वासन देता है कि सब हो जाएगा.. आप पैसे का इंतजाम कर लीजिए.. 

तन्मय जी – सर 2 लाख तो ज्यादा है.. कुछ कम हो जाता.. एक मुश्त तो देना नहीं हो सकेगा.. वो तो बेटे की तबियत खराब हो जाने के कारण परीक्षा नहीं दे सका.. नहीं तो एडमिशन हो गया होता… 

एजेंट – सर आप ये भी देखिए कि जहाँ 3- 4 लाख लगते.. वही आधे में काम हो जाएगा आपका.. 

तन्मय जी – (सोचते हुए) ठीक है सर.. एक सप्ताह लग ही जाएगा मैनेज करने में… वैसे किसके द्वारा कराएंगे एडमिशन आप… 

एजेंट – अरे सर… आम खाने से मतलब रखिए ना.. गुठली से क्या लेना देना.. एक सप्ताह बाद यही मिलते हैं.. ये रहा मेरा फोन नंबर.. 

तन्मय जी हाथ मिलाते हुए धन्यवाद देते हैं और बाहर आकर घर की राह लेते हैं और एजेंट दूसरे शिकार की तलाश में खड़ा रहता है। इतने में इंस्पेक्टर आकर एडमिशन की बात करता है और एक साइड ले जाकर अपना आई कार्ड दिखा कर चुपचाप थाने चलने कहता है।

        भदौरिया जी भी वहाँ पहुँचते हैं… इंस्पेक्टर एजेंट से सवाल ज़वाब करता है… लेकिन एजेंट कुछ बताने को राजी नहीं होता है…इंस्पेक्टर रिकार्ड की गई बातें सुनाता है.. और काफी सख्ती से पूछताछ करता है.. जिससे घबरा कर एजेंट बताता है कि वो चार लोग मिल कर इसे अंजाम देते हैं..उनका एक साथी संस्थान में अकाउंटेंट है तो कभी किसी का एडमिशन करा भी देते हैं और कभी अच्छे पैसे जमा हो जाते हैं तो सारे लोग अंडरग्राउंड हो जाते हैं… एजेंट के दिए गए बयान के बिना पर सबको गिरफ्तार कर लिया जाता है।




            शाम में चाय पीते हुए तीनों समाचार देख रहे थे… न्यूज में इसी समाचार को दिखाया जा रहा होता है….. जिसे देखकर दीप अपने पापा की ओर देखने लगता है..

दीप -(परेशान होकर) पापा ये क्या दिखा रहे हैं समाचारों में.. ये तो वही एजेंट है.. जिसने एडमिशन की बात की थी… बता रहे हैं कि ये लोग एडमिशन के नाम पर ठगी का कारोबार करते थे… पापा आपसे उन्होंने आज पैसे तो नहीं लिये थे ना…. 

छवि जी तन्मय जी से कहती हैं… आप अब दीप से सारी सच्चाई बता दीजिए.. बहुत परेशान हो रहा है.. 

दीप – कैसी सच्चाई माँ…. 

तन्मय जी – बेटा.. जब तुमने, सब बताया था .. मुझे तभी शक हो गया था.. फिर मि. भदौरिया से मिलने की बात से लेकर आज तक की सारी बातें बताते हैं..

दीप – मुझे माफ़ कर दीजिए पापा…

तन्मय जी – नहीं बेटा.. ये तुम्हारी आने वाले जीवन के लिए एक सबक है… किसी पर खासकर किसी अनजाने पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए… ये पैसे हमारी मेहनत की कमाई हैं.. हम अपनी मर्जी से किसी को दें तो मलाल नहीं होता है.. लेकिन किसी ठगी के शिकार हो जाए और 10 रुपया भी चला जाए तो ऐसा लगता है जैसे हमारे हाथ कट गए हों… जीवन में हम कितना भी कमा लें… मेहनत से कितनी भी बड़ी स्थिति में पहुँच जाए… ये मलाल हमेशा रहता है और ठगी के द्वारा कटा हुआ हाथ कभी जुड़ता नहीं है…

दीप – जी पापा.. 




तन्मय जी – और हाँ बेटा.. एक बात और… जीवन में कोई शॉर्टकट नहीं होता है… हमेशा अपनी मेहनत पर भरोसा करना बेटा… और मेहनत से ही आगे बढ़ना… 

दीप – मैं उस संस्थान में पढ़ने के लालच में आ गया था.. 

तन्मय जी – तुमने हमेशा हमें गौरवांवित किया है और सच को स्वीकार करने से नहीं घबराना चाहिए… तुम प्रवेश परीक्षा नहीं दे सके.. एडमिशन नहीं हो सका… जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं… उनको समझ कर मेहनत और अपनी ईमानदारी से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होना चाहिए…. 

दीप – थैंक्यू सो मच पापा… शॉर्टकट से बचाने के लिए…. 

तन्मय जी – (दीप का सिर सहलाते हुए) मैं और तुम्हारी माँ संध्या सैर करके आते हैं… 

दीप – ओके पापा… मेरा भी स्टडी टाईम हो रहा है… बाय पापा.. 

उलझनों को सुलझाता मुस्कुराता हुआ दीप अपने कमरे में आ गया।

#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल 

आरती झा(स्वरचित व मौलिक) 

दिल्ली

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