काश… – अविनाश स आठल्ये

Congratulations !!!

Mrs सीमा बत्रा…

इस वर्ष हमारी वेबसाइट पर सबसे ज्यादा आपकी ही कहानियों को पसन्द किया गया…इतने ज्यादा व्यू तो हमारी लेखक.कॉम वेबसाइट के इतिहास में आज तक किसी को नहीं मिले..हमारी “लेखक डॉट कॉम” टीम की तरफ़ से इस वर्ष का सबसे पसंदीदा लेखक का अवार्ड आपको दिया जा रहा है।

अवार्ड ग्रहण करते हुये सीमा बत्रा की आँखों की कोर से आँसू वह निकले थे.. वह मन ही मन सोच रही थी कि

काश!!… यह अवार्ड मुझे 3 वर्ष पहले मिला होता…।

काश!!! कि आज पिताजी जीवित होते..वह कितना खुश होते कि उनकी प्यारी पम्मी जिसे वह उंगली पकड़कर लिखना सिखाये थे, आज कितनी बड़ी वेबसाइट की सर्वश्रेष्ठ लेखिका बन गई है.. पम्मी यानी सीमा के आधा पेज के लेखन में भी वह कम से कम बीस गलतियां ढूंढ़ लेते थे, इसलिए उनके डर से पम्मी कभी भी अपनी कॉपियां पिताजी के सामने नहीं रखती थी.. वैसे भी “कॉन्वेंट स्कूल” में पढ़ने वालों का हिंदी विषय ही सबसे कमजोर हुआ करता है। बेटियां यूँ भी पिता के ज्यादा क़रीब होती हैं, सीमा कि तो दिल की धड़कन ही थे उसके पिताजी, कई बार तो माँ ही उलाहना देती कि तेरे लिए तो तेरी माँ भी पापा हैं, और बाप तो खैर वह हैं ही।

                                     ★

वक़्त गुज़रता गया धीरे-धीरे दो भाइयों की प्यारी बहना बड़ी हो गई, सही उम्र में एक अच्छे परिवार में एडवोकेट संदीप बत्रा जी से सीमा का विवाह हुआ, संदीप जी हमेशा सीमा की छोटी-छोटी खुशियों का ख़्याल रखा करतें थे, सीमा को ससुराल में रहकर कभी मायके की कमी महसूस नहीं हुई..

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तीन वर्ष पूर्व कि वह घटना आज भी फ्लैशबैक की तरह सामने आकर खुलने लगीं.. सीमा जल्दी आ जाओ, पिताजी को हार्ट-अटैक हुआ है, ग्रेटर कैलाश हॉस्पिटल में उनको आईसीयू में एडमिट किया हुआ है.. दिलीप भईय्या की घबराहट भरी आवाज़ सुनकर सीमा के हाथ-पैर ठंडे हो गये, आननफानन में सीमा अपने पति संदीप के साथ ग्रेटर कैलाश अस्पताल पहुंची ..जहां नीचे रिसेप्शन काउंटर के पास उन्हें पूर्वी भाभी इंतज़ार करते मिली.. आइसीयू में एक वक्त में एक ही व्यक्ति अंदर जा सकता था, इसलिए सीमा और संदीप अलग अलग करके पिताजी को देखने गये..

पिताजी के दोनों हाथों की उंगलियां अस्पताल के पलंग से बंधी हुई, दोनों ही हाथों में ड्रिप लगी, छाती पर जगह जगह कार्डियोमीटर के वॉल्व चिपके हुये, नाक पर ऑक्सीजन मास्क लगा हुआ..और आईसीयू के गहन सन्नाटे को तोड़ती बीच बीच मे “बीप-बीप” की आवाज ..यूँ लग रहा था कि जैसे कोई टाइमबम स्टार्ट हो चुका हो..कार्डियोमीटर के घटते बढ़ते ग्राफ से अपरिचित सी सीमा क़भी पिताजी को देखती तो क़भी वहां खड़े ड्यूटी डॉक्टर को..उसे लगा कि पिताजी उसे पहचान कर हाथ को झटका देकर रुकने को कह रहें हैं, शायद वह उससे कुछ कहना चाहते हैं.. मग़र ड्यूटी डॉक्टर ने तुरंत उन्हें बाहर जाने को कहकर नर्स को कहकर नींद का इंजेक्शन देकर शांत कर दिया।




