एक बार की बात है एक नगर में एक सेठ रहता था शादी के बहुत सालों की बाद उसे संतान प्राप्ति हुई. इस खुशी में उसने एक बहुत बड़े साधु महात्मा को अपने यहां प्रवचन करने के लिए बुलाया. महात्मा जी के प्रवचन को सुनने के लिए उसने अपने सारे रिश्तेदारों और अपने गांव के सभी लोगों को भी निमंत्रित किया था.
प्रवचन सुनने के लिए सब लोग उपस्थित हो चुके थे लेकिन सिर्फ सेठ दिखाई नहीं दे रहा था जितने भी लोग आए थे आपस में यही बात कर रहे थे कि यह कैसा प्रवचन है सेठ प्रवचन कराने के लिए महात्मा जी को बुलाया और स्वयं ही दिखाई नहीं दे रहा है.
महात्मा जी ने प्रवचन को खत्म किया और शाम को अपने विश्राम गृह में आराम करने के लिए लौट गए. रात के 10:00 बजे सेठ महात्मा जी के विश्राम गृह में पहुंचा और उनसे क्षमा मांगा.
महात्मा जी ने कहा सेठ बद्रीनाथ तुम कहां चले गए थे सब लोग तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे थे। सेठ ने कहा महाराज बात यह है कि मैंने प्रवचन की सारी व्यवस्था तो कर दी थी पर तभी मेरा प्यारा पालतू कुत्ता बीमार हो गया। मैंने उसे बहुत सारे घरेलू उपचार किया लेकिन वह ठीक नहीं हुआ उसकी तबियत और ज्यादा बिगड़ने लगा तो मैं दूसरे गांव में जानवरों के वैद्य के पास इलाज के लिए लेकर गया। अगर मैं उसको इलाज के लिए नहीं ले जाता तो शायद वह बच नहीं पाता। महाराज आप का प्रवचन तो मैं अगले दिन भी सुन लेता लेकिन उसे कुछ हो जाता तो मुझे बहुत पाप लगता.
जानबूझकर मैंने इसका इलाज नहीं कराया.
अगले दिन महात्मा जी जब प्रवचन सुनाने के लिए बैठे उस दिन भी सेठ नहीं दिखाई दे रहा था तो गांव वालों ने महात्मा जी से कहा यह कैसा आपका भक्त है जो प्रवचन का आयोजन स्वयं किया है लेकिन वह खुद मौजूद नहीं है यह दिखावा किस काम का इससे अच्छा तो प्रवचन ही नहीं करवाता। .
महात्मा जी ने जितने भी व्यक्ति प्रवचन सुनने आए थे सबको समझाया उन्होंने कहा कि सेठ की कोई गलती नहीं है बल्कि वह तो हम लोगों से भी अच्छा है। मैंने हमेशा अपने प्रवचन में कर्म को महत्व दिया है और सेठ ने इस बात को सिद्ध कर दिया है. ऐसे लोगों को प्रवचन सुनने की कोई आवश्यकता नहीं है.
मैं तो यही सब लोगों को अपने प्रवचन में समझाता हूं कि आप अपने विवेक और बुद्धिमता से यह सोचो कि आपको सबसे पहले कौन सा कार्य करना चाहिए। अगर सेठ अपने बीमार कुत्ते को छोड़कर मेरा प्रवचन सुनने को प्राथमिकता देता तो शायद दवा के बगैर उसके कुत्ते का प्राण पखेरू उड़ जाते।
उसके बाद तो मेरा प्रवचन का कोई मायने ही नहीं रह जाता। भक्तजनों मेरे प्रवचन का तो सारांश यही है कि इंसान को सब कुछ त्याग कर जीव मात्र की सेवा करना चाहिए। इस घटना के माध्यम से जितने भी प्रवचन सुनने व्यक्ति आए थे उस दिन के बाद से यह समझ गए कि इंसान को अपने कर्म की को प्राथमिकता देना चाहिए। जो प्रवचन के माध्यम से सुनता है उसको अपने जीवन में लागू भी करना चाहिए सिर्फ भगवान की भक्ति करने से नहीं होता है। किसी भी जीव की सेवा करना भगवान की सबसे बड़ी सेवा है अगर आप किसी को हानि पहुंचाते हैं आप चाहे कितना भी पूजा-पाठ कर लें आपको उसका फल नहीं मिलने वाला प्राणी मात्र का सेवा ही एकमात्र ईश्वर की सेवा है।