कर्मयोगी – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

      विजय देखो अब ये अपने गंगू का बेटा मुन्ना यही हमारे पास रहा करेगा।

     पर क्यों पापा?

इसका अब कोई नही रहा है।गंगू अपनी पत्नी को सरकारी हॉस्पिटल ले जा रहा था,एक ट्रक की टक्कर से दोनो की मौके पर ही मौत हो गयी, मुन्ना स्कूल गया हुआ था,अब यह तो अनाथ हो गया ना।अब हमारी जिम्मेदारी बनती है साथ ही मानवता का तकाजा भी है कि हम मुन्ना की परवरिश करे।

          मनमोहन जी अपने नगर के एक बड़े कारोबारी थे,उनका  वर्षों से निजी विश्वसनीय सेवक, गंगू था।मनमोहन जी ने गंगू को अपनी कोठी के पिछले भाग में  एक कमरे का सर्वेंट क्वाटर दिया हुआ था,वही वह अपनी पत्नी कमली और सात वर्षीय पुत्र मुन्ना के साथ रहता था।मनमोहन जी अपनी कोठी में अपनी बीमार पत्नी और बेटे विजय तथा बहू नीलिमा के साथ रहते थे,वे अपनी बिटिया शालू की शादी कर चुके थे।गंगू और उसकी पत्नी कमली ही उनकी देखभाल करते थे।गंगू एक प्रकार से उनके परिवार का ही हिस्सा बन गया था।

      आज अचानक ही गंगू और कमली की आकस्मिक दुर्घटना में हुई मृत्यु ने मनमोहन जी को अंदर तक हिला दिया।गंगू के किसी रिश्तेदार के विषय मे उन्हें कोई जानकारी नही थी, न कभी गंगू ने कोई जिक्र किया था।गंगू का बेटा बिल्कुल अकेला रह गया था,इसी कारण मनमोहन जी ने मुन्ना को अच्छी परवरिश देने का निश्चय कर लिया था।

          मनमोहन जी के बेटे विजय को पिता का निर्णय ठीक नही लग रहा था,नौकर के बच्चे को परिवार के बीच मे रखना उसे उचित प्रतीत नही हो रहा था,पर पिता के सामने वह चुप ही रहा।मुन्ना मनमोहन जी के कमरे में ही सोने लगा,सुबह स्कूल चला जाता,वापस आकर घर के काम मे हाथ बटाता,और रात में अपनी पढ़ाई करता।माँ की याद आती तो ऊपर छत पर जाकर भरपूर रो लेता।एक मनमोहन जी ही थे जो उसके हर दर्द को समझते थे पर मुन्ना को मां कहाँ से लाकर देते।समय अपनी गति से दौड़ रहा था।मुन्ना हाई स्कूल में आ गया था,अब वह सब दुनियादारी समझने लगा था,वह यह भी समझ गया था कि विजय उसे पसंद  नही करते हैं।उसने स्वेच्छा से अपने को सर्वेंट क़वाटर में शिफ्ट कर लिया।स्कूल से आकर वह पहले की तरह घर का तो काम करता ही,अब वह घर के बाहर का भी काम करने लगा था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

निकम्मी औलाद – नेकराम : Moral Stories in Hindi

     एक दिन अनहोनी हो गयी।मनमोहन जी ह्रदयघात के कारण असमय ही भगवान के प्यारे हो गये।मुन्ना दूसरी बार अनाथ हो गया था।जब उसके मां बापू स्वर्ग सिधारे थे,वह छोटा था,उतना अहसास उसके बालमन में नही था,दूसरे मनमोहन जी ने उसे कभी पिता प्रेम का अभाव महसूस ही नही होने दिया था,पर अब मन मोहन जी के ही चले जाने से मुन्ना अंदर से टूटन महसूस कर रहा था।वह बस भगवान से यही पूछ रहा था,कि उसे ऐसी बदनसीबी क्यूँ दी?

        मनमोहन जी के जाने के बाद मुन्ना की दिनचर्या तो पहले जैसी रही,पर अब विजय के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा था।विजय को मुन्ना बोझ लगता।अब वह मुन्ना से अधिक से अधिक काम लेता और उसका मुन्ना से बोलने का लहजा भी तल्ख होता जा रहा था।मुन्ना अब ना समझ तो था नही,सब समझ रहा था,पर क्या करे उसके पास कोई मार्ग नही था।फिर मनमोहन जी के अहसान के कारण वह अपनी भरसक सेवा इस परिवार को देना चाहता था।

