नम्रता और गगन पूना से बिहार अपने शहर जाने की तैयारी कर रहे थे… पहले से ही विचार कर लिया गया था पहले नम्रता के घर जाना है फिर गगन के घर जाएँगे क्योंकि नम्रता के शहर में एयरपोर्ट की सुविधा है तो वे लोग फ़्लाइट से वही जाएँगे ।
नम्रता अपने घर दो साल बाद जा रही थी ज़ाहिर सी बात है मायके जाने की ख़ुशी चेहरे पर साफ़ झलक रही थी… ससुराल तो वो हर साल जाती ही है कभी कभी तो साल में दो चक्कर भी लग ही जाते थे ।
“ देख रहा हूँ मायके जाने की ख़ुशी कुछ ज़्यादा ही हो रही है..?” गगन ने छेड़ते हुए कहा
“ क्यों आपको अपने घर जाने पर ख़ुशी नहीं होती?” नम्रता ने सवालिया लहजे में पूछा
“ अरे हाँ भई मुझे भी होती हैं… बस तुम्हें छेड़ रहा था…।” गगन ने कहा
सारी तैयारी करके अपने बारह और दस साल के बच्चों के साथ वो निकल पड़े ।
मायके पहुँच कर नम्रता बहुत खुश थी और इकलौते जमाईं की जमकर ख़ातिरदारी हो रही थी… बच्चे भी इतने दिनों बाद नाना -नानी, मामा -मामी और उनके बच्चों से मिल ख़ूब ख़ुश नजर आ रहे थे ।
चार दिन रूकने का कार्यक्रम था.. एक दिन नम्रता के बड़े भाई ने गगन से कहा,“इस बार नम्रता को कुछ दिन यहीं छोड़ जाइए ..एक तो ये आती नहीं है और फिर अपने ससुराल तो हर साल जाती ही है कुछ दिन आप भी अपने ससुराल रह लीजिए ..!”
गगन सुन कर बस मुस्कुरा दिए.. … बोले कुछ नहीं ।
चार दिन बाद—-
“ चलो नम्रता सब पैक कर लो अभी कैब वाला आता होगा हमें निकलना भी है..।” गगन ने कहा
“ क्या हम कुछ दिन और नहीं रूक रहे..?” नम्रता ने आश्चर्य से पूछा
“ अरे जब तय करके आए ही थे तो एक दिन ज़्यादा कैसे रूक सकते हैं…वैसे भी ससुराल में ज़्यादा दिन नहीं रहना चाहिए ।” गगन ने कहा और मोबाइल पर कैब वाले का फ़ोन आ गया तो वो बात करने लगा
नम्रता बेमन से सब सामान समेट रही थी ।बच्चों को बुला कर तैयार होने बोली और खुद भी तैयार होने लगी ।
मम्मी पापा भाई भाभी सबने कहा दो चार दिन और रूक जा पर गगन ने ना रूकना था ना रूका।
खैर नम्रता मायके से विदा हो अपने ससुराल आ गई।सप्ताह भर ससुराल में रहकर अपने फ़र्ज़ निभाती नम्रता मन में मायके ना रूकने की तड़प छिपाए चेहरे पर मुस्कान लाने की पूरी कोशिश कर रही थी ।
सप्ताह कैसे बीत गया पता ही नही चला अब इनके वापस जाने का समय हो रहा था ।
“ बेटा कुछ दिन और रूक जाता… एक तो इतने महीनों पर मिलने आता वो भी गिनती के दिन लेकर… ऐसे में किसी माँ का दिल कैसे भरेगा जरा बता।“ माँ के रूदन से गगन का दिल दुखी हो गया..माँ की आवाज़ में दर्द महसूस कर उसने नम्रता से कहा,“ सोच रहा हूँ कुछ दिन और रूक जाए… माँ हमारे जाने से बहुत दुःखी हो रही है… मुझे अच्छा नहीं लग रहा।”
“ आपको जो ठीक लगे गगन … माँ तो माँ होती हैं अपने बच्चों को ज़्यादा दिन पास देखना चाहती है …. क्या हुआ जो मेरी माँ को मैं ये खुशी ना दे सकी…आप अपनी माँ को दे सकते है पर मैं कितने दिन और ससुराल में रहूँ ये बता दीजिए… क्योंकि ससुराल में ज़्यादा दिन रहना अच्छा नहीं होता ये आपने ही कहा था ना..।”नम्रता अपने कपड़े तह करते हुए बोली जा रही थी
गगन नम्रता के कहने का मतलब पहले तो नहीं समझा जब समझ आया तो बोला…,“ एक सप्ताह की छुट्टी और ले लेता हूँ… हम लौटते वक़्त तुम्हारे शहर से ही चलेंगे… ट्रेन की टिकट कैसिंल करवा कर फ़्लाइट की ले लूँगा…. कुछ दिन मैं भी अपने ससुराल में रह लूँगा ।” गगन ने नम्रता का चेहरा अपनी ओर उठाते हुए कहा
“ सच कह रहे हैं…!” नम्रता लगभग उछलते हुए बोली
“ हाँ बिलकुल सच… समझ गया दोनों की माँ का दर्द तो एक सा ही है बस मैं भूल गया कि जैसे मैं ससुराल गया तुम भी तो ससुराल में ही आई हो… और दोनों को एक दूसरे के परिवार के प्रति प्यारे रिश्ते को महसूस करना ज़रूरी है ।”गगन ने कहा
दोनों लोग सप्ताह भर और अपने अपने ससुराल रहे… दोनों की माएँ बहुत खुश हुई…।
अक्सर जब बच्चे बाहर रहने लगते हैं तो कुछ ही दिनों के लिए मिलना होता है और माँ तो माँ होती है वो चाहती है बच्चे कुछ दिन और रूक जाए…. लड़की ससुराल जाकर चाहे दस दिन क्यों ना रहे पर कुछ लड़के अपने ससुराल ज़्यादा रूकने के नाम से भागते हैं जबकि लड़की से ज़्यादा आवभगत तो दामाद की होती है… काश लड़कियों की क़िस्मत में भी ऐसा ही ससुराल हो जो आवभगत करता हो…।
अरे ज़्यादा सोचिए मत ऐसा होता होगा किसी की क़िस्मत में…. सपना तो देख ही सकते इसमें किसी का क्या जाता 😊
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रश्मि प्रकाश