अब तक आपने पढ़ा……
उर्वशी अपने पंकज जीजाजी और वंदना दीदी को हनीमून में शिमला और कुफ़री घुमाने ले जाती है, उनके सुनहरे पलों को कैमरे में सुरक्षित करती है, उनके साथ मॉल रोड घूमते समय किसी वॉयलिन वादक के गीत को सुनकर उसे वंदना दीदी के विवाह में गाना गाने वाले युवक की याद आती है, जिसकी जानकारी वह अपने पंकज जीजाजी से लेने की नाकाम कोशिश करती है..
अब आगें..
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दूसरे दिन सुबह ही वंदना दीदी और पंकज जीजाजी अपने होटल से वापस गुड़गांव के लिए रवाना होकर अपने जीवनभर यादगार रहने वाले “हनीमून ट्रिप” का समापन करतें हैं।
गुड़गांव पहुंच कर वंदना दीदी पंकज जीजाजी के साथ नव दाम्पत्य जीवन की सुखमय शुरुआत करते हैं। इधर उवर्शी भी अपनी ऑफिस की दिनचर्या में व्यस्त हो जाती हैं।
धीरे-धीरे उसका वंदना दीदी से सुबह शाम होनें वाला बातों का सिलसिला घटकर 2-3 दिन में एकाध फ़ोन का हो चुका था। पर पिताजी से दोनों बेटियों की रोज़ ही रात को बातें किया करतीं थी।
दिसम्बर का महीना ख़त्म होने को था, क्रिसमस के बाद ही पूरा शिमला नववर्ष के स्वागत के लिए सैलानियों से भरा पड़ा था। कहीं भी पैर रखने को जगह नहीं थी, ऐसे में दैनिक उपभोग की सभी वस्तुओं के दाम आसमान छूने लगतें हैं, इस महंगाई से बचने के लिए स्थानीय निवासी अपने खाने-पीने की चीज़ों का हफ़्तों का स्टॉक कर के रख लेतें हैं ।
31 दिसम्बर की रात को बहुत से युवा अपनी मोटरबाइक लहरा लहरा कर अपने जोश का प्रदर्शन कर रहें थे। टेलीविजन पर नाट्य एवम संगीत के प्रोग्राम का सीधा प्रसारण हो रहा था।ठीक 12 बजे आतिशबाजी का जो दौर शुरू हुआ वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा था।
इस प्रकार पूरे हिंदुस्तान ने धूमधाम से 21 वी सदी के अंतिम वर्ष यानी 1999 का भव्य स्वागत किया।
ऑफिस में नव वर्ष के प्रथम दिन बहुत उल्लास का वातावरण था, सभी सहकर्मी मिठाईयां बांटकर एक दूसरे को नव वर्ष की शुभकामनाएं दे रहें थे।
शाम को उर्वशी ने वंदना दीदी और पंकज जीजाजी से फ़ोन पर नववर्ष का अभिवादन किया और शुभकामनाये दी।
एक बार पुनः उर्वशी की दिनचर्या ऑफिस से घर और घर से ऑफिस के दर्मियान सिमट गई।
एक दिन उर्वशी के बॉस कहा कि उसे अगले सोमवार यानी 25 जनवरी को उसे ऑफिस के किसी काम से दिल्ली जाना होगा। उर्वशी कैलेंडर देखकर चहक उठती है, ओह्ह यह तो बहुत बढ़िया मौका हैं वंदना दीदी और जीजाजी के साथ दिल्ली में वक्त बिताने का, वह 23 जनवरी यानी शनिवार को ही ऑफिस छूटने के बाद वंदना दीदी के पास गुड़गांव चली जायेगी, 24 को रविवार है इसलिए हम सब दिल्ली घूमेंगे, 25 को ऑफिस का काम करके, 26 जनवरी की छुट्टी मनाकर उसी रात शिमला वापस आ जायेगी, यानी पूरे 3 दिन मस्ती में गुजरेंगे।
उर्वशी ने ऑफिस से घर लौटते ही वंदना दीदी को यह खबर सुनाई, तो वह भी ख़ुशी से मचल उठी।
