*करनी अपनो की* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

     भैय्या, आप तो नौकरी में बाहर ही रहते हो,चाचा अब रहे नही,तो इस खेती बाड़ी को कौन देखेगा?

      हां-हाँ ये बात तो है,कुछ सोचना तो पड़ेगा।

       भैय्या, आप यदि इजाजत दे  तो आपकी जमीन को मैं बो और काट लूंगा।आपकी दोनो बेटियों की शादियों की जिम्मेदारी हमारी।आपके कारण हमारा भी काम चल जायेगा।

          रविन्द्र को अपने चचेरे भाई धर्मबीर के प्रस्ताव में कोई बुराई नजर नही आयी।जमीन रविन्द्र बेचना भी नही चाहते थे,और देखभाल कर नही सकते थे।दोनो बेटियों की शादियों से निश्चिंतता भी कोई कम बड़ी बात तो थी नही।रविन्द्र वैसे भी चचेरा भाई था,घर की बात थी,सो रविन्द्र जी ने धर्मबीर को अपनी जमीन पर जुताई बुआई की अनुमति दे दी।अविश्वास की कोई  बात थी नही,सो कोई लिखत पढ़त भी करने की  दोनो ओर से जरूरत नही समझी गयी।

         रविन्द्र का अच्छा बड़ा मकान जो सब सुविधाओ से युक्त था,गाँव मे स्थित था,सो वह साल में एक दो बार गावँ के घर मे रहकर जाते,तब सब व्यवस्था धर्मबीर ही करता।रविन्द्र और धर्मबीर के अब और खूब मधुर सम्बन्ध हो गये थे।

         समय चक्र के साथ रविन्द्र की बेटी विवाह योग्य हो गयी थी,रविन्द्र निश्चिंत थे कि विवाह का खर्च धर्मबीर उठायेगा ही,उन्होंने बेटी के लिये योग्य लड़का की तलाश प्रारम्भ कर दी।उन्हें  संयोगवश एक आईपीएस लड़का मिल गया ,वह  उनके गावँ के पास के एक नगर में ही डीएसपी पद पर नियुक्त था,रविन्द्र जी ने बेटी का रिश्ता तय कर दिया।

अब उन्होंने शादी की तैयारी हेतु रूपरेखा बनाने के लिये धर्मबीर को बुलाया।धर्मबीर पहले तो आया ही नही,बार बार कहने पर उसने समाचार भिजवा दिया कि शादी में खर्च करने का उसका मिजान नही है,वह आर्थिक तंगी में चल रहा है।रविन्द्र को यह सब सुनकर स्वाभाविक रूप से धक्का लगा,पर शादी तो करनी ही थी,

सो किसी प्रकार उन्होंने खुद ही सब व्यवस्था कर बेटी की शादी सम्पन्न कर दी,धर्मबीर शादी में भी नही आया।रविन्द्र जी  इस व्यवहार से आहत थे।फिर भी उन्होंने अपने मन को यह सोचकर संतुष्ट किया कि हो सकता है,वास्तव में धर्मबीर पर आर्थिक संकट हो,इसी संकोच में वह शादी में न आया हो।दूसरी बेटी की शादी भी तो अगले वर्ष तक करनी ही है, धर्मबीर कम से कम तब सहयोग करेगा ही।

        दूसरी बेटी की शादी भी तय हो गयी,धर्मबीर कोई संपर्क स्थापित नही कर रहा था।रविन्द्र जी ससंकित हो गये यदि धर्मबीर ने फिर धोका दे दिया तो दूसरी बेटी की शादी में तो उनकी सारी बचत ही समाप्त हो जायेगी।उनकी शंका ठीक ही निकली,धर्मबीर ने ढीठ पने से उत्तर दे दिया कि वह कुछ भी खर्च करने मे असमर्थ है।

साथ ही यह भी जता दिया कि उनकी जमीन से कोई खास आय हो भी नही पायी,खर्च और आमदनी में अधिक अंतर नही रहा।सब सुनकर धर्मबीर की चालाकी एवम धूर्त पन वह समझ चुके थे,पर अब किया ही क्या जा सकता था?उन्होंने दूसरी बिटिया की भी शादी कर दी।जॉब के कारण वे गाँव जा नही पाते थे,फिरभी वे छुटियों की व्यवस्था कर गाँव गये तो अबकि बार नजारा बदला हुआ था,धर्मबीर द्वारा पहले की तरह आव भगत तो दूर,मिलने तक नही आया।

रविन्द्र जी ने घर की सफाई करवा कर धर्मबीर को मिलने को बुलाया,किसी प्रकार वह आया, पर उसका बर्ताव बदला हुआ था,वह जमीन भी छोड़ने को तैयार नही था।रविन्द्र जी तो गावँ रहते नही थे,रहता तो धर्मबीर था,इस कारण उसके विरुद्ध गावँ में भी उनका सहयोग कोई खुले रूप में करने को सामने नही आ रहा था।धर्मबीर ने खेत से ट्यूबवेल तक हटा कर अपने खेत मे लगवा लिया था।ऐसे समय मे उनके बड़े दामाद ने सब स्थिति समझ कर सारे मामले को खुद सुलझाने का निर्णय किया।

वह पुलिस अधिकारी तो था ही,उसने अपने ससुर यानि रविन्द्र जी से ट्यूबवेल की चोरी एवम जबर्दस्ती जमीन पर कब्जे तथा जान से मारने की धमकी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी।पुलिस सक्रिय हुई और उसने दबिश देकर धर्मबीर और उसके बेटे को दबोच कर हवालात में बंद कर दिया।ये एक्शन धर्मबीर के लिये अप्रत्याशित था,पुलिस एक्शन के आगे कोई उसका सहयोग करने भी नही आ रहा था।अदालत ने भी उन्हें जेल भेज दिया।अब उसकी अक्ल ठिकाने आ चुकी थी,

वह अब रविन्द्र जी से मिलने की गुहार कर रहा था। रविन्द्र धर्मबीर से मिलने जेल में तो नही गये, पर कचहरी में उनका सामना धर्मबीर से हो गया।वह रविन्द्र जी के पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा।रविन्द्र जी बोले भाई मैंने तेरे साथ क्या कुछ बुरा किया था जो तूने हमारे साथ ऐसा धोका किया।अब ये बता तेरी करनी  की सजा देख तेरे बेटे तक को भी भुगतनी पड़ रही  है।

        रविन्द्र जी पारिवारिक मामला होने के कारण कुछ पिघले उधर दामाद कही नाराज न हो जाये इस द्वंद में सामंजस्य बिठाते हुए उन्होंने इतना ही कहा,भाई देख मैं इस केस में नामचार को पैरवी करूँगा,अब तेरा भाग्य तू बचे या सजा पाये।

      दो महीने बाद उनकी जमानत तो हो गयी पर केस चल रहा है, पता नही केस के फैसले में उसकी करनी की उसे क्या सजा मिलेगी?

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

सत्य घटना पर आधारित,अप्रकाशित।

*#जैसी करनी वैसी भरनी* मुहावरे पर आधारित लघुकथा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!