कर्मो का हिसाब – संगीता त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : जब से समारोह से प्रकाश जी आये कुछ अनमने से दिख रहे थे, लतिका ने पूछा भी “तबियत ठीक है “..।

   “थोड़ा सरदर्द है आराम करूँगा तो ठीक हो जायेगा, “कहते हुये वे बैडरूम में चले गये, कपड़े बदल बिस्तर पर लेटते ही फिर समारोह उनके सामने चलचित्र की तरह घूमने लगा।जाने क्यों काव्या से उन्हें एक अलग सा खिचाव महसूस हो रहा था,।

सुरीली आवाज भी कितनी सशक्त हो सकती है, इसका आभास काव्या की आवाज ने उन्हें कराया। काव्या का आत्मविश्वास देख वे प्रभावित थे… कहीं अदृश्य से कुछ अक्स उनकी आँखों के सामने आ गये।

   नई फैक्ट्री के उद्घाटन के लिये बेटे ललित ने एस. डी. एम. काव्या को बुलाया था, प्रकाश जी ने विरोध करते कहा भी,”किसी मंत्री को बुलाते है, एस. डी. एम. की क्या जरूरत है “

   “पापा आप नहीं जानते, नई एस. डी. एम. काव्या बहुत ही धाकड़ अधिकारी है, उससे दोस्ती हमारे हित में रहेगी .”कह कर ललित ने उनके प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया। लतिका बोली,”अब बच्चों का अपना निर्णय है, ये सब छोड़ो..ये उसे सँभालने दो…,आप तो आराम करो “

 लतिका और ललित धीरे -धीरे उनके सारे कारोबार पर अपना अधिकार जमाते जा रहे। लतिका को डर था कहीं इतनी बड़ी संपत्ति का,कोई और हिस्सा ना मांगने लगे।

         आज बिस्तर उन्हें शूल की भांति चुभ रहा था, जब से ये बिस्तर उन्होंने रति से छीन कर लतिका को दिया, उनका चैन भी खो गया।

            यहाँ से जाते समय मृगनैनी सी बड़ी आँखों ने सिर्फ एक बार उन्हें देखा था, फिर पलट कर बेटियों का हाथ पकड़ सधे कदमों से चली गई। बचा भी क्या था वहाँ, प्रकाश जी की उपेक्षा , फिर भी पति परमेश्वर है, ये मान रति उनकी और माँ की सेवा दिल से करती। बढ़ती सफलता और आधुनिकता की दौड़ में रति कहीं पीछे छूट गई,

रति माँ की पसंद थी, नाम के अनुरूप दबा रंग, पर तीखे नाक -नक्श की स्वामिनी थी, लहराते काले बाल और खूबसूरत ऑंखें किसी का भी मन मोह लेती,संस्कारों के गहने से सज्जित रति माँ उमा देवी को पहली नजर में भा गई थी,

पर नाम के अनुरूप उज्ज्वल प्रकाश जी, रति का रंग देख थोड़ा हिचकिचा रहे थे, शादी से इंकार कर दिया था, माँ ने अनशन कर दिया इस घर में रति ही बहू बन कर आयेगी। आखिर माँ के आगे प्रकाश जी हार गये और रति इस घर की बहू बन आ गई।

     प्रकाश जी रति से विवाह तो कर लिये पर घर और रति दोनों से दूर रहने लगे,लेकिन रति उनका बहुत ख्याल रखती।एक दिन सर्दी से तबियत खराब होने से वे जल्दी वापस आ गये,रति उनके लिये काढ़ा बना कर लाई और सर दबाने लगी,खुले बालों में रति का चेहरा देख वे अपना संयम खो बैठे…।

      कुछ दिनों बाद घर में नन्हे मेहमान के आने की आहट से उमा देवी खुश हो गई, उन्हें लगा सब कुछ ठीक हो गया… लेकिन उन्ही दिनों ऑफिस में आई खूबसूरत सेक्रेटरी लतिका के मोहपाश में प्रकाश जी फंस गये।

    नियत समय पर जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया, दोनों बेटियों का रंग रति जैसा देख प्रकाश जी का मन विरक्त हो गया,एक तो लड़की ऊपर से दबे रंग की… कैसे लोगों को बताएँगे ये उनकी लड़कियाँ है, बेटा होता तो संपत्ति संभालता, लड़कियाँ तो दूसरे घर चली जायेंगी।

    प्रकाश जी अब रति की ही नहीं माँ की भी उपेक्षा करने लगे,कुछ समय बाद माँ चली गई,अब प्रकाश जी आजाद थे, एक दिन लतिका से विवाह कर घर ले आये, रति को बोले, तुम चाहो तो यहाँ रह सकती हो पर मेरा बैडरूम तुम्हे छोड़ना होगा।

      रति ने बिना कुछ बोले दोनों बच्चों का हाथ पकड़ उस देहरी को लाँघ गई, जहाँ दुल्हन बन आई थी,समझौता भी किस लिये करती…।

