पिछ्ले वर्ष जनवरी में मेरे छोटे बेटे की सगाई हुई।सभी लोग बहुत खुश थे।खासतौर से बड़ा बेटा बहुत उत्साहित था।
बोला,” पापा, इस बार सारा इन्तज़ाम मैं करूंगा।”
अब booking का सिलसिला शुरू हुआ।शहर का सबसे अच्छा resort बुक किया गया,बैंड फोटोग्राफर,हलवाई सब अच्छे से अच्छे,,,,,
जोरदार शॉपिंग हुई।बड़ी बहू और बेटी ने सुन्दर सुन्दर लहँगे लिए,मुझे भी जबर्दस्ती बहुत महंगी और सुन्दर 2 साड़ी दिलवाई।
करते- करते मार्च आ गया और कोरोना ने पैर पसारने शुरू कर दिये अचानक से घोषणा हो गई कि सारे मैरिज गार्डन बंद कर दिये गये हैं।अब केवल 50 लोग ही शामिल हो सकते हैं शादी में,,,,,300 कार्ड छप चुके थे,अब क्या करें?
एक बार फिर कवायद शुरू हो गई होटल बुक करने की,बड़ी मुश्किल से एक जगह बात बनी,रिश्तेदारों की लिस्ट में काटा छाँटी हुई,,,अब उत्साह में कमी आने लगी थी।
26 अप्रैल की शादी थी और 10 को घोषणा हो गई कि केवल 10 लोग ही जा सकते हैं।अजीब सी कशमकश में थे सभी ,कोई प्लान ही नहीं कर पा रहे थे ।कार्टून भरे कार्ड मुँह चिढ़ा रहे थे और सारे लोग भी चिड़चिड़े हो रहे थे।सारी उमंग गायब हो गई थी।
शादी के 4दिन पहले ही जिस की शादी थी,उसे भयंकर सर्दी जुकाम हो गया और सब के होश फाख्ता,,, डर इतना था कि कोई छींक दे पास में तो होश उड़ जाएं,,,2दिन पहले जेठ जी को कोरोना हो गया,,,रही -सही कसर भी पूरी हो गई ।
खैर शादी हुई,कोई आया नहीं तो नये कपड़े भी अलमारी की शोभा ही बढ़ाते रहे।
अब बहू आई तो वह भी सर्दी जुकाम ले कर आई,मास्क पहनकर ही सारी रस्मे हुई,कोई मेहमान नहीं,,,, सारे अरमान धरे के धरे रह गये।
4दिन बाद बहू विदा हूई,उसके अगले दिन ही बड़ी बहू की report पॉजिटिव आ गई,वो क्वारंटाइन हो गई।
अब सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर,दो छोटे बच्चे,,,पोता5साल का ,,,पोती 3साल की,,,उनको माँ से बचाना बहुत जरूरी था।पर बेटा काफी कुछ संभाल लेता था
नई बहू से कहा ,”टेस्ट करा लो,तब आना ।”
टेस्ट तो करा लिया पर कई दिन तक report नहीं आई तो उसे बुला लिया।
पर हाय री किस्मत,,,जैसे ही वो घर में आ कर मुझ से गले मिली ,,, report भी आ गई वो भी पॉजिटिव
सब मुझ पर गुस्सा होने लगे,”पता तो था अभी report नहीं आई है तो फिर दूर रहना था न,, वह वक़्त इतना कठिन था कि सारी संवेदनाएँ शून्य हो चली थी,,,,,बच्चों की चिंता ज्यादा थी।”
स्वागत तो क्या होता बेचारी का,उसे घर से बाहर बने कमरे में कूलर लगा कर रहने भेज दिया,, एक कमरे में बड़ी बहू पहले से ही थी।बहुत बुरा लग रहा था मुझे,ऐसे व्यवहार की तो उसने कल्पना भी नहीं की होगी।
कितने अरमान सजाये होंगे पर ये क्या,,, न कोई बात करने को, न लाड़ लढ़ाने को ,,,अलग बर्तन,,दूर से खाना पानी दे देते दोनों को।
छोटा बेटा बहू के साथ,,,,अब बड़े बेटे से थोड़ा सहारा था सबको खाना परस देता तो अगले दिन वो भी पॉजिटिव,,
महरी ने आना बंद कर दिया,नगरपालिका वाले बैरिकेड लगा गये,,,
सुबह से किसी को गरम तो किसी को ठंडा पानी,फिर काढ़ा,नाश्ता ,हल्दी का दूध ,खाना,फिर बच्चों को संभालना,,, रेल बनी जा रही थी मेरी,,,इतना काम तो काफी समय से नहीं किया था,,,थक कर चूर हो जाती,,,जैसे ही बैठती कि बच्चों को कहीं लघुशंका तो कहीं दीर्घशंका,,,लगता मैं ही बिस्तर न पकड़ लूँ।
बच्चे कहते,”हे भगवान!!मम्मी को कुछ न हो,वरना कौन संभालेगा।”
शाम को चारों कोरोना ग्रस्त बाहर बैठ कर गप्पें लगाते और मैं काम में ही लगी रहती तो यही कहती,”तुम लोगों का तो राजयोग चल रहा है और मेरा शनि भारी है।”
पूरा महीना लग गया हालात सामान्य होते-होते,,,पर काम कर – कर के मैं बिल्कुल फिट हो गई।सब से कमजोर लोग हम पति-पत्नी और बच्चे स्वस्थ रहे,,,हालांकि सावधानी बहुत रखनी पड़ी।
बच्चे जब कहते हैं कि मम्मी आप ने बहुत हिम्मत से काम लिया तो सच में बहुत अच्छा लगता है।
पर कहते हैं न अन्त भला तो सब भला।
पर भगवान किसी नववधू का ऐसा स्वागत न कराये।
ये कसक दिल में आज भी है।
कमलेश राणा
ग्वालियर