दूसरे दिन ही सुबह उर्वशी ने ट्रेवल एजेंट के ऑफिस जाकर उसे चंडीगढ़ से दिल्ली जाने वाली रात की किसी ट्रेन भी का टिकट बुक करने को कहकर अपने ऑफिस का नम्बर देकर दे दिया और कहा कि वह शाम को घर लौटते समय उससे टिकिट कलेक्ट करते हुये जायेगी।
ऑफिस पहुँचकर उर्वशी अपने काम में व्यस्त हो गई, लगभग दोपहर के 12.30 बज रहे थे, उर्वशी किसी फ़ाइल का निरीक्षण करने में व्यस्त थी कि तभी ऑफिस पर फ़ोन बजता हैं, रिसेप्शनिस्ट इंटरकॉम से उसे फ़ोन ट्रांसफर करतीं हैं… फ़ोन उस ट्रेवल एजेंट का था… बोला दीदी रात 10 बजे से लेकर सुबह के 3.30 तक कि सभी ट्रैन देख चुका हूँ, किसी में भी जगह नहीं है, 26 जनवरी आ रही हैं न इसलिए बहुत से कोच आर्मी वालों के लिए रिजर्व हैं, आप बोलो तो रविवार सुबह 6.30 बजे की “कालका शताब्दी” से टिकट कर दूँ, उसमें अभी 12 सीट बचीं हैं। मरता क्या न करता, उर्वशी ने रविवार सुबह की कालका शताब्दी के लिए हाँ कह दिया, शाम को ऑफिस से घर लौटते वक्त वह उस ट्रैवल एजेंट का हिसाब करके, उससे अपना टिकट लेकर घर चली आई।
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उर्वशी ने 23 जनवरी की रात को ही अपने परिचित टैक्सी वाले को बता दिया कि अगली सुबह तड़के 3 बजे ही घर आ जाना, चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन चलना है।
रात को ही पूरी तैयारी कर ली थी, अब सुबह 3 बजे टैक्सी आनी थी तो नींद किसे आती, फ़िर भी घड़ी में सवा दो बजे का अलार्म लगाकर लेट गई… नींद की झपकी लगी भी लेकिन 2 बजे ही नींद फिर खुल गई, लिहाजा उर्वशी ने उठकर फ्रेश-अप होकर अपने लिए चाय रख दी अब तक अलार्म ट्रिन-ट्रिन बजकर उसे मुँह चिढ़ा रहा था।
उर्वशी ने दौड़कर अलार्म बन्द किया और इत्मीनान से चाय का कप लेकर उस आधी रात में आसमान के तारों को देखती रही…”सप्त ऋषि तारामंडल ठीक ऊपर ही था, ध्रुव तारा स्थिर अविचल उत्तर दिशा में दीप्तिमान था। और शीतल चन्द्र आधा ही सही मग़र पूर्ण आकाश पर अपनी आभा से एकछत्र राज्य कर रहा था।”
तभी टैक्सी के हॉर्न की आवाज़ आई।
उर्वशी ने चाय का कप धोकर, जल्दी अपना सामान बाहर निकाला और ताला लगाकर उस टैक्सी में बैठ गई।
शिमला से बाहर निकलते ही खिड़की से बाहर देखते ही सारा दृश्य घुप्प अंधेरे की वजह से भयावह लग रहा था, समझ ही न आ रहा था कि सड़क के बगल में 10 फुट गहरा है या 500 फुट.. जहां पानी चमकता वहाँ की गहराई से अंदाजा लगा सकते थे कि बहुत ही खतरनाक सड़क से रास्ता तय करना है।
इस भयंकर सन्नाटे को दूर करने उर्वशी ने ड्राइवर से गीत लगाने को कहा… ड्राइवर तो उर्वशी का परिचित ही था इसलिए उसने बिना कहे ही उर्वशी की पसन्द को समझते हुये जगजीत सिंह की ग़ज़ल लगा दी।
“तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो
आँखों में नमी, हँसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो
क्या गम है जिसको…
बन जायेंगे ज़हर पीते पीते
ये अश्क जो पिए जा रहे हो
क्या गम है जिसको…
जिन ज़ख्मों को वक़्त भर चला है
तुम क्यों उन्हें छेड़े जा रहे हो
क्या गम है जिसको…