      उस दिन घर मे सुबह से ही गहमा गहमी का वातावरण था।घर से विजय की सोने की भारी चेन गायब थी,विजय का कहना था कि उसके कमरे की अलमारी की दराज में चेन उसने खुद रखी थी,जो अब वहां नही है।उस कमरे में विजय के अतिरिक्त मुन्ना ही साफसफाई के लिये जाता था।विजय को पूरा शक मुन्ना पर था।विजय की बीमार माँ ने कहा भी कि बेटा मुन्ना पर शक करना भी पाप है।पर विजय बोला मां तुम इन सपोलो क्या जानो,ये मौका देखते ही डसते हैं, देखो डस लिया ना।मुन्ना तो इल्जाम सुन कर ही हतप्रभ रह गया।उसने बस इतना ही कहा भैय्या क्या अपने ही घर मे भी कोई चोरी करता है

मुझे तो वैसे भी इस घर मे जिंदगी मिली है,मुझे यहां क्या कमी है भैय्या जो मैं चोरी करूँगा।विजय ने उसे दुत्कारते हुए कहा अहसानफरामोश तुमने चोरी नही की तो किसने की,तेरे सिवाय मेरे रूम में और कौन जाता है?पुलिस आयेगी, तब तुझसे सब उगलवा लेगी।तभी माँ बोली विजय देख बेटा मेरा कोई भरोसा नही कब मर जाऊं ,मेरी एक बात मान ले बेटा मेरी आखिरी इच्छा समझ कर मान ले,बेटा मुन्ना को पुलिस को मत दे।हमने उसे भी बेटा माना है,सोने की चेन उस पर कुरबान।बेटा मेरा दिल कहता है वह चोरी नही कर सकता।विजय मां की बात सुन झल्ला कर वहां से हट गया। मुन्ना अपने कमरे में अनिर्णय की स्थिति में जाकर अपने बिस्तर पर औंधा लेट कर रोने लगा,पर आज उसके सिर पर हाथ फिराने वाले मनमोहन जी नही थे।

        इतने में ही विजय की पत्नी नीलिमा दौड़ती हुई आयी और बोली अरे आपकी चेन तो ये बाथरूम  में पड़ी थी।तब विजय को ध्यान आया कि उसने ही चेन को चमकाने के लिये गले से उतार कर साफ की थी।खिसियाना सा विजय चुप चाप अपने कमरे में चला गया।चेन के घर मे ही मिल जाने का पता चलने पर मुन्ना ने राहत की सांस ली।पर एक आशंका उसके मन मे घर कर गयी थी कि यदि चेन न मिलती तो चोर तो उसे ही समझा जा रहा था।अगर भविष्य में फिर ऐसी घटना घट गयी और अबकी तरह चेन न मिली तो–?

         मुन्ना बीमार मां जी के कमरे में पहुंचा, तब घर मे विजय नही थे।माँ जी के चरण स्पर्श करके मुन्ना ने घर छोड़ कर जाने के लिये क्षमा मांगी।अश्रुपूरित आंखों से देखती माँ जी कुछ भी न बोल पायी।वह सामने जीवन संघर्ष के लिये तत्पर आत्मविश्वासी मुन्ना को देख रही थी।वे भी मुन्ना के भविष्य को इस घर मे देख ससंकित थी,बस आशीर्वाद के रूप में हाथ उठा कर आंसू पोछने के बहाने अपना मुँह दूसरी ओर कर लिया।मुन्ना माँ जी के मनोभाव समझता था।हाथ जोड़ वह एक छोटा सा सूटकेस ले कोठी से निकल गया अनजान पथ की ओर।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

ग्रेजुएशन। – कामनी गुप्ता*** : Moral Stories in Hindi

          मुन्ना के सामने अब अपने रहने की समस्या थी।फुटपाथ पर चलते चलते सहसा किसी ने उसे पुकारा।मुड़कर देखा तो पीछे से उसका सहपाठी दीपक उसे आवाज लगा रहा था। हाथ मे सूटकेस देख दीपक ने पास आकर पूछा मुन्ना क्या कहीं बाहर जा रहे हो?क्या और कैसे कहे कि वह फिर से निराश्रित हो गया है।

उसे चुप देख दीपक ने समझ लिया कि कुछ गड़बड़ है।उसे पता था मुन्ना को मनमोहन जी ने पाला पोसा था और वे अब दुनिया मे नही रहे थे।दीपक मुन्ना को अपने चाल नुमा घर मे ले आया,जहां वह अपने माता पिता और छोटे भाई बहन के साथ रहता था।दीपक के पिता इमारत बनाने के लिये राजगिरि का काम करते थे।

दीपक पढ़ाई के साथ खाली समय मे पिता का सहयोग करता था।दीपक ने अपने पिता को मुन्ना के बारे में बताया तो वे बोले देख ले बेटा वह अब तक कोठी में रहा है, यहां रह सके तो हमे तो एतराज नही।जमीन पर तेरे साथ इसकी चटाई भी बिछ जायेगी।मुन्ना ने सब बात और अपना इरादा दीपक को बताया

तो दीपक ने उसे नई व्यवस्था तक अपने यहां रहने की पेशकश कर दी।मुन्ना को यह बहुत बड़ा सहारा था।तीसरे दिन से मुन्ना भी दीपक के पिता के सहयोगी के रूप में काम पर भी जाने लगा।मुन्ना मेधावी था,उसके गुण को पहचान प्रॉपर्टी डीलर ने उसे मजदूरों के हिसाब किताब का काम सौप दिया।

उससे अब आय भी होने लगी थी,जिसको वह अपनी किताबो पर तथा दीपक के परिवार पर खर्च कर देता था।दीपक के यहां तो वह मात्र रात्रि निवास को ही आता था,दिन में बचे समय मे पार्क में पढ़ाई करना, उसका नियम हो गया था।ग्रेजुएशन के बाद नौकरी हेतु प्रतियोगिता की तैयारी में मुन्ना जुट गया। ईश्वर ने भी उस अभागे की सुन ली और उसने बैंक अधिकारी की परीक्षा पास कर ली।उसका बैंक में असिस्टेंट मैनेजर पर पोस्टिंग भी हो गयी।

        एक दिन मुन्ना अपने बैंक में  अपनी केबिन में बैठा कार्य निपटा रहा था,तभी उसके कानों में जानी पहचानी आवाज सुनाई दी।किसी ने कहा था मे आई कमिन सर? मुन्ना के मुँह से तुरंत आवाज निकली भैय्या? हाँ, सामने विजय भैया ही थे,मनमोहन जी के बेटे।मुन्ना तुरंत खड़ा हो गया।विजय भी भौचक्के हो मुन्ना को वहां देख रहे थे।वे सोच भी नही सकते थे जो उनके नौकर बेटा, उनके अहसान पर पला हो वह इस पोजीशन में भी हो सकता है।उन्हें ग्लानि विशेष रूप से इस बात की थी कि उन्होंने मुन्ना को हमेशा अपमानित किया था

और बाद में तो चोरी का ही इल्जाम लगा दिया था।एक धर्म संकट और था विजय जी के सामने वे अपनी फैक्टरी के लिये वर्किंग कैपिटल के रूप में जो लोन लेने आये थे उसे मुन्ना से कैसे कहे?और कह भी दे तो क्या मुन्ना उनके पिछले व्यवहार के कारण उनका लोन पास करेगा?इस बीच चपरासी द्वारा विजय जी की लोन फ़ाइल मुन्ना के पास आ गयी थी।विजय जी सकुचाते हुए चाय पी जरूर रहे थे,पर उन पर मुन्ना के कारण उनका काम नही हो पायेगा,सोच हावी थी। किसी प्रकार चाय समाप्त हुई, विजय अपना काम मुन्ना को बता न सके,

इस कहानी को भी पढ़ें: 

*घर वापसी* – डॉ आरती द्विवेदी : Moral Stories in Hindi

और उठ लिये,मुन्ना बोला,भैय्या माँ कैसी है?विजय बोला मुन्ना वे तो पिछले वर्ष ही चल बसी थी।सुनकर मुन्ना को धक्का लगा,क्या वह इस लायक भी नही था कि जो उन्हें मां के स्वर्गवास की सूचना तक भी दे दी जाती, फिर मुन्ना ने सोचा कि इन्हें क्या पता था कि मैं कहाँ हूँ।मुन्ना मां जी के स्वर्गवासी होने का समाचार

सुनकर सर पर हाथ रख कुर्सी पर बैठ गया।विजय जी निराशा में वहां से चल दिये।तभी मुन्ना बोला भैय्या मैंने आपकी फ़ाइल पर हस्ताक्षर कर दिये हैं, आपका लोन सेंक्शन हो जायेगा, आप निश्चिंत रहे।विजय जी फिर चौंक गये थे,ये मुन्ना इतना बड़ा हो गया,शायद ये उनसे बड़ा पहले से ही था,बस वे ही पहचान नही पाये थे।सच मे मुन्ना को पहचाना था तो मनमोहन जी ने.

          असमंजस, ग्लानि से भरे विजय जी ने आगे बढ़कर मुन्ना का हाथ अपने हाथ मे लेकर दबा दिया।वे अपने सामने एक ऐसे बदकिस्मत को देख रहे थे जिसने अपने बल पर अपनी किस्मत की  लकीर अपने आप खींची थी।गर्दन झुकाये विजय जी मुन्ना के केबिन से बाहर निकल आये।बाहर आकर उन्होंने एक बार मुड़कर मुन्ना के केबिन ओर देखा तो विजय जी निगाह वहां लगी नेम प्लेट पर पड़ी जिस पर नाम लिखा था- मानवेन्द्र सिंह

     ओह तो मुन्ना का नाम मानवेन्द्र सिंह है।मुन्ना से मानवेन्द्र सिंह का सफर उसने अपने बलबूते से ही तो तय किया था।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

#भाग्यहीन साप्ताहिक विषय पर आधारित कहानी:

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!