कर्मयोगी –  रीता मिश्रा तिवारी

“रवि! बेटा कुछ बात करनी थी”?

 

“जी मां!” लैपटॉप पर नजरें गड़ाए हुए बोला “आपको इजाजत लेने की कब से जरुरत पड़ने लगी? कहिए कोई खास बात है?”

 

“हां बहुत ही खास है। बेटा! उम्र हो चली है मेरी..क्या पता कब बुलावा आ जाय। हमेशा लैपटॉप में घुसे क्या करते रहते हो?सुन भी रहे हो मैं क्या कह रही हूं?”

 

“हां…सुन रहा हूं “आँखें बदस्तूर लैपटॉप पर टिकी थी उसकी।

 

“तुम पैंतीस के हो गए अब शादी नहीं करोगे तो कब करोगे ?मामाजी का फ़ोन आया था। कह रहे थे उनके दोस्त की बेटी है । बहुत सुंदर गोरी,सुशील,संस्कारी सर्व गुण संपन्न है। और हां वो तेरे जैसी ही कर्मयोगिनी है।”

“कर्मयोगिनि! मतलब?”

“जैसे तुम हो कर्मयोगी अपने काम में समर्पित…वो लड़की है तो कर्मयोगिनी हुई न ,और मुंह दबा कर हँस पड़ी। अरे तुम जैसे न जाने कितने कलक्टर, डॉक्टर, इंजीनियर,एसपी तैयार किया है उसने। पढ़ाती है प्रोफेसर है।

मैं अब थक गई हूं जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती हूं ।घर में बहु आ जाए तो सारी जिम्मेदारी उसे सौंप मैं निश्चिंत हो वृंदावन जाकर भगवत भजन में समय बिताऊं।”

 

“ठीक है कर लीजिए पूरी अपनी मुराद। पर एक शर्त है कम आदमी कम खर्च और साधारण ढंग से नहीं तो शादी नहीं होगी।”

बहू का गृह प्रवेश कर आज खुशी से फूले न समा रही थी।

सुबह सुबह बहु पूजा करके किचन में जाकर चाय नाश्ता बना लाई।

तभी रवि का फ़ोन बजने लगा। 

” मां ! मुझे अभी निकलना होगा। शहर के निचले हिस्से में कभी भी बाढ़ आ सकता है। हाय अलर्ट का नोटिस तो जारी कर दिया है। लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना है।”


 

” बेटा ! शादी का कंगन खोले बिना आज कहीं नहीं जा सकते हो।”

 

“मां! मैं कलक्टर हूं देश और नागरिक की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है।आप अपनी जिम्मेदारी निभाइए मुझे मेरी निभाने दीजिए।”

 

 “बेटा ! रस्म तो पूरा कर लो “।

 

” वक्त नहीं है मेरे पास अभी मुझे जाने दीजिए आकर सारे रस्म कर लूंगा”।

 

आधी रात हो गई रवि का कुछ अता पता नहीं था।फोन भी भी स्विच ऑफ आ रहा था। बिजली भी नहीं थी जो TV देखकर शहर की हालत का कुछ पता चलता।

मन आशंका से डूबा सोचते सोचते आँख जाने कब लग गई। कॉलवेल की आवाज़ सुन दरवाजा खोलते ही सामने खड़ा पुलिस ने बताया की…बहुत तेजी से बाढ़ आया और एक बूढ़ी और बच्ची को बचाने में सर बह गए…बहाव इतना तेज़ था कि..बहुत कोशिश की पर नहीं बचा पाए।

 

हाय…ये कैसी जिम्मेदारी से मुक्त हुई। ये…ये कंगन बहू चिंता न कर वो आएगा , बोल कर गया है की आकर सारी रस्म पूरी करेगा । वो आएगा वो आएगा ।

बहू अपने अश्रुपूरित नेत्रों को पोंछते हुए सास को बाहों में समेट कर गले लगा ली ।

 

  

 रीता मिश्रा तिवारी

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