रेखाओं का खेल है मुक़द्दर
रेखाओं से मात खा रहे हो
क्या गम है जिसको…
पहली ग़ज़ल सुनते सुनते ही उर्वशी नींद के आगोश में खो जाती है।
जब नींद खुलती है तो दृश्य बिल्कुल ही अलग था, ऊँची ऊँची पहाड़ियों पर कोमल सूर्य की लालिमा पड़ने से बहुत ही मोहक दृश्य लग रहा था, चीड़ और देवदार के वृक्षों की सघनता कम होने लगी थी.. कार चंडीगढ़ पहुँचने को ही थी।
उर्वशी ने घड़ी देखी तो 6 बज चुके थे, वह रेल्वे स्टेशन पहुँचने की जल्दबाजी में थी। 20 मिनट में ही टैक्सी स्टेशन पहुँच गई।
ट्रैन आने में अभी 10 मिनट ही थे, उर्वशी ट्रेन के डिब्बे की पोजीशन के स्थान पर खड़ी हो गई,
उसकी सीट डिब्बे की सबसे पिछली सीट थी, बिल्कुल दरवाजे से लगकर…
टिकिट निरीक्षक के टिकट चेक करते ही केटरिंग वालों की सर्विस शुरू हो गई, चाय बिस्किट, फिर इडली सांभर वडा का नाश्ता। उर्वशी को बहुत ही नींद आ रही थी मग़र एक तो दरवाजे की सीट, ऊपर से यह केटरिंग वालों का रुक रुककर बार बार आना उसका सोना ही मुश्किल कर रहा था।
नाश्ता खत्म करते ही जल्द ही उर्वशी को नींद लगने लगी.. झपकी लगते लगते ही उसने देखा कि अम्बाला केंट स्टेशन आ चुका था, आधा स्टेशन आर्मी वालों से भरा हुआ था, उसने देखा कि पीछे वाला कोच पूर्णतया आर्मी के लिए ही आरक्षित था, ट्रैन पुनः चल पड़ी और उर्वशी नींद के आगोश में समाने लगी…
★★
“तू मेरी ज़िन्दगी है
तू मेरी हर ख़ुशी है
तू ही प्यार, तू ही चाहत
तू ही आशिकी है
तू मेरी ज़िन्दगी है…
पहली मोहब्बत का एहसास है तू
बुझके जो बुझ ना पाई, वो प्यास है तू
तू ही मेरी पहली ख्वाहिश, तू ही आखिरी है
तू मेरी ज़िन्दगी है…
हर ज़ख्म दिल का तुझे, दिल से दुआ दे
खुशियाँ तुझे, गम सारे मुझको खुदा दे
तुझको भुला ना पाया, मेरी बेबसी है
तू मेरी ज़िन्दगी है…”
उर्वशी को लगा कि वह नींद की आग़ोश में कोई सपना देख रही जिसमें उसे उसका मनपसंद का गीत सुनाई दे रहा था।
मग़र नहीं.. यह आवाज़ तो उसके ठीक पीछे से ही आ रही थी, आर्मी के लिए आरक्षित कोच से.. हूबहू वही आवाज़.. उर्वशी सम्मोहित सी अपना सारा सामान छोड़कर उस आवाज़ की दिशा में जानें लगी..
स्लाइडिंग वाला दरवाजा खोल कर देखा तो पूरा कोच आर्मी वालों से भरा हुआ था, उस युवक की पीठ उर्वशी की तरफ़ थी, और सभी साथी जवान टेबल कुर्सी आदि बजा बजा कर उसका जोश बढ़ा रहे थे।
अपने आरक्षित कोच में किसी महिला को आते देख सभी जवान कुर्सी टेबल बजाना छोड़कर उर्वशी की तरफ़ देखने लगे ।
उन सभी जवानों के अचानक रुककर उस युवक के पीछे की तरफ़ देखने से वह युवक भी सहमकर पीछे मुड़कर उर्वशी को देखता है.. तो देखता ही रह जाता है…..
उसके मुँह से हड़बड़ाहट में शब्द निकलते हैं..अरे! तुम… …सॉरी आप??
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कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-9) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi
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अविनाश स आठल्ये