जमाधवी जी के दो बेटे थे। दोनों की नौकरी लग गई थी, वे शादी लायक हो गए थे। माधवी जी की हार्दिक इच्छा थी, कि लड़को का विवाह उनकी बिरादरी में हो। उन्हें लगता था, कि गैर समाज में अगर बेटो की शादी हुई तो उनकी नाक कट जाएगी, इज्जत धूल में मिल जाएगी।
बड़े बेटे का विवाह समाज में उनकी इच्छा के अनुरूप हुआ। वे अपनी बहू आरती को बहुत प्यार से रखती और आरती भी मम्मी जी मम्मी जी करके आगे पीछे घूमती रहती। दोनों मिलकर घर के काम काज कर लेती। माधवी जी बहुत खुश थी, और बहू की तारीफ करते नहीं थकती थी।
छोटा बेटा राजू दूसरे समाज की लड़की पूजा को चाहता था, और उसकी जिद थी, कि वह शादी करेगा तो उसी से करेगा, नहीं तो नहीं करेगा। रघुनाथ जी ने माधवी को बहुत समझाया कि हमारे बेटे की खुशी में ही हमारी खुशी है। बड़ी मुश्किल से वे इस शादी के लिए मानी।
शादी हो गई मगर माधवी जी का पूरा झुकाव आरती की तरफ था, वे पूजा को बिलकुल पसन्द नहीं करती थी। पूजा एक समझदार और संस्कारी लड़की थी,और हर काम मन लगाकर करती थी। एक दिन माधवी जी नहाकर निकली तो उनका पैर फिसल गया।
उन्होंने आरती को आवाज लगाई मगर वो बाजार गई थी, पूजा दौड़कर आई उन्हें सहारा देकर उठाया और धीरे से पलंग पर बिठाया। आवाज सुनकर रघुनाथ जी और बड़ा बेटा राकेश भी आ गए। राकेश ने गाड़ी निकाली और उन्हें अस्पताल ले गए। पूजा भी साथ में गई,
उसने राजू और आरती को फोन लगाकर पूरी बात बताई, वे भी अस्पताल आ गए। उनके पैर की हड्डी में फ्रेक्चर हो गया था। डॉक्टर ने डेड़ महिने का बेडरेस्ट करने के लिए कहा। घर आने के बाद आरती बहाना बनाकर अपने मायके चली गई।
माधवी जी ने कहा भी कि मेरी देखरेख कौन करेगा तो वह बोली ‘मैं दो दिन में वापस आ जाऊँगी।’ पूजा ने माधवी जी की बहुत सेवा की। वे असमर्थ थी अत: उनके सारे कार्य नहाना धोना सब उसने बिस्तर पर करवाए जरा भी परहेज नहीं किया। आरती दो महीने तक नहीं आई।
माधवी जी ने सोचा आरती दुख के समय मुझे छोड़कर चली गई, वह मेरे किस काम की कितना प्यार दिया मैंने उसे। आज आरती अपने कर्मों के कारण उनकी ऑंखों से गिर गई थी।पूजा की सेवा का परिणाम था कि माधवी जी पूर्णरूप से स्वस्थ हो गई। दो महिने के बाद आरती वापस आई,
उसने माधवी जी के पैर छूए और पूछा ‘मम्मी जी अब आपकी तबियत कैसी है?’ माधवी जी कुछ नहीं बोली न आशीर्वाद दिया। तब आरती ने कहा ‘मम्मी जी आप मुझसे नाराज है क्या? वो हुआ यूँ…..। ‘माधवी जी ने बात काटते हुए कहा ‘वो जो भी हुआ हो तूने जाने के बाद एक फोन भी नहीं लगाया।
मैं बस इतना जानती हूँ जिसने बुरे समय में मेरा साथ दिया वह मेरा है। माधवी जी ने परिवार के सब लोगों को सुनाते हुए कहा कि पूजा मेरी प्यारी बहू है। उसने जी जान से मेरी सेवा की। मैं पर वश थी एक बच्चे की तरह सम्हाला उसने मुझे, गन्दगी से क्या उसे परेशानी नहीं होती होगी
मगर उसने कभी परहेज नहीं किया। उसने प्यार से अपना हाथ पूजा के सिर पर रखा और फिर राजू से बोली बेटा मैं गलत थी, मुझे तेरी पसन्द पर गर्व है, पूजा ने अपने कर्म से माधवी जी का दिल जीत लिया और आरती अपने कर्मों के कारण उनकी ऑंखों से गिर गई। आज आरती अपनी नजरें ऊपर नहीं कर पा रही थी उसे अपने कर्म के कारण शर्मिंदा होना पड़ा।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित