कर्मो का फल – रीटा मक्कड़

अपनी ज़िंदगी में बहुत से लोगों को बजुर्गों की सेवा करते और उनका आशीर्वाद लेते और फिर बजुर्गों के दिल से निकली दुआओं को फलते फूलते तो बहुत देखा लेकिन जो लोग बजुर्गों की सेवा तो क्या करनी उनको तंग करते हैं उनका क्या हाल होता है इस को घटित होते हुए भी बहुत करीब से देखा है

कुछ दिन पहले की बात है मैं अपने भाई के घर यानी अपने मायके गयी।वहां अपनी मम्मी और भाभी के साथ बैठ कर बातें कर रही थी।कि बाहर की घण्टी बजी देखा तो एक औरत अंदर आयी बड़ी दीन हीन सी लग रही थी। सादे से कपड़े, कैंची चप्पल, मैं एक दम से तो उसको पहचान ही नही पायी।

भाभी ने जब उसको पानी दिया तब मम्मी ने बताया कि ये नीलिमा है पहचाना नही तुमने?

मैं तो एक दम से हैरान ही रह गयी देख कर के ये वो ही नीलिमा भाभी है जिसके कभी शाही ठाठ हुआ करते थे।मेरी शादी से पहले नीलिमा भाभी का और हमारा परिवार एक ही गली में रहते थे।

एक दूसरे के घर आना जाना भी था क्योंकि दूर की रिश्तेदारी भी थी। मेरी शादी के बाद मेरे दोनो भाईयों ने वो मोहल्ला छोड़ दिया और अपने अपने घर दूसरी जगह पर बना लिए।

नीलिमा की शादी  तो मेरे सामने ही हुई थी ।उसकी सास कितने चाव से बहु ले कर आई थी ।बेटे की शादी के कितने ही सपने देखे होंगे उसने।बहु के आने से ऐसा लग रहा था कि जैसे उसको जमाने भर की खुशियाँ मिल गयी हों।

लेकिन ईशवर की मर्जी थी या शायद उसके भाग्य में ये खुशियां थोड़े दिन के लिए ही थी कि शादी के दो ही महीने बाद वो रात को सोई तो सुबह उठी ही नही। तब तो सबको लग रहा था कि बहु को बहुत दुख हुआ है सासु माँ के जाने का ,बहुत जोर जोर से रो रही थी।


लेकिन सास के जाते ही बहु ने अपने असली रंग दिखाने शुरू कर दिए। घर की मालकिन तो वो बन ही गयी थी लेकिन उसके अंदर जो गरूर था वो भी अब बाहर आने लगा। बात बात पर सब से लड़ पड़ती। ससुर का तो उसने जीना हराम कर दिया।

वो बेचारे एक तो असमय जीवन साथी का बिछोह, ऊपर से बहु के जुल्म बुढ़ापे में सहने को मजबूर हो गए थे। एक समय पर बहुत खुशदिल इंसान अब बेचारे को देखकर ही तरस आता था। बहु ने घर के मालिक होते हुए भी उन्हें तीसरी मंजिल पर एक छोटे से कमरे में रहने को मजबूर कर दिया था।

फिर येभी सुना कि बहु उन्हें पेटभर खाना भी नही देती और न ही उनके कपड़े धो कर देती है। बेचारे मैले कुचैले कपड़ों में कभी गली में आते तो ही दिखते लेकिन किसी से ज्यादा बात नही करते। जैसे ज़िन्दगी से रूष्ट हो गए हों।लेकिन बहु बिना बात के ही उन पर चिल्लाती रहती। कब तक सहते बेचारे। एक दिन वो भी चुपचाप चल दिये इस दुनिया को अलविदा कह कर।

नीलिमा को मेरी भाभी ओर मम्मी ने कुछ कपड़े और खाने पीने का समान दिया ।चाय पिलाई और वो चुपचाप चली गयी। जितनी देर वो बैठी एक अक्षर भी नही बोली उसने जितनी भी बात की इशारे से ही की।

उसके जाने के बाद मम्मी ने बताया कि ससुर के जाने के कुछ समय बाद ही नीलिमा की उल्टी गिनती शुरू हो गयी। पहले तो उसके पति को बिज़नेस में घाटा पड़ गया और उस पर कर्जा चढ़ गया।और इसी के चलते उन्हें अपनी दुकान ओर मकान दोनो बेचने पड़े।

पति ने कही नोकरी कर ली और किराये के घर मे आ गए।नीलिमा के तीन बेटे थे। बड़ा बेटा अभी कॉलेज में था और उससे छोटा बारहवीं कक्षा में कि एक दिन उसके पति अपने आफिस गए और अचानक से चक्कर आया और गिर गए

और फिर उठे ही नही। मुसीबतों का जैसे उन पर पहाड़ टूट पड़ा। किसी तरह किसी पहचान वाले को बोल कर बड़े बेटे की पढ़ाई छुड़ा कर नोकरी लगवाई ओर फिर दूसरे बेटे को भी पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि एक की तनख्वाह से घर का गुजारा ही नही हो रहा था तो पढ़ाई का खर्चा कैसे पूरा होता।

ओर एक दिन नीलिमा को इन्ही सब टेंशनो के चलते पैरालिसिस का अटैक आया। मायके वालों की मदद से दवाईयों ओर इलाज से वो थोड़ी बहुत ठीक तो हो गयी लेकिन उसकी जुबान चली गयी।

अब ये हाल है कि बेटे भी उसको नही पूछते ना ही कुछ खर्चादेते हैं।एक कमरे में अलग से रखा हुआ है जहां वोअकेली पड़ी रहती है। कभी कभी मेरे भाई के घर आ कर जरूरत का समान ले जाती है। वहां आने के लिए भी ऑटो वाले को समझाने के लिए घर से लिख कर ले आती है। मम्मी कहते कि जब रोती है तो सिर्फ आंसू ही बहते है क्योंकि आवाज तो भगवान ने छीन ही ली।

जिस मुँह से उसने ससुर को गालियां दी होंगी आज उसमे बोलने की शक्ति भी नही बची। सच मे  घर के बजुर्गों का दिल दुखाने वाला इन्सान कभी न कभी तो अपने कर्मो का भुगतान  अवश्य करता है ये तो आंखों से देख लिया।

स्वलिखत एवं मौलिक

रीटा मक्कड़

 

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