Moral Stories in Hindi : आज दीपेश सुबह से ही बहुत जल्दी में था, उसका इंटरव्यू जो था। लिखित परीक्षा तो ठीकठाक हो गयी थी और परिणाम भी अनुकूल आया था परंतु कठिनाई तो इंटरव्यू में ही आनी थी क्योंकि वह भगवान की पूजा अर्चना कर के अति विश्वासी हो चला था और एक तरह से आज उन्हीं के भरोसे ये इंटरव्यू देने जा रहा था। सारे कागजात ठीक से रखने के बाद दीपेश ने शीघ्रता से नहाधोकर अपने घर में बने हुए मंदिर में घंटी बजाकर भगवान राम की छोटी सी सुंदर मूर्ति पर तिलक लगाकर उन्हें भोग भी लगा दिया और इंटरव्यू के लिये घर से निकलने को स्वयं तैयार होने लगा।
अब वह बहुत निश्चिंत नजर आ रहा था। दिनेशजी ये सब बहुत ध्यान से देख रहे थे और बिल्कुल प्रसन्न नहीं थे। ऐसा नहीं था कि उन्हें पूजापाठ में बिल्कुल आस्था नहीं थी, बल्कि वो तो रामजी के परमभक्त थे और हजारों अन्य भक्तों की तरह उन्होंने रामलला की प्रतिष्ठा के लिये स्वयं संघर्ष किया था, यहाँ तक कि स्वयं गोली भी खायी थी, ये तो उनका सौभाग्य रहा कि उसदिन गोली सिरपर न लगकर कंधे को छूती हुयी निकल गयी और वह बच गये।
लेकिन पुत्र दीपेश की भक्ति के नाम पर की गयी ये अकर्मण्यता उन्हें बिल्कुल भी नहीं भाती थी और सच पूछो तो उन्हें इसमें भक्ति भी कहीं नहीं नजर आती थी क्योंकि दिनेश जी पूरे जीवन अपने जिस आराध्य राम जी को पूजते आये थे वो तो स्वयं कर्तव्यपरायणता का ऐसा उदाहरण थे जिसका पर्याय मिलना ही दूभर है और उनका पुत्र थोड़े से पूजापाठ के पश्चात सबकुछ भगवान के ऊपर ही छोड़ देता था मानो थोड़ी सी पूजा करके उसे उनसे अपना काम निकलवाने का अधिकार मिल गया हो।
ये सत्य था कि दिनेश जी के घर का माहौल ही आस्था से परिपूर्ण था। वे स्वयं तो ईश्वर के प्रति निष्ठावान थे ही उनकी धर्मपत्नी भी बहुत आस्थावान थीं परंतु पुत्र दीपेश ने भगवान की भक्ति का अर्थ ही गलत समझा था।
अपना काम पूरा न होने पर वह भगवान को दोषी मानने से भी नहीं चूकता था। दिनेश जी अक्सर प्रयास भी करते परन्तु भक्ति और स्वार्थ का अंतर दीपेश की समझ में नहीं आ पाता था।
घर से जाते समय दीपेश उनके और अपनी माँ के चरणस्पर्श करने भी आया परंतु उस वक्त उसपर टीका टिप्पणी करके उसके मन में किसी प्रकार का संदेह पैदा करना उन्हें उचित नहीं लगा हाँलाकि मन ही मन उसकी सफलता को लेकर वे आश्वस्त नहीं हो पा रहे थे क्योंकि उनके पुत्र ने मेहनत नहीं की है इस बात से वे अनभिज्ञ नहीं थे।
और फिर वही हुआ जिसका डर था। इन्टरव्यू बिल्कुल अच्छा नहीं हुआ था और दीपेश का मुँह लटकाकर घर लौटना ही इंटरव्यू की सारी कहानी कह गया।
पूछने पर दीपेश दुखी होकर बोला-
“पता नहीं कौनसी कमी रह गयी मेरी पूजा में। मैंने तो धूपदीप, भोग, आरती सभी कुछ किया परंतु रामजी को कुछ पसंद ही नहीं आया होगा शायद जो आज भी मैं असफल हो गया।”
अब दिनेश जी से रहा नहीं गया और उन्होंने कहा-
“बेटा तुम्हें पहले भी बहुत बार समझाया है और आज फिर कह रहा हूँ कि कर्म करो और फल ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दो। लेकिन तुम बिना मेहनत संघर्ष किये हमेशा बस फल की इच्छा ही करते दिखाई देते हो। शायद तुम्हें लगता है कि तुम्हारे दिये गये प्रलोभन ईश्वर को तुम्हारे मनमुताबिक काम करने को मजबूर कर सकते हैं। तुम्हें समझना होगा कि इस संसार को सुचारु रुप से चलाने के लिये हम सबसे ऊपर वो विधाता बैठा है लेकिन अपना भाग्य विधाता तो हमें स्वयं बनना ही पड़ता है और ईश्वर भी हमसे यही अपेक्षा करते हैं। तुमने सुना नहीं है क्या कि भगवान भी उन्हीं की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं।”
“मैंने सुना है पापा पर मैंने ये भी तो सुना है कि भगवान अपने भक्तों की पुकार जरूर सुनते हैं फिर वो मेरी क्यों नहीं सुनते, अब तो मुझे संदेह होने लगा है कि या तो भगवान हैं ही नहीं या उन्हें अपने भक्तों की परवाह ही नहीं।”
तनिक क्रोध में जैसे ही दीपेश ने यह कहा दिनेश जी व्यंग्य से हँसने लगे। फिर जरा रुककर बोले-
“बेटा तुम जो ये करते हो बस इसी को भक्ति समझते हो? अरे सच्चा भक्त तो अपने भगवान पर कभी संदेह कर ही नहीं सकता। ये संसार हमारी कर्मभूमि है और हम यहाँ अपने हिस्से के कर्म करने ही आते हैं फिर किसी की अकर्मण्यता उस भगवान को कैसे पसंद आयेगी जो स्वयं ही मानव रूप मेें जन्म लेने के पश्चात पूरे जीवन अपने लिये निर्धारित कर्म ही करता रहा हो?
राम ही जाने कि वह सचमुच विधाता के अवतार थे या अपने सत्कर्मों के द्वारा उन्होंने जो ख्याति प्राप्त की उसी ने उन्हें विधाता स्वरूप में पूजनीय बना दिया, परंतु सत्य यही है कि मानव रूप में उनका पूरा जीवन स्वयं कठिन परीक्षायें देते हुए ही बीता। उनको आराध्य मानकर उनकी उपासना अवश्य करो, मैं भी करता हूँ लेकिन सच्चा भक्त कहलाने का अधिकार तुम्हें तभी होगा जब उस विधाता के आदर्शों पर चलकर अपने भाग्य विधाता स्वयं बन सको।”
इतना कहकर दिनेश जी ने दीपेश पर एक गहरी भरपूर नजर डाली। दीपेश आज सचमुच अपने पिता की बातों से प्रभावित हुआ लगता था। उसकी आँखों में आज दृढ़संकल्प की झलक साफ साफ दिखाई दे रही थी। दिनेश जी ने चैन की साँसें लेते हुए उसका सिर थपथपाया और संध्या वंदन के लिये उठ खड़े हुए, उन्हें रामजी का धन्यवाद भी तो करना था कि उनका पुत्र आज कर्म का महत्व समझ सका था।
#भाग्यविधाता
अर्चना सक्सेना