कशमकश ( भाग 1)- पूनम अरोड़ा

रिया और अनिकेत के विवाह को आज एक वर्ष पूर्ण हो गया था। खुश होने की बजाय रिया आज अधिक उदास थी । उसे आशा थी कि आज के खास दिन तोनिकेत उसकी भावनाओं को समझेगा व  सानिध्य  और आत्मीयता के कुछ पल उसे उपहार स्वरुप जिसके लिए उसका मन वर्ष भर तृषित रहा ।

वैसे तो अनिकेत  ने उसे सुबह शादी की वर्षगाँठ  की मुबारकबाद दी ,डायमंड रिंग भी गिफ्ट की और रात को डिनर के लिए  बाहर चलने  के लिए तैयार रहने का निर्देश दे ऑफिस चला गया लेकिन कहीं  कोई उमंग उत्साह  का एहसास नहीं महज एक औपचारिकता का निर्वहन कर अपने कर्तव्य  की इतिश्री की पूर्ति करने जैसा लगा उसे।

वैसे तो सब कुछ था रिया के पास सुन्दर व सफल पति, सुविधा व ऐश्वर्य से परिपूर्ण फ्लैट, नौकर, गाड़ी, धन वैभव जो कि एक सुखी वैवाहिक जीवन की रूपरेखा को पूर्णतः परिभाषित करता है  किन्तु भावुक, कला प्रेमी, संवेदनशील ह्दय की रिया इन सब में मन की खुशी ढूँढती रह जाती। उसके लिए केवल भौतिक  सुख समृध्दि ही खुशी का पर्याय  नहीं  थे।

अति व्यस्त, व्यवहारिक और औपचारिक पति में वो एक आत्मीय मित्र तलाश करती जो कि उसकी रूचि  अरूचि ,इच्छा अनिच्छा , सुख दुख, उदासीनता, संवेदनशीलता को महसूस कर सके, हर विषय पर चर्चा कर सके, गृहस्थी की छोटी छोटी बातों  पर राय दे और पूछे,एक मित्र की तरह  वे अपनी अपनी भावनाओं को व्यक्त करें ।

वह चाहती थी कि वह प्यार की लहरों से उसका मन भिगो दे लेकिन उसे तो ऐसा लगता था जैसे सागर के बीच खड़ी होकर भी उसका तन शुष्क  और मन तृषित  है ।

इस विलासिता पूर्ण जीवन में वह खुद को बहुत अकेला महसूस करती । कभी-कभी व्यक्ति अकेला रहकर भी उतना तन्हा नहीं होता जितना मन न मिलने पर दो लोगों के एक साथ रहने पर होता है ।

फिर भी  यह  सोचकर कि 

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता 

कभी जमीं तो कभी आसमान नहीं मिलता 

रिया स्वयं को इस जिन्दगी का अभ्यस्त बनाने की कोशिश कर रही थी ।वह उसमें  कामयाब भी हो जाती अगर मनन उसकी जिन्दगी  में  न आया होता जिसने उसके नीरस लेकिन शांत जीवन में हलचल मचा दी ।

मनन अनिकेत का कजिन था जिसकी लखनऊ  से बंगलौर  पोस्टिंग अभी हाल में ही हुई थी व कम्पनी की तरफ से आवास का प्रबंध होने तक अनिकेत ने आग्रह पूर्वक उसे अपने  घर में रहने को राजी कर लिया था। जानती तो वह पहले भी थी उसे लेकिन करीब से जानने का अवसर अब मिला था । सुन्दर, आकर्षक खुशमिज़ाज और मिलनसार तो था ही वह बेहद भावुक भी था । आँखे और चेहरा पढ़कर भावनाएं जान लेने में  तो जैसे वह पारखी था।

एक वर्ष से उसके चेहरे के पीछे की छिपी जिस उदासीनता और नैराश्य को अनिकेत नहीं देख पाया था ,दो चार दिन के संसर्ग में मनन ने उसे पढ़ लिया और  उसका कारण भी स्वतः ही जान गया । अब इस उदासीनता को दूर करना ही जैसे उसने अपना लक्ष्य बना लिया ।

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#मर्यादा

स्वरचित——- पूनम अरोड़ा

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