अभी भी रमा बुत बनी वैसे ही भीगी बैठी हुई थी,बदन थर-थर काँप रहा था पर उसे होश ही नहीं था छत से नीचे चली जाए, जाने कब बारिश शुरू हो गई थी और वो ख़्यालों में ही खोई हुई थी,अभी भी ठंडी हवाएँ चल रही थी पर बारिश थम चुकी थी,तभी उसे अपना नाम सुनाई देने लगा ।
“ कहाँ हो रमा….. पूरे घर में खोज लिया और तुम यहाँ छत पर भीगी हुई बैठी हो…. जल्दी से नीचे चलो … कपड़े बदलो… आज तुम्हारे लिए चाय मैं बनाऊँगा।”शैलेश जी बुत बनी रमा का हाथ पकड़कर उठाए और नीचे ले जाने लगे
ऐसा लग रहा था मानो रमा जी को कोई होश ही नहीं है
कमरे में ले जाकर रमा जी को झकझोरते हुए शैलेश जी ने कहा,“ जल्दी से कपड़े बदलो रमा,बीमार पड़ जाओगी,मैं तुमसे नाराज़ नहीं हूँ, जो हुआ वो भूल जाओ,वो चले गए अब कभी वापस नहीं आएँगे,तुम्हें तकलीफ़ तो ज़रूर होगी पर मैं खुश हूँ कि अब मेरी पत्नी की बेइज़्ज़ती कोई नहीं कर सकेगा ।”
रमा जी बिना कुछ बोले कपड़े उठा कर वॉशरूम में चली गई,नहाकर कपड़े बदले और रसोई की ओर बढ़ गई,रसोई में सारा सामान बिखरा पड़ा था,जैसे कुछ देर पूर्व की सारी घटना को तरोताज़ा कर रहा हो—
काश मेरी कोई औलाद ही ना होती….पहली बार एक माँ के मुँह से ऐसी बात निकली थी ।
शैलेश जी भी रसोई में आ चुके थे,चाय चढ़ा कर रमा जी के साथ सामान सहेजने में लग गए।
“रमा अच्छी तरह देख लो….कुणाल का कोई भी सामान रह तो नहीं गया है ना,जो भी उसके ससुराल से मिला है या जो कुछ उसने खरीदा है एक एक सामान उसका उसके मुँह पर फेंक कर आऊँगा,बदतमीज कहीं का जरा सा शऊर नहीं अपने माता-पिता से बात करने का,जाहिल हो गया ससुराल वालों की शह पाकर।”बुदबुदाते हुए शैलेश जी भी अपने इकलौते वो भी बड़ी मन्नत से हुई संतान को गाली दिए जा रहे थे
“ क्या कमी कर दी थी जी…सब कुछ तो हमारे बाद उसका ही होता…. फिर अभी से ये क्या ज़िद्द करने लगा था….. घर अपने और बहू के नाम करवाने पर तुला हुआ था…. मैं तो ममता में अंधी हो कर शायद कर भी देती जो बहू की बात मेरे कानों में नहीं पड़ती….अच्छा होता हम बेऔलाद ही रहते…. ये दुख तो ना झेलना पड़ता ।” शैलेश जी के कंधे पर सिर टिकाकर फूट फूट कर रमा जी रोने लगी
“ रमा दोष शायद हमारा ही है… अपने बेटे की हर माँग बिना कुछ सोचे समझे पूरी जो करने चले थे…. आज जो मैं वक़्त पर ना आता हम अपने ही घर से बेघर हो गए रहते…. तुम्हें कहे दे रहा हूँ अब भूल से भी उस नालायक का नाम ना लेना…. शादी के दस साल बाद हुआ था ना बस तुम उसके बाद के सारे साल भूल जाओ…. पहले वाले दस साल याद करो जब सिर्फ़ हम दोनों साथ थे।”
शैलेश जी चाय लेकर बाहर बरामदे में रमा जी के साथ आकर बैठ गए।
कुणाल और उसकी पत्नी कृतिका की बातें अभी भी रमा जी के मस्तिष्क में हथौड़े की तरह चोट दे रही थी….. माँ ये घर तो तुम्हारे नाम है ना ….. ऐसा करो ये घर तुम हम दोनों के नाम कर दो….. कृतिका से यही कह कर शादी किया था कि ये घर मेरा है अब वो कहती हैं रहने दो ये घर तो मम्मी जी के नाम है…. जब तक ये घर उनके नाम पर रहेगा मुझे उनकी हर बात माननी पड़ेगी…. मेरा है ही क्या फिर….. तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं है ना…. कर दोगी ना हमारे नाम?”