                                   ★★

 दो दिन में हालत इतनी बिगड़ी कि पिताजी को आईसीयू से हटाकर वेंटिलेटर में गहन आइसीयू में रखना पड़ा.. वह कोमा में आ चुके थे.. उनकी यह दशा सीमा को देखी नहीं जा रही थी, गहन आईसीयू के बाहर से ही सीमा, उसकी माँ और भाभी रोज की पिताजी के स्वस्थ होने के लिए “वाहे गुरु” से प्रार्थना करते, भाई गुरुद्वारा जाकर मत्था टेककर आते, पिताजी के ठीक होने पर लंगर कराने का भी वाहे गुरु के सामने कुबूल किया, मग़र पिताजी की तबियत में कोई सुधार नहीं दिखा.. 

फिर एक दिन बड़े डॉक्टर ने आकर दिलीप भईय्या और संदीप को अपने केबिन में बुलाकर सलाह दी, “वेंटिलेटर पर पड़ी “बॉडी” अब रिस्पांड नहीं कर रही हैं” मेरी सलाह है कि आप इन्हें घर पर ले जाकर अपनी अंतिम साँसे लेने दें..रोज के 25-50 हज़ार रुपये वेंटिलेटर पर खर्च करने में अब कोई अर्थ नहीं रह गया है।

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भगवान के बाद दूसरा भगवान यानी डॉक्टर ही जवाब दे दिया तो कोई उपाय न बचा जल्दी जल्दी फोन करके पिताजी के स्थानीय मित्रों एवम नजदीकी रिश्तेदारों को “मृत्यु पूर्व” दर्शन हेतु ग्रेटर कैलाश अस्पताल के उस गहन आई सी यू में बुलाया गया..सीमा को संदीप एवम माँ ने बहुत बार बोला कि जाकर पिताजी के दर्शन कर लो..मग़र सीमा की हिम्मत ही न हुई पिताजी की टूटती हुई साँसे देखने की।अस्पताल के एम्बुलेंस से पिताजी को घर लाया गया, और लगभग 3-4  घण्टे में ही उन्होंने सीमा के सामने ही हिचकियाँ लेते हुये अंतिम साँस ली।

                                 ★★★

इस घटना को हुये एक वर्ष हो गया, पिताजी की प्रथम पुण्यतिथि भी हो गई..वक़्त के साथ साथ दोनों भईया, भाभी और यहाँ तक कि माँ भी इस दुःख से बहुत हद तक उबर चुकी थी..मग़र सीमा के मन में एक टीस सी थी..रह रहकर रात को उसको स्वप्न में अंतिम साँसे लेते पिताजी दिख रहे थे..किसी कार के बेक करने पर आने वाली “बीप बीप” की आवाज़ भी उसे झखझोर देती..उसे रह रहकर यही लगता था कि पिताजी उससे कुछ कहना चाहते थे..मग़र कह न सकें।




सीमा गम्भीर अवसाद में जी रही थी, संदीप ने सीमा का इलाज़ अच्छे मनोचिकित्सक से करवाना शुरू कर दिया,  लगभग छह महीने के उपचार के बाद उन्होंने सीमा को किताबें पढ़ने की सलाह दी.. और सलाह कारगर साबित हुई..भावुक सीमा अपना दर्द भूलकर, दूसरों की कहानियों में खोने लगी..