   ना प्रकाश जी ने कोई खोज खबर ली, ना रति ने कोई पहल की, प्रकाश जी सुन्दर लतिका को पा अपने को भाग्यशाली समझने लगे।

          कुछ समय बाद लतिका एक बेटे ललित की माँ बनी, बेटे को देख प्रकाश जी बहुत खुश थे।उनकी मनोकामना पूरी हो गई, उनकी संपत्ति का वारिस जो आ गया। लतिका का स्थान और ऊंचा हो गया। धीरे -धीरे लतिका ने उनसे बहुत कुछ संपत्ति अपने और बेटे के नाम करा लिया।

       प्रकाश जी सब कुछ समझ रहे थे पर कुछ कह नहीं पाते, कुछ कहते ही लतिका बोल पड़ती “आपने जैसे रति को घर से निकाल दिया कभी मुझे निकाल दिया तो मै कहाँ जाऊँगी, अपना भविष्य सुरक्षित कर रही हूँ “

     प्रकाश जी निरुतर हो जाते, लतिका उन्हें सच का आईना ही तो दिखा रही..। समय पलट चुका था..बीमार प्रकाश जी अब उपेक्षा के शिकार वे बन रहे थे, लतिका अपनी सहेलियों और किट्टी पार्टी में व्यस्त तो ललित अपने दोस्तों में व्यस्त….।

    आज काव्या को देख जाने क्यों उन्हें रति की याद आई। बीते सालों में उन्होंने रति का हाल -चाल जानने की कोशिश नहीं की। ना जाने रति कहाँ होगी..।

     तनाव से उनका सर फटने लगा, किसी तरह दरवाजे तक पहुँच पाये, रामू काका को आवाज लगाने को मुँह खोला… उसके बाद उन्हें कुछ याद नहीं।

   आँखों खुली तो अस्पताल में थे… पास में रामू काका बैठे थे, उनकी प्रश्नवाचक दृष्टि देख वे बोले, बहू रानी को फोन किया है आ रही होंगीं.. “लेकिन घंटे दिन में बीत गये कोई नहीं आया बस रामू काका से फोन से पूछ लिया जाता।

      आज वो डॉ. आने वाली है, जिनकी वजह से प्रकाश जी की जान बची.., सामने डॉ. को देख एक पल को प्रकाश जी हतप्रभ थे, उनके बोलने से पहले डॉ. बोली,”मै डॉ.प्रीति हूँ,”

    प्रकाश जी ने गहरी सांस ली, क्यों हर पल उन्हें रति याद आ रही, हर एक में वे रति का अक्स देख रहे…। दुबारा देखा… ये हूबहू रति की कॉपी है…।

         “डॉ साहिबा, आपके माता -पिता कितने भाग्यशाली होंगे जो आप जैसी संतान को जन्म दिया…”

         “वे नहीं मै भाग्यशाली हूँ जो मुझे इतनी प्यारी माँ मिली..”डॉ. प्रीति ने कहा

        .”पिता नहीं..”कुछ हकलाते हुये प्रकाश जी ने पूछा…।

        “मेरे पिता नहीं है…”

       “ओह… माफ करना बेटी, मै भी तुम्हारे पिता जैसा हूँ…”

       “हमें पिता की जरूरत ही नहीं क्योंकि मेरी माँ, अपने में बहुत सशक्त है,इसलिये मुझे और मेरी एस. डी. एम. बहन काव्या को पिता की जरूरत ही नहीं..’डॉ. प्रीति ने कहा।

  प्रकाश जी समझ गये, क्यों काव्या की ओर उनका मन खिच रहा था,…डॉ. तो चली गई पर प्रकाश जी के आँसू अपना बांध तोड़ बह गये,

दुनिया कितनी विचित्र है, कब, कौन कहाँ मिलेगा, कोई नहीं जानता…।प्रकाश जी ठीक हो गये घर जाने से पहले उन्होंने डॉ. प्रीति से उनकी माँ से मिलने की इच्छा जताई…।

    अगले दिन प्रीति अपनी माँ को मिलवाने ले आई… रति को सामने देख प्रकाश जी संयम खो बैठे.. दोनों हाथ जोड़ दिया…. रति कुछ ना बोली बस उसी तरह पलट कर वापस चली गई जैसे तीस साल पहले गई थी…।वो उपेक्षा मय सूद प्रकाश जी को वापस कर गई।

   काव्या एस. डी. एम. तो दूसरी प्रीति ह्रदय रोग विशेषज्ञ बनी, जो बेटियाँ रंग की वजह से उपेक्षित हुई, वही बेटियाँ परिश्रम की आग में तप कर कुंदन की तरह चमक रही थी…।

   प्रकाश जी के कर्म ने उनका हिसाब -किताब कर दिया, लतिका और ललित ने उन्हें अपने जीवन से बाहर कर दिया..।

                            —संगीता त्रिपाठी 

 #उपेक्षा..

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