“ पर बेटा बिना तेरे पापा से पूछे कैसे कुछ कर सकती हूँ….. फिर घर के नए पेपर बनवाने होंगे।”रमा जी ने कहा
“ उसकी चिंता मत करो माँ हमने सब बनवा लिया है बस तुम्हारे हस्ताक्षर ही तो चाहिए….. जाओ कृतिका वो पेपर ले आओ..।” कुणाल ने कृतिका से कहा
कृतिका पेपर लेने गई जो उसे मिल ही नहीं रहे थे तब उसने कुणाल को आवाज़ दिया….
पेपर मिलते ही कृतिका खुशी से उछलते हुए बोली,“ कुणाल मैंने तुमसे शादी इसी शर्त पर की थी कि घर मेरे नाम करवा कर इन दोनों को यहाँ से निकाल दोगे…. मंज़ूर है ना..?”
“ अरे हाँ मेरी जान…. तुम्हें किसी बात के लिए कभी मना कर सकता हूँ क्या !” कुणाल ने कहा
रमा जी ये बात सुन कर सकते में आ गई थी,पति शैलेश जी किसी काम से बाहर गए हुए थे,मौसम भी बिगड़ रहा था….अब क्या करूँगी…. बेटा तो बहू की बात मान कर हमें हमारे ही घर से निकाल देगा…. नहीं नहीं इतने जतन से पाई पाई जोड़कर ये घर बनाया है इसे किसी को नहीं दे सकती ….. देने के बाद हम सड़क पर आ जाएँगे….. बस किसी तरह शैलेश जी आ जाए …. रमा जी मन ही मन सोचने लगी।
“ लो माँ दस्तख़त कर दो….।” कुणाल काग़ज़ सामने रखकर बोला
“ बेटा तेरे पापा को आ जाने दे ना फिर कर दूँगी…. नहीं तो वो नाराज़ हो जाएँगे ।” बेटे को टालने के ध्येय से रमा जी बोली
” अपने बेटे पर भरोसा नहीं है क्या?” कुणाल मनुहार करता हुआ बोला
रमा जी का दिल किया कह दे ..नहीं है बेटा …अभी कुछ देर पहले तक तू मेरा अपना था पर अब बीबी का हो गया है,जिसकी बात मान कर हमें हमारे ही घर से निकालने की साज़िश कर रहा है…. ममता सच में अंधी होती है ये बात आज रमा को समझ आ रही थी…बेटा कृतिका से शादी की ज़िद्द किए बैठा था जो पैसे के चकाचौंध में पागल थी …. कुणाल की अच्छी ख़ासी नौकरी और पॉश इलाक़े में उसका करोड़ों का घर कृतिका के लिए काफी था उसने कुणाल को पटा लिया और उसपर इस कदर हावी हो गई थी कि रमा और शैलेश जी बेटे की ख़ुशी देख कर सहमति दे दिए थे…. साल भी तो ना बीता था अभी और कुणाल ने घर की बात छेड़ दिया था ।
“ बेटा भरोसा है पर ये घर तेरे पापा का भी है… उनकी मर्ज़ी भी तो ज़रूरी है ना ।” रमा जी ने कहा
“ किस बात पर मर्ज़ी..?” अचानक शैलेश जी पहुँच कर बोले
रमा ने हाथ में पकड़ा पेपर उन्हें थमा कर सारी बातें कह दी।
“ तुम्हारा दिमाग़ ठिकाने पर तो है कुणाल….. इतनी घटिया सोच वो भी हमारे बेटे होकर…. लानत है हमारी परवरिश पर जो तुम्हारे जैसे नालायक के पीछे पैसे पानी की तरह बहाया…. कान खोलकर सुन लो तुम दोनों…. ये घर हमारा है और हमारा ही रहेगा।” कहते हुए वो पेपर फाड़कर फेंक दिए
“ पापा आप ये सही नहीं कर रहे हैं…. आपके बाद सब मेरा ही तो होगा ना फिर अभी से क्यों नहीं?” कुणाल तल्ख़ तेवर में बोला
“ वो इसलिए बेटा क्योंकि तेरी नीयत सही नहीं है…. प्यार में इतना पागल हो गए हो कि अपने ही माता-पिता को उनके ही घर से निकालने की सोच लिए….. अब तुम दोनों ऐसा करो ….. अपना सामान बाँधो और यहाँ से चलते बनो… हम सोच लेंगे हम बेऔलाद ही है ।” शैलेश जी के इतना कहते ही कृतिका छमकते हुए कमरे में जाकर सामान बाँधने लगी
“ देख लिया तुमसे शादी करने का नतीजा अब हम अलग रहेंगे ये बड़ा घर छोड़कर किराए के मकान में लोग क्या कहेंगे…. सोचा है…. अब तुम कान खोलकर सुन लो…. मेरे घरवालों ने जो जो सामान दिया है वो सब लेकर जाऊँगी….. अपना सारा सामान एक एक चुन चुनकर…. हमें घर से निकाल रहे हैं तो अपना सामान लेकर जाऊँगी…. ।” कृतिका के तीखे तेवर से कुणाल घबरा गया था पर कुछ बोल ना सका …. शादी मर्ज़ी से की तो दुख भी झेलने होंगे
कृतिका रसोई से लेकर बाहर हाल में लाए अपने सारे सामान को कसने लगी…. ये सब देख कर रमा जी अपना आँचल मुँह में दबाएँ सिसकी रोकने की कोशिश कर रही थी जब रोक नहीं सकी तो भागकर य छत पर चली गई थी वहीं चबूतरे पर घंटो बैठी रही जब तक कुणाल कृतिका चले नहीं गए… उपर से बारिश ने थोड़ी मुसीबत ला दी थी पर शैलेश जी कठोर बने रहे एक बाप बेटे की इस हरकत पर रो रहा था पर आँसू बहाने का हक उसे कहाँ होता…. पर पत्नी के लिए जिस चाव से घर बनाया था उसे हाथ से जाने देने की गलती नहीं करना चाहते थे….. हाँ जाते जाते कुणाल से ज़रूर कह दिया था जब सिरफिरा दिमाग़ कुछ समझदार हो जाए तो लौट कर आ सकते हो पर जब तक हम ज़िन्दा है घर हमारा है और हमारा ही रहेगा ।
कुणाल कुछ नहीं बोला एक गाड़ी में सामान लदवा कर निकल गया किसी दोस्त के घर के पास ही घर किराए पर लेकर रहने….
कुणाल के जाने के बाद शैलेश जी बैठ कर खूब रोये …. जिस बेटे के लिए ना जाने कितने मन्नत माँगे कितनी राते जाग कर गुजारी वो ही आज उन्हें घर से निकालने का सोच रहा था ।
अचानक जोर से बिजली चमकी तो दोनों अपनी यादों से बाहर निकल आए …. एक दूसरे का हाथ पकड़कर बोले,“ कभी-कभी ज़िन्दगी बहुत कुछ सीखा देती हैं….पर इतना यक़ीन है वो हमारा बेटा है एक दिन लौट कर ज़रूर आएगा…. बस उस दिन का इंतज़ार करना होगा….. और ना आए तो क्या हुआ हम है ना एक दूजे के लिए ।”
शैलेश जी और रमा जी फिर से ज़िन्दगी जीने की कोशिश में लग गए…. बेटे का मोह छोड़ नहीं पा रहे थे पर धीरे-धीरे सँभलने लगे।
कृतिका बहुत समय तक कुणाल का साथ नहीं निभा सकी उसे लग्ज़री का शौक़ था…. यहाँ तो शैलेश जी घर खर्च करते थे अपना घर था तो दोनों सारी कमाई खुद पर उड़ा रहे थे उधर जाकर कृतिका को दिक़्क़त होने लगी… बात बात पर अनबन की स्थिति आने लगी … कृतिका कुणालके साथ रहना भी नहीं चाहती थी…थक कर कुणाल कृतिका से अलग हो गया…लौट कर वापस अपने माता-पिता के पास आ गया…देर से ही सही समय रहते उसे कृतिका के प्यार के झाँसे से मुक्ति मिल गई थी।
उसने माता-पिता से अपनी गलती की माफ़ी माँगी,वो लोग भी इकलौते बेटे से आख़िर कब तक नाराज़ रहते….. उसे माफ कर के गले से लगा लिया….
कुछ महीनों बाद अपनी पसंद की ही जान पहचान की लड़की वनिता को कुणाल के लिये चुन कर उसका विवाह करवा दिया….. वक़्त के साथ साथ कुणाल भी कृतिका को भूल कर वनिता को अपनी पत्नी स्वीकार कर के इसी घर में माता-पिता के सानिध्य में रहने लगा।
दोस्तों कई बार बच्चों की ज़िद के आगे माता पिता मजबूर हो जाते हैं…कितने तो ये सोच कर ज़मीन जायदाद बच्चों के ही नाम कर देते हैं कि सब कुछ इनका ही पर ऐसा करना सही नहीं है , आज के समय में पहले खुद के लिए भी संचय करके रखना ज़रूरी है कल का क्या भरोसा?
मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# बेटियाँ जन्मोत्सव प्रतियोगिता (3)
आज के समय में इस तरह के वाकये हमारे आस पास ही देखने मेंआते हैं।अच्छी कहानी।
it is an awesome 👌 story. Thanks a lot.