                            ★★★★

वर्ष भर से अधिक हो चला था सीमा को उपन्यास, कहानियां पढ़ते हुये, अब तो संदीप भी खीज़ उठते, क्या है यह..जब देखो किताबें, फ़ेसबुक, प्रतिलिपि पर कहानियां ही पढ़ती रहती हो..हिम्मत हो तो कभी अपनी भी कहानी लिखकर दिखाओ….

सीमा ने इसे चैलेंज के रूप में लिया, उसे अच्छे से याद है कि उसने ठीक 23 जुलाई को अपनी पहली कहानी “लेखक डॉट कॉम” की वेबसाइट पर जाकर उसके एडमिन को पोस्ट की..थोड़ी सी मात्राओं की त्रुटि संशोधन के बाद सीमा की वह कहानी पहली बार सोशल मीडिया के पटल पर प्रकाशित हुई..सीमा को यूँ लगा कि वह किसी बड़े बजट की फ़िल्म की हिरोइन हैं और आज पिक्चर रिलीज़ हो रही है… बमुश्किल पचास लोगों ने भी पसन्द नहीं किया था सीमा की पहली कहानी को, और उनमें भी अधिकतर उसके मित्र और रिश्तेदार ही थे।

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मग़र सीमा को तो अब लिखनें की लत लग चुकी थी, अब उसने एक पाठक के नज़रिये से नहीं बल्कि एक लेखक के नज़रिये से उस पटल की सर्वाधिक पसन्द की जाने वाली कहानियों को बारीकी से पढ़ना शुरू किया.. उसने पाया कि बड़े लेखकों की कहानियों में शब्दों का चयन भले ही सामान्य लेखकों जैसे ही हो, मग़र उसके भाव विलक्षण होतें हैं, उनकी हर कहानी समाज को कुछ न कुछ सकारात्मक सीख देती है।

सीमा ने निरंतरता बनाये रखी और अपनी कहानियों की गुणवत्ता में सुधार करते हुये.. वह लेखक डॉट कॉम की सर्वश्रेष्ठ लेखिका बन चुकी हैं।

आज सीमा के पास नाम हैं, मक़ाम हैं, हर वह चीज़ उसके पास है जिसकी उसे चाह है..मग़र बस एक “काश” भी हैं.. काश कि पिताजी आज उसका यह मक़ाम देखनें को जीवित होते।

दर्द हांसिल थे मेरे भी हिस्से में, मग़र मुझे दर्द को अल्फ़ाज़ों में बदलने का हुनर आता है,




खूब तारीफें कीजिए मेरे इन किस्सों की, मुझे भरे अश्कों से भी मुस्कुराना आता हैं।

अवि

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कल मदर्स डे था, मैं तो अपनी माँ के साथ खुश था, मग़र मैं इस पटल पर ऐसे अनेक चेहरें देख रहा था, जिनकी या तो आज माँ नहीं है, या पिताजी जिन्हें वह माँ से भी ज़्यादा प्यार करते थे..कितने ही लोग आज भी इसी वेदना में घुट-घुटकर जी रहें है, डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं।  हर किसी के जीवन में एक “काश” अब भी है।

उन लोगों को ही प्रेरित करती यह किसी के जीवन की सच्ची कहानी हैं, आइये कलम उठाइये, और लिख दीजिए अपनी व्यथा, टीस या वेदना को एक कहानी का आकर देते हुये।पुनर्जीवित कर दीजिए अपने स्वजन को कल्पनाओं के आधार पर एक नया रूप देते हुये,

कोई पसन्द करें या न करें मग़र मन जरूर हल्का हो जायेगा, मैं यह दावे से कह सकता हूँ।

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धन्यवाद

स्वलिखित

अविनाश स आठल्ये

सर्वाधिकार सुरक्षित

1 thought on “काश… – अविनाश स आठल्ये”

  1. बहुत ही प्रेरणादायक … परन्तु कहानी न कहकर आपबीती कहें बेहतर है। अवसाद से निकलकर कुछ लेखन।
    बहुत ही सुन्दर।

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